धनुर्विद्या के एक प्रसिद्द गुरु अपने शिष्य के साथ वन में भ्रमण कर रहे थे. गुरु ने एक वृक्ष की सबसे ऊंची शिखाओं में छुपे हुए फल पर निशाना लगाया और तीर चला दिया. फल सीधे डाल से टूटकर नीचे आ गिरा. भूमि पर गिरे हुए फल पर एक दृष्टि डाल कर गुरु भावशून्य-से आगे बढ़ गए, लेकिन उनकी दक्षता से चकित होकर शिष्य ने उनसे पूछा, “क्या आपको यह देखकर प्रसन्नता नहीं हुई?”
गुरु ने कुछ नहीं कहा. वे चलते रहे. कुछ दूर जाने पर गुरु ने पहले की भांति एक छुपे हुए फल पर निशाना साधा लेकिन इस बार निशाना चूक गया. इससे निराश होकर शिष्य ने पूछा, “इस बार निशाना नहीं लगने पर आपको बुरा लग रहा होगा.”
गुरु ने इस बार भी कुछ नहीं कहा. वे पहले की भांति चलते रहे. सूर्या के अस्ताचलगामी होने के साथ-साथ शिष्य दिन में सीखे गए सबक को जान गया. उसने अपना धनुष उठाया और वृक्ष की सबसे ऊंची डाल से लटक रहे फल पर निशाना लगाया.
Thanx to John Weerenfor this story (image credit)
समझा नहीं ।
क्या संदेश यह है कि असफलता से निराश और सफलता से अति प्रसन्न होना ठीक नहीं ?
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
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सुख दुखे समेकृत्वा…
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@पहले की भांति एक छुपे हुए?
दोनों फल छुपे हुए थे क्या?
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नहीं समझ सकी
😮
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sidhyo asidhyo samo bhutva, samtvm yog uchyte
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ऊपर दिये मूल लिंक को देखा और थोड़ी जानकारी विकिपीडिया पर देखी।
ये बौद्ध कथा “क्यूदो” नामक जापानी धनुर्विद्या के बारे मे है। लगा कि यह कथा उस गुरु की मानसिक स्थिति का कुछ संकेत देती है जिसे “फ्लक्स या ज़ोन” कहा जाता है जिसमे तमाम मानसिक उतार चढ़ाव के परे, व्यक्ति विशेष और उसकी गतिविधि दोनों का एका हो जाता है।
विकिपीडिया पर एक लिंक कहता है – “The archer ceases to be conscious of himself as the one who is engaged in hitting the bull’s-eye which confronts him.”
इसे भी देखें – https://fiercebuddhist.wordpress.com/2011/10/24/first-shots-in-kyudo/
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ji nhi bhaiyon, wo guru shisya ko sikhane gaya tha magar wo sirf guru ki badai aur tarafdaari kar raha tha. use sikhne ki ichchha nhi thi. aakhir wo samjh gaya guru kyun khush nhi the tab usne abhiyash suru kiya.
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समझा नही क्या उदेश था
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लगे रहें। फिर आंख पर पट्टी बान्ध कर भी लगे रहें!
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NIshant ji, please tell us the moral of this story.
i am not able to understand it.
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राहुल सिंह जी का स्पष्टीकरण सर्वाधिक प्रभाशाली है। मित्रोए आपके पन्ने पर आकर अच्छा महसूस हुआ, उम्मीद है आप मौलिकता, रचनात्मकता और स्वस्थ तार्किक बहस को प्रमुखता देते रहेंगे, ‘सर्जना’ पर आइये…….आपका – डॉ. राम
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मैँ तो ईस कहानी से यही सीखता हु की अच्छे से अच्छा जानकार भी कभी भी चुक सकता है।
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निशांत जी – कहानी का उद्देश्य तो नहीं समझ आ रहा – पर हाँ – ऐसा ज़रूर लग रहा है की – आप वह गुरु हैं और हम वह शिष्य – शिष्य पूछ रहे हैं – गुरु चुप हैं 🙂
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@ सूर्या के अस्ताचलगामी होने के साथ-साथ शिष्य दिन में सीखे गए सबक को जान गया. उसने अपना धनुष उठाया और वृक्ष की सबसे ऊंची डाल से लटक रहे फल पर निशाना लगाया.
विद्यार्थी को निलिप्त और निस्पृह भाव से अपना पूरा ध्यान सीखने पर ही केन्द्रित करना चाहिए, अतः शिष्य सबक समझते ही पुरूषार्थ में लग गया।
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जी – यह तो ठीक ही है | आभार |
परन्तु – शायद कुछ और भी हो | पता नहीं क्यों ? पर ऐसा लग रहा है |
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Why not be Eklavya and be a self learned man.
http://www.fake-guru.com/forum.php
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nishkam karam or dukh sukh se par jane ki sikh deti hai ye kahani. Nice story
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Me ek bat ab tak nahi samajh ska ki achi or gyan ki bate har jagah available hai… but vo kuch time tak humare man me rehti hai. Or hum fir vo hi karne laget hai jaise naraj hona, lalach karna, kisi ke bare me bura sochna me confused hu ki 1 second ka gussa ya kam vasna in sab achi bato per kyu bhari padti hai….
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Aapka blog bahut acha hai or me aapke blog ko bahut pasand bhi karta hu or ummid karta hu ki aap esi achi achi story humse share karte rahenge dhanyavad.
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Pls mahatma gautam budha se related story available karaye
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