एक ताकतवर जादूगर ने किसी शहर को तबाह कर देने की नीयत से वहां के कुँए में कोई जादुई रसायन डाल दिया. जिसने भी उस कुँए का पानी पिया वह पागल हो गया.
सारा शहर उसी कुँए से पानी लेता था. अगली सुबह उस कुँए का पानी पीनेवाले सारे लोग अपने होशहवास खो बैठे. शहर के राजा और उसके परिजनों ने उस कुँए का पानी नहीं पिया था क्योंकि उनके महल में उनका निजी कुआं था जिसमें जादूगर अपना रसायन नहीं मिला पाया था.
राजा ने अपनी जनता को सुधबुध में लाने के लिए कई फरमान जारी किये लेकिन उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि सारे कामगारों और पुलिसवालों ने भी जनता कुँए का पानी पिया था और सभी को यह लगा कि राजा बहक गया है और ऊलजलूल फरमान जारी कर रहा है. सभी राजा के महल तक गए और उन्होंने राजा से गद्दी छोड़ देने के लिए कहा.
राजा उन सबको समझाने-बुझाने के लिए महल से बाहर आ रहा था तब रानी ने उससे कहा – “क्यों न हम भी जनता कुँए का पानी पी लें! हम भी फिर उन्हीं जैसे हो जायेंगे.”
राजा और रानी ने भी जनता कुँए का पानी पी लिया और वे भी अपने नागरिकों की तरह बौरा गए और बेसिरपैर की हरकतें करने लगे.
अपने राजा को ‘बुद्धिमानीपूर्ण’ व्यवहार करते देख सभी नागरिकों ने निर्णय किया कि राजा को हटाने का कोई औचित्य नहीं है. उन्होंने तय किया कि राजा को ही राजकाज चलाने दिया जाय. (image credit)
सारगर्भित.
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आज के समय को बहुत सही ढंग से उभारती है ये प्यारी सी छोटी सी कथा…….
-Arvind K.Pandey
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सटीक कथा। मौके पर उपयोगी।
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MAANANA PADEGA AAPAKE KHAYALAAT KO. WAAH KYA BAAT HAI.
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Nishant ji! well done! I good imagination! aapne ye kis context ko lekar likhi mujhe nhi pta but depicts present quality of our indians! jahan koi kisi ko seedhe rastey pr chalte rahna dekh hi ni skta!!!!!
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इसे कहते हैं ’’ यथा प्रजा-तथा राजा ।’’
प्रकाश पंड्या
बांसवाड़ा -राजस्थान
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🙂
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प्रभावी लेखन,
जारी रहें,
बधाई !!
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हमारे राजा तो पहले से ही बौराये हुए हैं। शायद हमें भी उनके जैसा हो जाना चाहिए।
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लाजवाब…
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सच में आज के हालात को भी बयां करती कहानी और आपका ब्लाग भी सुंदरतम है
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जैसा देश वैसा वेश बनाना पड़ता है.
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