एक वैज्ञानिक ने ईश्वर को खोज लिया और उससे कहा, “ईश्वर, हमें अब तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं है. विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि अब हम जीवन के किसी भी रूप की रचना कर सकते हैं. आदिकाल में तुमने जो किया वह हम अब करके दिखा सकते हैं.”
“अच्छा! बताओ तुम क्या कर सकते हो?”, ईश्वर ने पूछा.
वैज्ञानिक ने कहा, “हम मिट्टी से जीवन के विविध रूपों की रचना कर सकते हैं. हम इसे तुम्हारी आकृति में ढालकर इसमें प्राण फूंक सकते हैं. हम पुरुष, स्त्री और जीवन के हर उस रूप की रचना कर सकते हैं जो कभी अस्तित्व में रहा हो.”
“वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है”, ईश्वर ने कहा, “मुझे दिखाओ तुम ऐसा कैसे करते हो”.
वैज्ञानिक नीचे झुकता है और अपनी परखनली में थोड़ी सी मिट्टी भरता है…
“रूको! ज़रा ठहरो!”, ईश्वर ने उसे टोकते हुए कहा, “वह तो मेरी मिट्टी है! तुम अपनी मिट्टी से यह काम करो!”
अपनी तो मिटटी भी नहीं है । सच बात ।
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MAN CAN NOT CREATE ONLY TRANSFORM
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apna yhan kuchh nhi hai. aatma bhi parmatma ka ansh hai .
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बहुत सुन्दर विज्ञान चाहे कितनी भी तरक्की कर ले वह ईश्वर की बराबरी नहीं कर सकता
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Beautiful!
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we are nothing
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ishwar, ishwar hai. duniya me koi v insan, kyo na bhut bade se bade vigyanik ho, ishwar ki jagah koi nahi le skta.. accha hoga ki insan, insaan hi rhe…
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बहुत अच्छी कहानी है ।
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vigyan bhi eeshwar ka hi ansh hai, jise samajh gaye vo vigyan aur jise nhi samjhe vah chamatkar….!
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itani achhi kahani ke leye thanks
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science kitna bhi tarkki ker le lekin god ki barabari nhi ker sakta hai
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Mujhe lagta hai ki yah galat hai kyoki mitti bhi to ek scientific takri se hi bani hai
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