एक कवि किसी प्रसिद्द और सफल मूर्तिकार से मिलने गया. उसकी कला वाटिका में उपस्थित शिल्प की सराहना करते हुए उसने मूर्तिकार से पूछा, “आपकी अद्वितीय कला का रहस्य क्या है?वह कौन सा दर्शन है जो आपको ये अनूठे शिल्प और मूर्तियाँ बनाने के लिए प्रेरित करता है?”
“तुम वह रहस्य जानना चाहते हो?”, मूर्तिकार ने कहा, “मैं तुम्हें वह अवश्य बताऊँगा. कुछ दिन मेरे साथ रुको”.
कवि कई सप्ताह तक वहां रहकर चुपचाप सारा घरेलू काम करता रहा. वह खाना बनाता, कपड़े धोता, साफ़-सफाई करता रहा लेकिन उसने कुछ भी न कहा.
एक दिन, मूर्तिकार ने कवि से कहा, “मैं तुम्हें जो कुछ भी सिखा सकता था वह तुम सीख गए हो”.
“ऐसा कैसे हो सकता है?”, कवि ने अचंभे से कहा, “इतने दिनों तक मैं आपके कहने पर यहाँ रुका रहा और एक शब्द भी कहे बिना आपका सारा घरेलू काम करता रहा लेकिन मुझे आपकी कला और शिल्प के बारे में कुछ भी जानने-सीखने को नहीं मिला.”
“तुमने वह सारा काम एक शब्द भी बोले बिना किया न?”, कलाकार ने कहा, “वही मेरी सफलता का रहस्य है. अब जाओ”.
निराशा के बादल छंटने पर कवि को यह समझ में आ गया कि उसने वाकई अमूल्य शिक्षा पाई थी और उसने इसे अपने क्षेत्र में प्रयुक्त किया”. (image credit)
कवि का बिना बोले काम कैसे चले? 🙂
किन्तु सार्थक है सफलता का रहस्य, लगन रखो, मगन रहो।
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मैं तो समझता था कि सफलता की कुंजी है अपने प्यार को ढ़ूंढिये और खेलो, कूदो और सीखो।
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kuch baate bina kahe samjh me aa jani chaiye:)
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मै अपनी राह से भटका हुआ हू कोई मेरा मार्गदर्शन कराओ
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mann me negavity due karo posstive think better
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