एक सुबह एक प्रख्यात लेखक और ज़ेन मास्टर के बीच ज़ेन के विषय पर बातचीत हो रही थी:
“ज़ेन को आप किस प्रकार परिभाषित करेंगे?”, लेखक ने पूछा.
“ज़ेन प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा प्राप्त ज्ञान है”, ज़ेन मास्टर ने कहा.
“दूसरों के अनुभव से ज्ञान प्राप्त करने में क्या बुराई है?”, लेखक ने कहा, “पुस्तकालयों में ज्ञान भरा पड़ा है!”
ज़ेन मास्टर ने कुछ नहीं कहा.
कुछ देर बाद ज़ेन मास्टर ने लेखक से पूछा, “आपको भोजन कैसा लगा?”
“मैंने अभी कुछ खाया ही नहीं है! अभी तो सुबह के दस ही बजे हैं”, लेखक ने कहा.
“मैं जानता हूँ. मैंने आपके लिए कुछ बनवाया था पर वह मैंने ही खा लिया”, ज़ेन मास्टर ने कहा, “भोजन बहुत बढ़िया था. आप मेरे अनुभव से यह जान सकते हैं.”
(Thanx to John Weeren for this story)
हा हा हा, सटीक और बहुतों के लिये आवश्यक…
पसंद करेंपसंद करें
Great, Nishantji….. Taste of Zen is really Great..!! Shukriya.!!!
पसंद करेंपसंद करें
बिलकुल सच है –
ऐसे ही – बिना अनुभव के हम किसी का कहा हुआ सुन कर / लिखा हुआ पढ़ कर philosophy भी बहुत झाड़ सकते हैं | परन्तु जब बात अपने ऊपर आती है – तो अक्सर फिलोसोफी धरी रह जाती है – क्योंकि वह अनुभव से नहीं बल्कि पढ़ कर या सुन कर ऊपर से ओढ़ी हुई होती है |
पसंद करेंपसंद करें
जिस तन लागे वही तन जाने ,किनारे पर बैठकर तूफ़ान के बारे में बोलना कितना आसान है ,
बहुत बढ़िया कहानी ,
पसंद करेंपसंद करें
very nice.
पसंद करेंपसंद करें
Achha hai…
पसंद करेंपसंद करें
भोजन बहुत बढ़िया था.
पसंद करेंपसंद करें
भोजन का पता नहीं, पोस्ट बढ़िया है, यह स्व-अनुभव से कह सकता हूं!
पसंद करेंपसंद करें
Vastawik anubhav se hi ham thos rup me kuchh sikh pate hai aur wahi hamesha yaad rahata hai. Bahut badiya.
पसंद करेंपसंद करें
DUSROO SE AAP KEWAL SEEKH LE SAKTE HAI,JEEVAN KI VASTAVIKTA AAPKE KHUD ANUBHAV ME CHEEPI HOTI HAI…..
IT WAS VERY GOOD POST.
पसंद करेंपसंद करें