बीस बौद्ध भिक्षु और ऐशुन नामक एक भिक्षुणी किसी ज़ेन गुरु के अधीन ध्यान साधना करते थे.
सादी वेशभूषा और सर घुटा होने के बाद भी ऐशुन बहुत सुन्दर लगती थी. अनेक भिक्षु भीतर-ही-भीतर उससे प्रेम करने लगे. उनमें से एक ने ऐशुन को प्रेमपत्र लिखा और एकांत में मिलने का निवेदन किया.
ऐशुन ने पत्र का उत्तर नहीं दिया. अगले दिन ज़ेन गुरु ने भिक्षु समूह को प्रवचन दिया. प्रवचन की समाप्ति पर ऐशुन उठी और प्रेमपत्र देनेवाले भिक्षु को संबोधित करते हुए बोली, “यदि तुम सच ही मुझसे प्रेम करते हो तो आओ और मुझे आलिंगनबद्ध कर लो.”
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जब ऐशुन साठ वर्ष की हो गयी तो उसने देहत्याग करने का निश्चय कर लिया. उसने कुछ भिक्षुओं से कहा कि वे मठ के प्रांगण में लकड़ियों का ढ़ेर जमा दें.
ऐशुन के चिता पर बैठने के बाद उसमें अग्नि प्रज्वलित कर दी गयी.
“हे भिक्षुणी!”, एक भिक्षु ने चिल्लाकर पूछा, “क्या तुम्हें आंच लग रही है?”
ऐशुन ने कहा, “तुम जैसे मूर्ख ही ऐसी बातों की चिंता करते हैं”.
चिता धधकने के साथ ही ऐशुन ने प्राण छोड़ दिए.
आँच कि चिंता में न आलिंगनबद्ध हो पाते हैं न प्रभु से साक्षात्कार ही कर पाते हैं।..गज़ब का संदेश छुपा है इस कथा में।
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निस्पृह भाव!! देहातीत दशा!!
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***1यदि तुम सच ही मुझसे प्रेम करते हो तो आओ और मुझे आलिंगनबद्ध कर लो.”
***2ऐशुन ने कहा, “तुम जैसे मूर्ख ही ऐसी बातों की चिंता करते हैं”.
****१ एक कल की वार्ता जहाँ जीवन की परिपक्वता और २ में घमंड का पुट ज्ञान से परे . …. कथा को दिग्भ्रमित करता है …अज्ञानता से भरा ….बोद्ध या बौद्ध भिक्षु की कथा?****
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दरअसल इस पोस्ट की लास्ट लाइन ही उस भिक्षुणी के घमंड का परिचय करा गई.. वह सुन्दर नहीं बल्कि सुंदरता में लिपटी बदसूरती थी
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.. kamal kee kathaa hai ..
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डोंगी और दिखावे का जीवन जीने से अच्छा है जीवन का आनंद लिया जाये।
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गहन..
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What message does this story give?
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प्रेम पत्र लिखने वाले भिक्षु ने क्या किया यह कथा नहीं बताती, पर ऐशुन ने भिक्षुणी रहते हुए ही देहत्याग किया… लगता है वह भिक्षु हिम्मत नहीं जुटा पाया… यह जेन गुरूकुल भी क्या भारत के धार्मिक गुरूकुलों की तरह ही होते थे जहाँ बच्चे सिर्फ इसलिये भेज दिये जाते हैं कि इसी बहाने उनको दो जून रोटी और तन ढकने को कपड़े मिल जायेंगे…
वह आग में जल कर मरी, मतलब वह जेन साधना से कुछ भी सीख नहीं पाई, एक निर्रथक जीवन था यह…
…
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It doesn’t have any message at all.
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jis tarah aishun ko apni deh ke chita me jalne me deh ke prati koi moh nahi tha isi tarah yuwa awastha me use apne sharir ke stri ya purush hone smbandhi fark nahi tha
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RAM KO KISKA BHAY NA KAMDEV KA AGNIDEV KA.
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