चेन ज़िकिन ने कन्फ्यूशियस के पुत्र से पूछा, “क्या तुम्हारे पिता ने तुम्हें ऐसा कुछ भी सिखाया है जो हम नहीं जानते?”
“नहीं”, कन्फ्यूशियस के पुत्र ने कहा, “लेकिन एक बार जब मैं अकेला था तो उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं कविता पढ़ता हूँ या नहीं. मेरे ‘ना’ करने पर वे बोले कि मुझे कविता पढ़ना चाहिए क्योंकि यह आत्मा को दिव्य प्रेरणा के पथ पर अग्रसर करती है”.
“और एक बार उन्होंने मुझसे देवताओं को अलंकृत करने की रीतियों के बारे में पूछा. मैं यह नहीं जानता था इसलिए उन्होंने मुझे इसका अभ्यास करने के लिए कहा ताकि देवताओं को अलंकृत करने से मैं स्वयं का बोध भी कर सकूं. लेकिन उन्होंने यह देखने के लिए मुझपर नज़र नहीं रखी कि मैं उनकी आज्ञाओं का पालन कर रहा हूँ या नहीं.”
वहां से चलते समय चेन ज़िकिन ने मन-ही-मन में कहा:
“मैंने उससे एक प्रश्न पूछा और मुझे तीन उत्तर मिले. मैंने काव्य के बारे में कुछ जाना. मुझे देवताओं को अलंकृत करने के विषय में भी ज्ञान मिला. और मैंने यह भी सीखा कि ईमानदार व्यक्ति दूसरों की ईमानदारी की छानबीन नहीं करते”. (image credit)
तीसरा उत्तर सबसे ज्यादा सटीक लगा लेकिन ईमानदारी के उस स्तर तक पहुँच पाना सबके वश की नहीं|
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महापुरूषों को किसी के शिक्षा के पालन करने न करने पर शंकित नहीं रहना पडता।
वे अच्छे से जानते है, प्रत्येक आत्मा का स्वतंत्र पुरूषार्थ होता है, जहाँ परिणमन होना है वहाँ होगा, जहाँ नहीं होना है वहां नहीं होगा। उपदेश देना ही उनके अधिकार में है।
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स्वयं से ईमानदार रह पाना ही पर्याप्त है, जीवन स्वयं ही बोलता है।
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And I learned that an honest man never spies on the honesty of others.”
This interpretation is not right in my opinion.
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@ईमानदार व्यक्ति दूसरों की ईमानदारी की छानबीन नहीं करते”.
सही कहा | कहा जाता है की हम जैसे होते है वैसा ही दुनिया के बारे में सोचते है किन्तु वास्तव में दुनिया वैसी ही होती है , मुझे तो लगता है की नहीं !
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विशेषज्ञ अपने पास विषय की सही और गलत दोनों तरह की जानकारी रखता है। वह लोगों को उनकी गलतियों से अवगत कराता है। फलस्वरूप जनसामान्य और सम्बंधित विषय के शोधार्थी विशेषज्ञों का अनुसरण करने लगते हैं जो जानकारी एकत्रित करना चाहते हैं। परन्तु महान व्यक्ति अपने आप में एक विशेषज्ञ इसलिए होता है क्योंकि वह उस कारण की खोज करता है जिसके कारण जनसामान्य गलत जानकारियों और तथ्यों को सही मान लेते हैं। इस “कारण की खोज” की प्रमाणिकता के लिए वह ऐसे प्रयोग कर बैठता है, जिससे कि समाज में भ्रांतियों और गलफहमी में कमी आती है। दरअसल वह महान व्यक्ति इस विषय का जानकार होता है कि आखिर गलतियाँ कहाँ जन्म लेती हैं ? वे कब उत्पन्न होती हैं ? उसकी उत्पत्ति में कौन-कौन से घटक कार्यरत होते हैं ? चूँकि इस विषय में कम ही चर्चा होती है। फलस्वरूप इन विषयों के जानकार महान कहलाते हैं।
पूरा लेख यहाँ से पढ़े : http://www.basicuniverse.org/2014/11/Visheshgy-or-Mahan-Purush.html
एक बात और कहनी थी कि पहले की अपेक्षा अब का बैकग्राउंड ज्यादा आकर्षित कर रहा है।
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