निक्सिवान ने अपने मित्रों को रात्रिभोज पर बुलाया था और वह स्वयं रसोई में उनके लिए बेहतरीन शोरबा बना रहा था. थोड़ा चखने पर उसे लगा कि उसमें नमक कम था.
रसोई में नमक ख़त्म हो गया था इसलिए उसने अपने बेटे को पुकारा और उससे कहा, “गाँव तक जाओ और जल्दी से थोड़ा नमक खरीद लाओ, लेकिन उसकी सही-सही कीमत चुकाना, न तो बहुत ज्यादा देना और न ही बहुत कम देना.”
निक्सिवान का लड़का हैरान होकर बोला, “मैं जानता हूँ कि मुझे किसी चीज़ का ज्यादा दाम नहीं चुकाना चाहिए, लेकिन अगर मैं मोलभाव करके कुछ पैसा बचा सकता हूँ तो उसमें क्या हर्ज़ है?”
निक्सिवान ने कहा, “किसी बड़े शहर में तो यह करना ठीक होगा लेकिन यहाँ ऐसा करने से हमारा यह छोटा सा गाँव बर्बाद हो सकता है”.
निक्सिवान के मित्र पिता-पुत्र के बीच हो रही यह बात सुन रहे थे. उन्होंने निक्सिवान से पूछा, “यदि मोलभाव करने पर नमक कम कीमत पर मिल रहा हो तो उसे लेने में क्या बुराई है?”
निक्सिवान ने कहा, “कोई भी दुकानदार सामान्य से काफी कम कीमत पर नमक तभी बेचेगा जब उसे पैसे की बड़ी सख्त ज़रुरत हो. ऐसी स्थिति में उससे नमक वही आदमी खरीदेगा जिसके ह्रदय में उस नमक को तैयार करने और उपलब्ध कराने वाले व्यक्ति के श्रम तथा संघर्ष के प्रति कोई संवेदना न हो”.
“लेकिन इतनी छोटी सी बात से कोई गाँव कैसे बर्बाद हो सकता है?”, एक मित्र ने पूछा.
निक्सिवान ने कहा, “तुम्हें शायद इसका पता न हो लेकिन आदिकाल में संसार में बुराई की मात्रा अत्यल्प थी. कालांतर में आनेवाली पीढ़ियों के लोग उसमें अपनी थोड़ी-थोड़ी बुराई मिलाते गए. उन्हें हमेशा यही लगता रहा कि आटे में नमक के बराबर बुराई से जग का कुछ न बिगड़ेगा, लेकिन देखो इस प्रकार हम आज कहाँ तक आ गए हैं.”
(पाउलो कोएलो की पुस्तक ‘द डेविल एंड मिस प्रिम’ से लिया गया अंश.) (image credit)
सीखने को हर पल काफी,भावना रहे बस…
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थोड़ी थोड़ी बुराई तो पता भी नहीं चलती पर अब लगता है नमक अधिक हो गया है।
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मैंने स्कूल में संस्कृत की पुस्तक में एक श्लोक पढ़ा था जिस भावार्थ है- “अत्यधिक दान देने के कारण बलि बंधा था। सीता के अपहरण का कारण अति रूपवान होना था। रावण के मारे जाने का कारण अति गर्व था। अत: अधिकता हर चीज की बुरी है। परन्तु उपरोक्त कथा से सीखने को मिलता है कि आटे में नमक के बराबर बुराई भी दुनिया बिगाड़ सकती है। बिलकुल सत्य है यह। भौतिक विज्ञान भी कहता है कि पदार्थ के सबसे छोटे कण अणु में उस पदार्थ के सारे मूल गुण मौजूद होते हैं और उस अणु को जब बम्ब के रूप में प्रयोग किया जाता है तो उस के विखंडन से दुनिया तबाह हो जाती है। अत: हमें अपने आचरण को पूर्णत: शुद्ध रखने के लिये लेशमात्र बुराई से भी दूर रहना चाहिये।
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वाह,आज शब्द नहीं है कुछ भी कहने के लिए ,
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bahut hi umda..
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burai us cencer ki tarh hai jo samaj ko khokhla banaye ja raha hai.
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श्रम तथा संघर्ष के प्रति कोई संवेदना if we lack in this quality..we will generate a really bad society…
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No doubt about that, Singh sir.
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Really nice
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