एक शिष्य ने गुरु से पूछा, “क्या ध्यान करने से मोक्ष मिल जाता है?
गुरु ने कहा, “मोक्ष किसी कारणवश नहीं मिलता. इसका संबंध कुछ करने-न करने से नहीं है”.
शिष्य ने कहा, “यदि इसका संबंध कुछ करने-न करने से नहीं है तो यह होता ही क्यों है? फिर ध्यान आदि करने की भी क्या आवश्यकता है?”
गुरु ने कहा, “ध्यान करने के लिए ध्यान करो और मोक्ष को अपनी चिंता स्वयं ही करने दो.”
Thanx to John Weeren for this story
जब शेष रहेगा नहीं और कुछ….
पसंद करेंपसंद करें
र्निर्थक शब्द मोक्ष
र्भमीत सोच ह मोक्ष
मोक्ष जीवन से हारे हुऐ इंसान की कुच्छ सार्थक ना कर पाने की उपज ह
प्रर्कती मे मोक्ष कोई वीष्य नही ह
पसंद करेंपसंद करें
मोक्ष की चिंता वाले व्यक्ति को कभी मोक्ष नहीं होगा |…….. मोक्ष और चिंता – ये साथ कैसे होंगे ? 🙂 सूरज हो तो अन्धकार कैसे हो?
जैसे- प्रेम की परिभाषा करने वाला प्रेम को नहीं जानता, और जो प्रेम में हो वह तो परिभाषाएं कब का भूल चुका होता है |
भक्ति प्रेम ही का विशुद्ध रूप है – वह हो, तो मोक्ष की आस ही न रहेगी, क्योंकि प्रिय को देखना, छूना, सुनना …. ये ही सब तो प्रेम की सार्थकता हैं – मोक्ष में यह सुख कहाँ होगा ?
पसंद करेंपसंद करें
is jeewan me AALSIYON ka maksad MOX prapt karne ki lagan isliye h ki agla jeewan bhi bina kuchh kiye hi bita diya jaye.
पसंद करेंपसंद करें
bat to sahi he mokchh ke liye kuchh v nhi karna he. jab har prkar ki kamna khatm ho jay to apne ap ka mokchh samjhna chahiye
पसंद करेंपसंद करें
A good message in this post.
A similar thought occurred to me in my evening. Thank you for sharing 🙂 Be well and Namaste _/|_
पसंद करेंपसंद करें
अच्छा लगा सुन कर ।
पसंद करेंपसंद करें
वाह….
पसंद करेंपसंद करें
जीवन का लक्ष्य …..?
पसंद करेंपसंद करें
ये बात तो सही कही।
अमूमन अधैर्यवान मोक्ष का ध्येय ले कर ध्यान करते हैं और जल्दी ही निरुत्साहित हो बुझ जाते हैं!
मैने एक ऐसे अधैर्यवान साधक को 6 महीने बाद दारू की शरण में जाते देखा है!
पसंद करेंपसंद करें