पहाड़ी घुमावदार रास्ते,
सूरजिया रौशन दीवारें,
नीला हिलोरी सागर,
बच्चों की किलकारियां.
चाहें आप दुनिया में कहीं भी चले जाएँ, चाहें लोग कितनी ही जुबानें बोलें, चाहें संस्कृतियाँ और सरकारें कितने ही मोर्चे खोलें… बच्चों की सहज हंसी सभी के मन को आनंदमय कर देती है. बड़ों की हंसी केवल हंसी ही नहीं होती – उसमें छुपी होती है ईर्ष्या, असुरक्षा, क्रूरता, हताशा, विसंगति, मूर्खता, और मूल्यहीनता. इसके विपरीत बच्चों की निर्मल हंसी में केवल एक ही सरल सहज आदर्श कर्म दृष्टिगोचर होता है. उसमें न तो कोई सिद्धांत हैं और न ही कोई विचारधारा – उसमें केवल जीवन का अबोधगम्य आनंद है.
एक वयस्क के रूप में हम अपनी जिम्मेदारियों के बोझ तले दबकर जीवन की उलझनों से दो-चार होते हुए एक अंतहीन मृगतृष्णा में भटकते रहते हैं. कभी बच्चों को हँसते-खेलते देखकर हमारा मन भी अपने खोये हुए बचपन की ओर सहसा चला जाता है. अब हमारी काया अपने पुराने कपड़ों में तो नहीं समा सकती पर बच्चों के करीब रहकर हम उनकी निश्छलता और आशावादिता में सांत्वना पा लेते हैं. उनके आनंद का क्षेत्र विशाल होता है और उसमें सभी समा सकते हैं.
कभी हम इस हड़बड़ी में भी रहते हैं कि हमारे बच्चे जल्द-से-जल्द बड़े हो जाएँ. लेकिन उनके लिए यह ही बेहतर है कि वे अपने बचपन के हर दिन को पूरी ऊर्जा से जियें. वे अपनी अवस्था के अनुसार गतिविधियों में रत रहें और खूब खेलें. तरुणाई में उनके प्रवेश का संक्रांतिकाल सौम्यता से पूर्ण हो. उनके बचपन की किलकारियां भावी जीवन का हर्षोल्लास बनें. आशा और उमंग के स्वर जीवनपर्यंत गूंजते रहें.
_/|_ yes..thank you. Hearing the pure sounds of children’s laughter….always brings a smile to my face.
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साहब आज के बच्चे अब बच्चे नहीं रहे..हमने इन्हें काफी बड़ा बना दिया है समय से पहले..मै पहले बड़ो से बच के रहता था..अब बच्चो से भी बच के रहता हूँ 🙂
-Arvind K.Pandey
http://indowaves.wordpress.com/
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बहुत सुन्दर! बचपन सम्भालना और सँवारना एक बड़ी ज़िम्मेदारी है।
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आजकल कई बार सोचती हूँ बच्चे इतनी जल्दी बड़े क्यों हो गये , उनके साथ बचपन भरपूर जिया ही नहीं !
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बहुत खूबसूरत मुस्कान!
मुस्कराते हुये लोग कित्ते खूबसूरत लगते हैं। 🙂
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बचपन की हंसी-खुशी और बुद्धिमत्ता बचाने की कोशिश हेतु साधुवाद!
ओशो ने अपनी अनूठी विवेक-शक्ति का कारण बताया है कि ‘मेरे पिताजी ने मुझे दस वर्ष की उम्र में स्कूल में दाखिल कराया था। मेरा बचपन फिर विश्वविद्यालय भी नष्ट न कर सका।’
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बच्चों की सहजता अनुकरणीय है, बस याद ही तो करना है कि हम कैसे थे।
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बच्चों की निर्मल हंसी में केवल एक ही सरल सहज आदर्श कर्म दृष्टिगोचर होता है. उसमें न तो कोई सिद्धांत हैं और न ही कोई विचारधारा – उसमें केवल जीवन का अबोधगम्य आनंद है.
बच्चों के करीब रहकर हम उनकी निश्छलता और आशावादिता में सांत्वना पा लेते हैं. उनके आनंद का क्षेत्र विशाल होता है और उसमें सभी समा सकते हैं.
हाँ, बच्चों की यह हंसी एक अनंत-असीम-अबोधगम्य-निश्छल-आशावान आनंद का उत्सव है… खुशकिस्मत हूँ मैं कि मेरी बिटिया मेरे कानों में इसका रस घोल रही है… वह भी मेरी छाती पर बैठ कर …
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किसी भी महापुरुष को ले , या महान संत क़े जीवन में झाकें उन लोगों को बच्चों और फूलों से बेहद लगाव रहा है ,
कभी सोचे की क्यों ……………?
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BACHHE man ke SACHHE yhi ek umar h jab manushy nirbadh anterman se hans sakta h ,baki jeewan me KARNI us ko sahi mayne me hansne nhi deti .
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दोनों ही बच्चों के नाम बहुत सुन्दर हैं क्या आपने रखे ?
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सुधार .किया..
बच्चों की सरल हँसी हमें स्वर्गिक आनन्द प्रदान करता है…….मेरी नई पोस्ट ,कर्म ही ्जीवन है’ में आप का स्वागत है….
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maja aa gaya bhai ……….. ajj bhi mai apne bachpan mai jinda hun
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