यह जापान में प्रबंधन के विद्यार्थियों को पढ़ाया जाने वाला बहुत पुराना किस्सा है जिसे ‘साबुन के खाली डिब्बे का किस्सा’ कहते हैं. कई दशक पहले जापान में साबुन बनानेवाली सबसे बड़ी कंपनी को अपने एक ग्राहक से यह शिकायत मिली कि उसने साबुन का व्होल-सैल पैक खरीदा था पर उनमें से एक डिब्बा खाली निकला. कंपनी के अधिकारियों को जांच करने पर यह पता चल गया कि असेम्बली लाइन में हो किसी गड़बड़ के कारण साबुन के कई डिब्बे भरे जाने से चूक गए थे.
कंपनी ने एक कुशल इंजीनियर को रोज़ पैक हो रहे हज़ारों डिब्बों में से खाली रह गए डिब्बों का पता लगाने के लिए तरीका ढूँढने के लिए निर्देश दिया. कुछ सोचविचार करने के बाद इंजीनियर ने असेम्बली लाइन पर एक हाई-रिजोल्यूशन एक्स-रे मशीन लगाने के लिए कहा जिसे दो-तीन कारीगर मिलकर चलाते और एक आदमी मॉनीटर की स्क्रीन पर निकलते जा रहे डिब्बों पर नज़र गड़ाए देखता रहता ताकि कोई खाली डिब्बा बड़े-बड़े बक्सों में नहीं चला जाए. उन्होंने ऐसी मशीन लगा भी ली पर सब कुछ इतनी तेजी से होता था कि वे भरसक प्रयास करने के बाद भी खाली डिब्बों का पता नहीं लगा पा रहे थे.
ऐसे में एक अदना कारीगर ने कंपनी अधिकारीयों को असेम्बली लाइन पर एक बड़ा सा इंडस्ट्रियल पंखा लगाने के लिए कहा. जब फरफराते हुए पंखे के सामने से हर मिनट साबुन के सैंकड़ों डिब्बे गुज़रे तो उनमें मौजूद खाली डिब्बा सर्र से उड़कर दूर चला गया.
sir very good…. idea budhimano ki bapauti nahi hai.
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मजेदार सूझ.
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रोचक।
एक और कहानी सुनी है।
सवाल था अंतरिक्ष में ball point pen का प्रयोग कैसे करें ? NASA के वैज्ञानिक परेशान थे । zero gravity में
स्याही का प्रवाह समस्या बन गई थी और इसे रोकने के लिए शोध कार्य चल रहा था । इस बीच किसीने रूसियों से पूछने का सुझाव दिया ।
पता चला कि वे अंतरिक्ष में pencil का प्रयोग करते थे ।
जी विश्वनाथ
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🙂
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Good……..
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सादी सोच, किफायती उपाए, और बड़ा काम…
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जूते के आविष्कार की भी कहानी कुछ ऐसी ही है.. जब पैर को गंदा होने से बचाने के लिए सारी धरती पर चमड़ा मढने के बजाये अपने पैरों पर चमड़ा मढने का तरीका सुझाया एक आम आदमी ने.. वही टुकड़ा आजकल चप्पल कहलाता है!
अच्छी कथा!
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सादगी सोच में या जिंदगी में इतनी आसान नहीं होती. ना आसान होती है सादी और गहरी सोच वालो का सम्मान करना. अब तो आप किस कालेज में पढ़े है, कहा नौकरी करते है, किस बाप के बेटे है, अमीर है या गरीब इस से किसी की सोच को हम महत्त्व देते है.
खैर इसी सोच से जुडी एक कहानी है पता नहीं कितनी प्रमाणिक है.. साहब जब लोग आइस क्रीम खाकर डिब्बे फेंकने लगे तो ये एक समस्या बन गयी. विशेषज्ञ लोग मिले और विचार विमर्श हुआ पर हल ना निकला. तब किसी बहुत साधारण कर्मचारी ने ये सुझाव दिया क्यों ना कोन बनाया जाये ताकि खाके फेंकने का सवाल ही ना पैदा हो. और इस तरह कोन या साफ्टी वाली आइसक्रीम का जन्म हुआ.
खैर इस संयोग पे निशांतजी गौर करे..जब हम पोस्ट करते है तब आप पोस्ट करते है ये तो ठीक है..पर आपने साबुन वाले डिब्बे की बात की और आज हमने साबुन के बुलबुले की बात की मतलब अपना जीवन एक साबुन के बुलबुले के समान है. ये बताये इस साबुनमय संयोग को क्या नाम दे :- )
हमे एक धुँध से आना है एक धुँध में जाना है!!! : http://wp.me/pTpgO-jH
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बहुत बढ़िया. हम पढ़े-लिखे इंसान की कद्र करते हैं और उनके दिए सुझाव पर अमल करते हैं, पर उनके सुझाए समस्या का हल सही निकलेगा कहा नहीं जा सकता आखिर उस काम में एक व्यक्ति ही नजर रखेगा और उससे चुक हो सकती है. एक कर्मचारी भी कम खर्च में बेहतरीन सुझाव दे सकता है और उसका सुझाव सटिक हो सकता है.
0 शशि परगनिहा
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इस बार तो खूब रही! एक पढके अच्छा लगा तब तक दो कथा और… … पेंसिल का प्रयोग तो सचमुच बेजोड़ रहा इस मामले में। … … पंखे वाली सोच बताती है कि ज्यादा पढ-लिख कर ज्यादा समझ नहीं हो जाती…
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इससे ये सिद्ध होता हें की
बुद्धि केवल बड़ी बड़ी डिग्री हासिल करने बलों के पास ही नही होती हें
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Very very very very very nice
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कठिन समस्याओं का सरल समाधान..
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akal badi ya BHAINS ?
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वस्तुतः सारे आविष्कार या सुविधा-साधन ऐसे ही किसी तुक्के से जन्म लेते है। सभी मशीनें काम को सरल करने के उद्देश्य से ही बनी है। पर इसका अर्थ यह नहीं कि शिक्षा या विशेषता अनुपयोगी है। सम्भवतः शिक्षा हमें सोच का विशाल फलक प्रदान करती है, यह बढ़ा हुआ दायरा, और भी विस्तार में सोचने को प्रेरित करता है और हम सामान्य व साधारण सोच की तरफ दृष्टि भी नहीं कर पाते।
इस कथा का सार और ध्येय भी यही है कि विशाल दृष्टि के साथ ही सामन्य सोच को भी मस्तिक्ष में चलने देना चाहिए।
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Nice
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very good……………..
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good
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very true….famous scientist aeinstein done this thing also…ek door may 2 whole..chota ched choti billi k liye bada chhed badi billi k liye.
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