भिक्षुणी वू जिन्कांग ने आचार्य हुइनेंग से पूछा, “मैं कई वर्षों से महापरिनिर्वाण सूत्र का पारायण कर रही हूं लेकिन इनमें कही अनेक बातों को समझ नहीं पा रही हूं. कृपया मुझे उनका ज्ञान दें.”
आचार्य ने कहा, “मुझे पढ़ना नहीं आता. यदि तुम मुझे वे अंश पढ़कर सुना दो तो शायद मैं तुम्हें उनका अर्थ बता पाऊं.”
भिक्षुणी ने कहा, “आपको लिखना-पढ़ना नहीं आता फिर भी आप इन गूढ़ शास्त्रों का ज्ञान कैसे आत्मसात कर लेते हैं?”
“सत्य शब्दों पर आश्रित नहीं होता. यह आकाश में दीप्तिमान चंद्रमा की भांति है, और शब्द हमारी उंगली हैं. उंगली से इशारा करके आकाश में चंद्रमा की स्थिति को दर्शाया जा सकता है, लेकिन उंगली चंद्रमा नहीं है. चंद्रमा को देखने के लिए दृष्टि को उंगली के परे ले जाना पड़ता है. ऐसा ही है न?”, आचार्य ने कहा.
इस दृष्टांत का सार यह है कि चंद्रमा की ओर इंगित करने वाली उंगली चंद्रमा नहीं है. क्या इसका कोई गहन अर्थ भी है? हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन से इसका क्या संबंध है? इस दृष्टांत के अर्थ का हम किस प्रकार उपयोग कर सकते हैं?
चित्र में लॉफ़िंग बुद्ध होतेई चंद्रमा की ओर इशारा कर रहा है. होतेई चीन के परवर्ती लियांग राजवंश (907–923 ईसवी) में महात्मा था. प्रसन्नता और संतोष होतेई के चित्र व चरित्र का रेखांकन करने वाले प्रमुख तत्व हैं. उसकी थलथलाते हुए पेट और प्रसन्नचित्त मुखमंडल की छवि विषाद हर लेती है.
बहुत सुन्दर,चंद्रमा की और इंगित करने वाली अंगुली चंद्रमा नहीं होती व न हो सकती है सच ही तो यह कथन.आचार्य हुइनेंग ने ज़िन्दगी के सच को एक वाक्य में ही बखान कर दिया.
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ज्ञान तो बहुत से स्रोतों से प्राप्य है, लेकिन उसके अनुरूप स्वयं को ढालने का संकल्प कहां से किसी को मिले असल सवाल तो यह है।
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सच कहा, केवल इंगित करने वाला ही होना चाहिये।
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great story
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एक अंगुली आकाश की ओर उठी और उसने लोगों को दिखाया की वो रहा चाँद। दुसरे जगह से दुसरे काल में एक अन्य अंगुली उठी की देखो वो चाँद है।कालांतर में लोगों ने चाँद तो देखना बंद कर दिया पर आपस में झगरते रहे की मेरे गुरु की ,मेरे धर्म की अंगुली पहले उठी थी ,उसकी दिस ज्यादा सही थी और इस प्रकार अलग अलग मजहब आपस में लरते चले गए। आज भी ये झगरा चल रहा है और चाँद को अब कोई देखता ही नहीं।
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