दोस्ती की आग

अली नामक एक नौकर को रुपयों की सख्त ज़रूरत थी. उसने अपने मालिक से मदद मांगी. मालिक ने उसके सामने एक शर्त रखीः यदि अली पहाड़ की चोटी पर पूरी एक रात बिता देगा तो मालिक उसे बड़ा ईनाम देगा, अन्यथा उसे पूरी उम्र मुफ्त में काम करना पड़ेगा.

मालिक की दुकान से बाहर निकलते वक्त अली ने बर्फीली हवाओं के थपेड़ों को महसूस किया. वह घबरा गया और अपने दोस्त ऐदी से पूछने के लिए गया कि उसे मालिक की शर्त माननी चाहिए या नहीं.

ऐदी ने कुछ सोचकर कहाः

“तुम परेशान मत हो. मैं तुम्हारी मदद करूंगा. कल रात पहाड़ की चोटी पर बैठकर तुम अपनी आंखों की सीध में देखना.”

“मैं तुम्हारे ठीक सामने वाले पहाड़ की चोटी पर पूरी रात तुम्हारे लिए आग जलाकर बैठूंगा.”

“आग को देखते हुए तुम हमारी दोस्ती के बारे में सोचना और तुम्हें इसकी गर्माहट मिलेगी.”

“इस तरह तुम वहां पूरी रात बिता पाओगे. अगले दिन मैं तुमसे इसके बदले में कुछ मांगूंगा.”

अली ने ऐसा ही किया और वह बाजी जीत गया. ईनाम मिलने के बाद वह ऐदी के घर गया और बोलाः

“तुमने कहा था कि तुम्हें बदले में कुछ चाहिए था…”

“हां”, ऐदी ने कहा, “लेकिन मुझे रूपये नहीं चाहिए. वादा करो कि मेरी ज़िंदगी में भी कभी कोई सर्द बर्फीली रात आएगी तो तुम मेरे लिए भी दोस्ती की आग भड़काओगे.”

(पाउलो कोएलो की किताब ‘अलेफ़’ से)

There are 7 comments

  1. Prakash Pandya. Banswara(Rajasthan)

    हितोपदेश में माता-पिता और मित्र को स्वभाव से हितैषी माना गया है। एक सुभााषित में भी सन्मित्र के लक्षण बताते हुए कहा गया है-
    ’’ आपद् गतं न जहाति काले…
    प्रेरक कथा की बधाई।

    प्रकाश पंड्या
    बांसवाड़ा

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