उचित-अनुचित

“क्या आप उचित-अनुचित में विश्वास करते हैं?”, युवक ज़ेन संन्यासी ने अपने गुरु से पूछा.

गुरु ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं इनमें विश्वास नहीं करता.”

“लेकिन कल ही मैंने आपको एक निर्धन व्यक्ति को दान देते देखा. यदि आप उचित और अनुचित, सही और गलत आदि में आस्था नहीं रखते हैं तो आप हमेशा उचित और सही कर्म ही क्यों करते हैं?”, युवक संन्यासी ने पूछा.

गुरु ने कहा, “अब तुम मेरे एक प्रश्न का उत्तर दो, कल मैंने तुम्हें चावल खाते देखा था और आज सुबह तुम सेब खा रहे थे. तुम ये सब चीज़ें क्यों खाते हो?”

युवक संन्यासी ने कहा, “यह तो बहुत अलग बात है! चावल या सेब खाने का संबंध उनमें विश्वास या आस्था रखने से थोड़े ही है!”

“बिलकुल वही!”, गुरु ने कहा, “सही या उचित कर्म करने के लिए उनमें विश्वास रखना ज़रूरी नहीं है”.

Thanx to John Weeren for this story

There are 11 comments

टिप्पणी देने के लिए समुचित विकल्प चुनें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.