स्व-मूल्यांकन

एक लड़का किराने की दुकान पर गया और उसने सिक्का डालनेवाले फोन से एक नंबर डायल किया. दुकानदार उसे देख रहा था और उसकी बातें भी सुन सकता था.

लड़का – मैम, क्या आप मुझे आपके बगीचे की घास काटने का काम देंगीं?

औरत – (फोन के दूसरी ओर) मेरे पास तो पहले से ही एक लड़का काम कर रहा है.

लड़का – मैमे, लेकिन मैं उससे भी कम पैसे में ये काम करने को तैयार हूं.

औरत – लेकिन जो लड़का मेरे यहां काम करता है मैं उसके काम से खुश हूं.

लड़का – (दृढ़ता से) मैम, मैं आपके दालान और गैरेज को भी साफ कर दूंगा और आपके बगीचे को कॉलोनी का सबसे सुंदर बगीचा बना दूंगा.

औरत – धन्यवाद, लेकिन मुझे इसकी ज़रूरत नहीं है.

लड़के ने मुस्कुराते हुए फोन का रिसीवर रख दिया. दुकानदार यह सब सुन रहा था, उसने लड़के को अपने पास बुलाया और उसससे कहा.

दुकानदार – मुझे तुम्हारा रवैया बहुत अच्छा लगा. मुझे तुम जैसे काम करनेवाले लड़के की ज़रूरत है. तुम यहां काम करोगे?

लड़का – नहीं, धन्यवाद.

दुकानदार – (हैरत से) लेकिन अभी तुम फोन पर काम पाने के लिए मिन्नतें कर रहे थे!

लड़का – नहीं जी, मैं तो अपने काम के प्रदर्शन का जायज़ा ले रहा था. उस महिला के घर काम करने वाला लड़का मैं ही हूं. (image credit)

There are 11 comments

  1. Anshumala

    बहुत अच्छी कथा है , किन्तु बस कथा ही है वास्तविक नहीं , आप कितना भी अच्छा काम कर लीजिये किन्तु आप अपने मालिक को इतना संतुष्ट नहीं कर सकते कि वो आधे दाम में ज्यादा काम का आफर ठुकरा दे , एक बार मिलेगा तो जरुर आप से 🙂 , हा अपना मूल्याकन तो सभी को करते ही रहना चाहिए , वो आप को ही आगे बढाता है ।

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