एक ज़ेन संन्यासी ने अपने गुरु से पूछा, “हमें अपने शत्रुओं से कैसा व्यवहार करना चाहिए?”
गुरु ने कहा, “तुम अपने शत्रुओं से केवल घृणा ही कर सकते हो?”
शिष्य ने अचरज से कहा, “ऐसा कहकर क्या आप घृणा का समर्थन नहीं कर रहे?”
गुरु ने कहा, “नहीं. मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि तुम उनसे घृणा करो. मेरे कहने का अर्थ यह है कि जब तुम किसी व्यक्ति को अपना शत्रु जानने लगते हो तब तुम उससे केवल घृणा ही कर सकते हो.”
Thanx to John Weeren for this story
Thank you….a good lesson…to not hate. _/|_
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शत्रुता को स्वीकार करने से घृणा स्वयं आ जाती है।
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🙂 शत्रु का मतलब जिससे घृणा ही की जा सके। 🙂
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ज़ेन (?) होकर भी अंतस में शत्रुता का शेष रह जाना अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है ! यदि कोई अपने अंतस में शेष रह गये इस प्रश्न ( भाव ) को जानकर भी उससे घृणा ना कर पाए तो फिर उसका ज़ेन बने रह पाना कठिन है !
संभवतः गुरु का तात्पर्य ‘घृणा के उस रूप’ ( बोध ) से है जिससे सहमत होकर एक ज़ेन को अपने अंदर की त्रुटि का शमन करना है !
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शत्रुता से घृणा करो, शत्रु से नहीं ……..
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satya hai …
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कोई जेन वाला यह भी ठेल सकता है कि तुम्हारा शत्रु तुम्ही में है। लिहाजा अपने से घृणा करो! 🙂
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ये जेन वाले हाइपरबोल में क्यों बतियाते हैं!
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शत्रु से प्रेम भी होता है, ओशो ने जिन्ना-गाँधी का उदाहरण देकर बहुत कुछ कहा था…
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It’s realy True
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घॄणां करना या न करना अपने हाथमें नही हैं। घृणा करनेका कारण अगर समजमें आ जाए तो बात बन शक्ति है। समजना शुरु करते है, तो सभी कारण समाप्त हो जाते हैं । सभी शस्त्रोंने समजका मार्ग दिया है। घृणा करने के परिणाम समजने लगेंगे तो घॄणा अपने आप कम हो जायेगी।
आभार।
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क्षमा से बढा कोई धर्म नही .
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GODISNOWHERE ,
MEAN:- 1. GOD IS NOW HERE
2. GOD IS NO WHERE
everything depends on how do u see anything.
NISHANT JI GOOD.,
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shatruta ka bhav aate hi ghruna utpanna ho jati he. shatru se mitrata sahaj nahi
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