गुरु गेहूं के एक खेत के समीप खड़े थे, तब उनका शिष्य एक समस्या लेकर उपस्थित हुआ और बोलाः
“सत्य की प्राप्ति की ओर ले जानेवाला मार्ग कौन सा है? मैं उसकी खोज कैसे करूं?”
गुरू ने उससे पूछा, “तुम अपने दाएं हाथ में कौन सी अंगूठी पहने हो?”
“यह मेरे पिता की निशानी है जो उन्होंने निधन से पहले मुझे सौंपी थी”, शिष्य ने कहा.
“इसे मुझे देना”, गुरू ने कहा.
शिष्य ने अपनी उंगली से अंगूठी निकालकर विनयपूर्वक गुरु के हाथ में दे दी. गुरु ने अंगूठी को खेत के बीच में गेंहू की बालियों की ओर उछाल दिया.
“यह आपने क्या किया?!”, शिष्य अचरज मिश्रित भय से चिल्लाया, “अब मुझे सब कुछ छोड़कर अंगूठी की खोज में जुटना पड़ेगा! वह मेरे लिए बहुमूल्य है!”
“वह तो तुम्हें मिल ही जाएगी, लेकिन उसे पा लेने पर तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी मिल जाएगा. सत्य का पथ भी ऐसा ही होता है… वह अन्य सभी पथों से अधिक मूल्यवान और महत्वपूर्ण है”.
सच बात
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सच है, सत्य सदा ही आवश्यक और महत्वपूर्ण होता है।
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वह तो तुम्हें मिल ही जाएगी, लेकिन उसे पा लेने पर तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी मिल जाएगा. सत्य का पथ भी ऐसा ही होता है… वह अन्य सभी पथों से अधिक मूल्यवान और महत्वपूर्ण है”.
yes its true
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satya dharan karne se jaldi jana ja sakta h.SATYA sarswat h.
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satya
mujhko pasand a gaye
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