“सदैव वर्तमान में उपस्थित रहने से आपका क्या तात्पर्य है?”, शिष्य ने गुरु से पूछा.
गुरु ने शिष्य को एक छोटी जलधारा के पार तक चलने के लिए कहा. जलधारा के बीच कुछ दूरी पर पड़े पत्थरों पर चलकर वे दूसरी ओर आ गए.
गुरु ने पूछा, “एक पत्थर पर पैर रखकर अगले पत्थर पर पैर रखना आसान था न?”
“हाँ”, शिष्य ने कहा, “क्या यही सीख है कि एक बार में एक पत्थर पर पैर धरना है?”
“नहीं, सीख यह है कि…”, गुरु ने कहा, “यदि तुम पत्थरों पर क्रमशः एक-एक करके पैर रखोगे तो पार जाना सरल हो जाएगा. लेकिन यदि तुम हर पत्थर को उठाकर आगे बढ़ना चाहोगे तो तुम डूब जाओगे”.
शिष्य जलधारा में जमे हुए विशाल पत्थरों को देखकर यह कल्पना करता रहा कि कोई उन्हें किस भांति ढोकर पार ले जा सकेगा. फिर उसने श्रद्धापूर्वक गुरु को नमन किया.
बात समझ में नहीं आई।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
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एक समय में एक पत्थर, वर्तमान में जीने की तैयारी..
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vartman lakshya is jaldhara ko par karna hai,na ki bhavishya ki jaldhara ke bare me sochna
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KUCH SAHI TAREEKE SE SAMJH ME NAHI AYA KHANI KA ANT KUCH DIFRENT THA
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सुन्दर शिक्षा…
सादर.
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स्वस्थ जीवन जीने के लिए समय के प्रति उचित दृष्टिकोण या समय के साथ सही सम्बन्ध रखना जरूरी लगता है. उचित उदाहरण के साथ बात सीधी समझ आ रही है.
ये विडियो भी देखिये – http://www.youtube.com/watch?v=qtLIxCDE-_E
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बात समझ में नहीं आई।
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vartmaan hi sukh ka dwar h.
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aapka likha=sarwotam
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