एक सेमिनार में लगभग 50 व्यक्ति भाग ले रहे थे. सहसा वक्ता ने लोगों से एक ग्रुप-एक्टिविटी में भाग लेने के लिए कहा. उसने हर व्यक्ति को एक गुब्बारा दे दिया और मार्कर पेन से उसपर व्यक्ति का नाम लिखने के लिए कहा. फिर सारे गुब्बारे एकत्र करके दूसरे कमरे में रख दिए गए.
फिर वक्ता ने सभी को कमरे में जाकर दो मिनट के भीतर अपना नाम लिखा गुब्बारा खोजकर लाने के लिए कहा. यह सुनते ही सभी लोग एक दूसरे में गुत्थमगुत्था होकर अपना गुब्बारा खोज लाने के लिए दौड़ पड़े. उस कमरे में घोर अव्यवस्था फैल गई. वे सभी एक-दूसरे से टकरा रहे थे, एक-दिसरे के ऊपर गिर रहे थे.
किसी भी व्यक्ति को दो मिनटों के भीकर अपना नाम लिखा गुब्बारा नहीं मिला.
फिर वक्ता ने उनसे कहा कि वे एक-एक करके कमरे में जाएं और कोई भी एक गुब्बारा उठाकर ले आएं और उसे उस व्यक्ति को दे दें जिसका नाम गुब्बारे पर लिखा हो. ऐसा करने पर दो मिनटों के भीतर हर व्यक्ति को उसका नाम लिखा गुब्बारा मिल गया.
वक्ता ने कहा, “जीवन में भी यही नज़र आता है कि लोग पागलों की तरह अपने इर्द-गिर्द खुशियों की तलाश कर रहे हैं लेकिन वह उन्हें नहीं मिल रही. असल में दूसरों की खुशी में ही हमारी खुशी है. आप उन्हें उनकी खुशियां सौंप दें, फिर आपको अपनी खुशी मिल जाएगी”. Image credit
प्रेरक कहानी है। बढ़िया।
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बहुत खुबसूरत ….
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bahut badiya kahaanee hai…..
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Bahut khoob
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बहुत सुन्दर , धैर्य व विवेक से कोई भी कार्य कुछ क्षणों में किया जा सकता है
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इससे यही शिक्षा मिलती है की दूसरों की खुशी मेन हीं हमारी खुशी है। कहानी प्रेरणादायक है अच्छी लगी।
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बहुत खूब
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प्रेरणाप्रद कहानियाँ मनुष्य में वैचारिक पूर्णता लाती हैं। जहाँ एक कहानी में पिता अपने पुत्रों को परस्पर विश्वास का पाठ सिखाते हुए, संगठन की शक्ति का महत्व बतलाता हैं। वहीं दूसरी कहानी में पिता अपनी पुत्री की ओर हाथ बढ़ा कर उसे छत से कूदने के लिये कहता है। और बेटी के नीचे गिर जाने पर उसे (विश्वास से ओत-प्रोत बेटी को) सीख़ देता है कि हमें किसी में भी आँख बन्द करके विश्वास नहीं करना चहिये।
अर्थात व्यक्ति विशेष में जिन विचारों (प्रकार) की कमी होती है। उन विचारों से सम्बन्धित कहानियों को उन व्यक्तियों तक पहुँचाया जाता है। ताकि लोगों में व्यावहारिकता में वॄद्धि हो, विचारों के प्रति कट्टरता में कमी हो तथा व्यक्तियोँ का वह समूह उन परिस्थितियों के प्रति सजग और सचेत रहे। जिनका सामना आज से पहले उन्होने कभी न किया हो !
यूँ ही लिखते रहिये भैया.. 🙂
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