पारस पत्थर

कहते हैं कि सिकंदरिया की महान लाइब्रेरी में जब भीषण आग लग गयी तब केवल एक ही किताब आग से बच पाई। वह कोई महत्वपूर्ण या मूल्यवान किताब नहीं थी। मामूली पढ़ना जानने वाले एक गरीब आदमी ने वह किताब चंद पैसों में खरीद ली।

किताब में कुछ खास रोचक नहीं था। लेकिन किताब के भीतर आदमी को एक पर्ची पर कुछ अजीब चीज़ लिखी मिली। उस पर्ची पर पारस पत्थर का रहस्य लिखा हुआ था।

पर्ची पर लिखा था कि पारस पत्थर एक छोटा सा कंकड़ था जो साधारण धातुओं को सोने में बदल सकता था। पर्ची के अनुसार वह कंकड़ उस जैसे दिखनेवाले हजारों दूसरे कंकडों के साथ एक सागरतट पर पड़ा हुआ था। कंकड़ की पहचान यह थी कि दूसरे कंकडों की तुलना में वह थोड़ा गरम प्रतीत होता जबकि साधारण कंकड़ ठंडे प्रतीत होते।

उस आदमी ने अपनी सारी वस्तुएं बेच दीं और पारस पत्थर ढूँढने के लिए ज़रूरी सामान लेकर समुद्र की ओर चल पड़ा।

वह जानता था कि यदि वह साधारण कंकडों को उठा-उठा कर देखता रहा तो वह एक ही कंकड़ को शायद कई बार उठा लेगा। इसमें तो बहुत सारा समय भी नष्ट हो जाता। इसीलिए वह कंकड़ को उठाकर उसकी ठंडक या गर्माहट देखकर उसे समुद्र में फेंक देता था।

दिन हफ्तों में बदले और हफ्ते महीनों में। वह कंकड़ उठा-उठा कर उन्हें समुद्र में फेंकता गया। एक दिन दोपहर में उसने एक कंकड़ उठाया – वह गरम था। लेकिन इससे पहले कि आदमी कुछ सोचता, आदत से मजबूर होकर उसने उसे समुद्र में फेंक दिया। समुद्र में उसे फेंकते ही उसे यह भान हुआ कि उसने कितनी बड़ी गलती कर दी है। इतने लंबे समय तक प्रतिदिन हजारों कंकडों को उठाकर समुद्र में फेंकते रहने की मजबूत आदत होने के कारण उसने उस कंकड़ को भी समुद्र में फेंक दिया जिसकी तलाश में उसने अपना सब कुछ छोड़ दिया था।

ऐसा ही कुछ हम लोग अपने सामने मौजूद अवसरों के साथ करते हैं। सामने खड़े अवसर को पहचानने में एक पल की चूक ही उसे हमसे बहुत दूर कर देती है।

There are 7 comments

  1. ramakantsingh

    ऐसा ही कुछ हम लोग अपने सामने मौजूद अवसरों के साथ करते हैं। सामने खड़े अवसर को पहचानने में एक पल की चूक ही उसे हमसे बहुत दूर कर देती है।
    लाख टेक कि एक बात संग्रहणीय

    पसंद करें

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