क्रोध का उपचार कैसे करें?

ब्लौगर बंधु अनुराग शर्मा जी ने हाल ही में बहुत मनोयोग से क्रोध के ऊपर कुछ पोस्ट लिखीं हैं जिन्हें आप उनके ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं. उनकी एक पोस्ट पर मैंने कमेन्ट करके यह इच्छा की थी कि वे क्रोध के उपचार पर भी कुछ लिखें. उन्होंने मुझे इस विषय पर लिखने के लिए प्रेरित किया. हिंदीज़ेन की परंपरा के अनुरूप कुछ विचार क्रोध विषयक सूक्तियों से लिए गए हैं जिनका मैंने केवल विस्तार ही किया है.

हमारे भीतर क्रोध तब उपजता है जब हम स्वयं से तथा क्रोध उपजानेवाले दीर्घकालिक और तात्कालिक कारणों से अनभिज्ञ होते हैं. इस अनभिज्ञता के कारण ही क्रोध जैसे अप्रिय मनोभाव का उदय होता है. लालसा, अभिमान, उत्तेजना, ईर्ष्या और संदेह भी क्रोध का मूल हैं. चूंकि क्रोध हमारे भीतर ही जन्म लेता है इसलिए हम ही इसके प्राथमिक कारक हैं. अन्य व्यक्ति तथा परिवेश आदि सदैव गौण होते हैं. प्रकृति के प्रलयंकारी विप्लव यथा भूकंप अथवा बाढ़ आदि द्वारा घटित विनाश एवं हानि का आकलन करना हमारे लिए कठिन नहीं है और उन्हें हम किंचित सहनशीलता से स्वीकार भी कर लेते हैं, लेकिन जब कोई व्यक्ति हमें क्षति पहुंचाता है तो हमारा धैर्य चुक जाता है. हमें इस पर विचार करना चाहिए कि जिस प्रकार भूकंप अथवा बाढ़ आदि के सुनिश्चित कारण होते हैं, उसी प्रकार हमारे भीतर क्रोध भड़कानेवाले व्यक्ति के भीतर भी हमें क्रुद्ध करने के लिए दीर्घकालिक एवं तात्कालिक कारण मौजूद हैं उपस्थित होते हैं. ठीक वही कारक हमारे भीतर भी अवस्थित हो सकते हैं.

उदाहरण के लिए, यह संभव है कि हमसे दुर्व्यवहार करने वाले व्यक्ति के साथ एक दिन पहले किसी ने बुरा बर्ताव किया हो या उसके पिता ने उसपर बचपन में क्रूरता बरती हो. ये घटनाएं उसके भीतर क्रोध उपजाने वाले तात्कालिक या सुषुप्त कारक हो सकतीं हैं. यदि हम इन कारणों या कारकों को अंतर्दृष्टि के साथ और बोधपूर्वक समझने लगेंगे तो क्रोध से मुक्ति सहज हो जायेगी. इसका अर्थ यह नहीं है कि हमारे ऊपर घातक प्रहार करने वाले व्यक्ति को यूं ही जाने दिया जाए, उसे अनुशासित करना अति आवश्यक है. लेकिन इसके पहले यह ज़रूरी है कि हम अपने भीतर से नकारात्मकता को बाहर निकाल फेंकें. किसी व्यक्ति की सहायता करने अथवा उसे सही मार्ग पर लाने के लिए हमारे भीतर करुणा होनी चाहिए. जब तक हम अन्य व्यक्तियों के दुःख की समानुभूति नहीं करेंगे तब तक हम इस योग्य नहीं बन सकते कि उसे दुःख और भ्रान्ति के दलदल से बाहर निकाल सकें. क्रोध के उपचार के लिए इन बिन्दुओं पर भी मनन करना उपयोगी होगा:

किसी कष्टदायक परिस्थिति का सामना करने पर हमारे भीतर प्रतिरोध की भावना जन्म लेती है और हमारा क्रोध बढ़ने लगता है. हमारे क्रोध की अभिव्यक्ति सामनेवाले व्यक्ति के भीतर खलबली मचाती है और वह अपनी पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए फिर कुछ ऐसा कहता या करता है जिससे हमारा क्रोध उग्र हो जाता है. यह एक चक्र की भांति है. इसलिए यह कहा जाता है कि ऐसी दशा में उस परिस्थिति से बाहर निकाल जाना ही सबसे उचित उपाय है, लेकिन ऐसे भी कुछ अवसर हो सकते हैं जब यह उपाय कारगर न हो. यह और कुछ नहीं बल्कि पलायन ही है.

हमारे अंगों की भांति ही क्रोध भी हमारी काया का ही एक भाग है. अंतस में क्रोध उपजने पर हम हम इससे यह नहीं कह सकते “दूर चले जाओ, क्रोध! मैं तुम्हें नहीं चाहता!” जब हमारे पेट में दर्द होता है तब हम यह नहीं कहते कि “दूर हट जाओ, पेट! मत दुखो!” इसके उलट हम उसका उपचार करते हैं. ऐसा ही हमें क्रोध के साथ भी करना होता है. क्रोध और घृणा की उपस्थिति प्रेम और स्वीकरण के अभाव की द्योतक नहीं होती. प्रेम सदैव भीतर रहता है. उसकी खोज करनी पड़ती है.

क्रोध उपजने की दशा में कुछ संभलें और अपने ग्रहणबोध का अवलोकन करें. यह कुछ कठिन है पर साधने पर सध जाता है. हम सभी बहुधा ही अनुभूतियों के संग्रहण में तत्परता दिखाते हैं और अनुचित भावनाओं को प्रश्रय देते हैं जबकि हमारे भीतर करुणा और शांति का इतना विराट संचय होना चाहिए कि हम अपने विरोधियों से भी प्रेम कर सकें.

जब आपको किसी व्यक्ति पर क्रोध आये तो यह नहीं दर्शायें कि आप क्रुद्ध नहीं हैं. यह भी नहीं दिखाएँ कि आपको बिलकुल पीड़ा नहीं हुई है. यदि सामनेवाला व्यक्ति आपका प्रिय है तो आपको उसे यह जताना चाहिए कि आपको उसके वचनों या कर्मों से दुःख पहुंचा है. उसे यह प्रेमपूर्वक बताएं.

प्रारंभ में आप यह समझ नहीं पायेंगे कि आपके भीतर क्रोध कैसे उपजता है और यह भरसक प्रयत्न करने के बाद भी क्यों नहीं गलता. यदि आप अपने मनोभावों के प्रति जागरूक बनें और क्षण-प्रतिक्षण सजग एवं सचेत रहने का अभ्यास करेंगे तो आप क्रोध की प्रकृति को पहचान जायेंगे और इससे छुटकारा पाना सरल हो जाएगा.

किसी भी व्यक्ति में क्रुद्ध होने के संस्कार अल्पवय में पड़ते हैं. इसका संबंध दिन-प्रतिदिन घटनेवाली घटनाओं से है. यदि आप भेदभाव किये बिना स्वयं की देखभाल करेंगे और मन में नकारात्मकता को हावी नहीं होने देंगे तो आपकी सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होगी. गीता में कहा गया है कि “भुने बीजों में कामना का अंकुर नहीं फूट सकता”, इस बात को मैं क्रोध पर भी लागू करता हूँ.

क्रोध और हताशा का प्रवाह बहुधा बहा ले जाता है फिर भी मानव मन के किन्हीं कोटरों में प्रेम और क्षमा बची रह जातीं हैं. क्रोध प्रत्येक प्राणी को आता है पर मनुष्यों में यह योग्यता है कि वे दूसरे व्यक्ति से सार्थक संवाद स्थापित कर सकते हैं. हम मनुष्य क्षमाशील हैं. हम करूणावश अपना सर्वस्व भी न्यौछावर करने की शक्ति व संकल्प रखते हैं. हम केवल क्रोध एवं दुःख का समुच्चय नहीं हैं. अपने क्रोध का अवसान करने शांति प्राप्त कर सकते हैं. केवल क्रोध को दूर करने के प्रयोजन के लिए ही नहीं बल्कि स्वयं के भीतर उतरकर देखने के अभ्यास के फलस्वरूप हम अन्य मनोविकारों से भी छुटकारा पा सकते हैं. हम क्रोध के बीज को अंकुरण की प्रतीक्षा करते भी देख सकते हैं. वास्तविकता का भान होने पर हम यह जान जाते हैं कि क्रोध का मूल कारण हमारे भीतर ही निहित होता है और वह व्यक्ति केवल निमित्त मात्र ही है जिसपर क्रोध किया जा रहा है. वह हमारे क्रोध का पात्र नहीं है. क्रोध हमारे भीतर है अतः हम ही उसका पात्र हैं.

यदि आपके घर में आग लग जाए तो आप सबसे पहले क्या करेंगे? आप आग बुझाने का जतन करेंगे या आग लगानेवाले व्यक्ति-वस्तु की खोज करेंगे? उस घड़ी में यदि आप आग लगने के कारणों का अनुसंधान करने लगेंगे तो आपका घर जलकर ख़ाक हो जाएगा. ऐसे में सर्वप्रथम आग बुझाना ही श्रेयस्कर है. अतः क्रोध की अवस्था में आपका अन्य व्यक्ति से वाद-विवाद जारी रखना उचित नहीं होता.

क्रोध आने की दशा में पानी पी लेना, सौ तक की गिनती गिनना, मुस्कुराना, या उस स्थान से दूर हट जाना समस्या का समाधान नहीं है. यह एक प्रकार का दमन ही है इसलिए मैं ऐसे उपायों का समर्थन नहीं करता. क्रोध एक आतंरिक समस्या है और इसका कोई बाहरी समाधान नहीं है.

तिक न्यात हंह की एक पुस्तक से एक कथा उद्घृत करना चाहूँगा:

एक धर्मावलम्बी महिला अमिताभ बुद्ध की नियमित आराधना करती थी. दिन में तीन बार घंटी बजाकर “नमो अमिताभ बुद्ध” मन्त्र का एक घंटा जप करना उसकी दिनचर्या में शामिल था. मन्त्र का एक हज़ार जप करने पर वह पुनः घंटी बजाती. यह आराधना करते उसे दस वर्ष हो रहे थे पर उसके व्यक्तित्व में कोई परिवर्तन नहीं आया. उसके भीतर क्रोध और अहंकार भरपूर था और वह लोगों पर चिल्लाती रहती थी.

उस महिला का मित्र उसे सबक सिखाना चाहता था. एक दिन महिला जब अगरबत्तियां जलाकर और तीन बार घंटी बजाकर “नमो अमिताभ बुद्ध” मन्त्र का जप करने के लिए तैयार हुई तब उसके मित्र ने दरवाज़े पर आकर कहा, “श्रीमती नगुयेन, श्रीमती नगुयेन!”. यह सुनकर महिला को बहुत गुस्सा आया क्योंकि वह जप करनेवाली ही थी. वह मित्र दरवाजे पर खड़ा रहा और उसका नाम पुकारता रहा. महिला ने सोचा, “मुझे अपने क्रोध पर विजय पानी है, मैं उसके पुकारने पर ध्यान ही नहीं दूंगी. वह “नमो अमिताभ बुद्ध” का जप करने लगी.

वह व्यक्ति दरवाजे पर खड़ा था और बार-बार उसे पुकार रहा था, दूसरी ओर महिला का क्रोध बढ़ता जा रहा था. वह क्रोध से लड़ रही थी. उसके मन में आया, “क्या मुझे जप रोककर उठ जाना चाहिए?” लेकिन उसने जप करना जारी रखा. भीतर क्रोध की आग धधकती जा रही थी और बाहर जप चल रहा था, “नमो अमिताभ बुद्ध”. उसका मित्र उसकी दशा भांप रहा था इसलिए वह दरवाज़े पर खड़ा पुकारता रहा, “श्रीमती नगुयेन, श्रीमती नगुयेन!”

महिला और अधिक बर्दाश्त नहीं कर सकी. उसने अपने घंटी और आसनी फेंक दी, भड़ाम से दरवाजा खोला और मित्र से चीखती हुई बोली, “तुम ऐसा क्यों कर रहे थे!? बार-बार मेरा नाम लेने की क्या ज़रुरत थी!?

उसका मित्र मुस्कुराता हुआ बोला, “मैंने सिर्फ दस मिनट ही तुम्हारा नाम लिया और तुम इतना क्रोधित हो गयीं! ज़रा सोचो, दस साल से तुम बुद्ध का नाम ले रही हो, वे कितना क्रोधित हो गए होंगे!?”

There are 24 comments

  1. चंदन कुमार मिश्र

    एक बार में दस कथाओं के बराबर लम्बा लेख…क्रोध पर अच्छा है…क्या तिक न्यात हंह ने अंग्रेजी में अपनी बात कही है?……वैसे क्रोधी स्वभाव छोड़ना इतना आसान भी नहीं कि जल्दी छूट जाए…

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      1. चंदन कुमार मिश्र

        अच्छा जी। बात कुछ ऐसी थी कि हमें लगता है कि हमारे यहाँ किसी भी गैर-लेखक के विचारों को रखते समय उसे अंग्रेजी में लिख जाने की परम्परा-सी है। और यह ठीक नहीं लगती हमें। हालाँकि मेरे ठीक लगने, नहीं लगने से खास फर्क भी नहीं पड़ेगा…मतलब अगर लेखक अगर रूसी है तो उसकी बात सीधे हिन्दी में रखी जाय और देना ही है तो रूसी में दे दी जाय, अंग्रेजी में देकर हम बार-बार कर यह डालते हैं कि उस लेखक को अंग्रेजी का लेखक बना देते हैं…शायद बात कुछ अटपटी लगे…सो पहले ही क्षमा माँग लेता हूँ…

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  2. Arvind K.Pandey

    @Nishant Mishra

    Yesterday, I had heated discussion on certain issue. One member lost his cool and I had to remind him.. “Anger is a wind which blows out the lamp of the mind.” ( Bob Ingersoll) That further infuriated him and he deleted all his statements 🙂 ..ha..ha..ha

    By the way, that’s not I wish to state here. I wish to let you know that Srimad Bhagvad Gita by the Lord Krisna has unique chapters pertaining to various ills that have hit human life. Krishna was a terrific psychologist. See Shloka 63 from Chapter Two.

    ********************

    Krodhat bhavati sammohah sammohat smriti vibhramah I
    Smriti bhramshat buddhi nashah buddhinasat pranashyati II sloka 63

    क्रोधात् भवति संमोहः संमोहात् स्मृति विभ्रमः ।
    स्मृति भ्रंषात बुद्धि नाशः बुद्धिनाशत प्रणश्यति ।। श्लोक ६३

    From anger there comes delusion; from delusion, the loss of memory; from the loss of memory the destruction of discrimination, and with the destruction of discrimination, he is lost.

    ‘From the loss of memory there comes the destruction of discrimination’. This means that there will be destruction of the effect of efforts made earlier to attain the knowledge of the self. From the destruction of the discrimination, one becomes lost, ie., is sunk in samsara or worldliness

    http://haricharanam.blogspot.com/2011/06/ramanujas-gita-bhashyam-chapter-2-sloka_1951.html

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  3. Manoj Sharma

    जीवन बदल देने वाला लेख,
    मान्सिकरोग [मनोरोग] ,डिप्रेशन , का एक जीवाणु आज हर किसी के शरीर के अन्दर मस्ती से घूम रहा है जिसपर भी उसे मौका मिला तख्ता पलट कर अपनी सत्ता जमालेता है ,[जिसका मूल कारण क्रोध ही है ]
    आप के लेख से अगर कोई चाहे तो तख्ता पलट रोक भी सकता है ,और जो रोगी हो [ यानि तख्ता पलट हो चूका हो ] तो भी इस लेखामृत रूपी औषधि की कुछ बूंदों से जीवन बदल सकता है , / बहुत अच्छा , चलते रहिये

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  4. induravisinghj

    क्रोध उतना ही स्वाभाविक है जितना हँसना,परंतु सवाल सदा क्रोध से ही…क्या सच में क्रोध ही हर बुराई का नाम है? किंतु महत्ता,चर्चा सब सदा क्रोध पर ही…गम्भीर विषय…

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  5. Bharat Bhushan

    क्रोध के लाभालाभ हैं. यदि कुछ मन के अनुकूल न हो तो क्रोध हो आता है. क्रोध को दबाने से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. क्रोध ने करने वाले आदमी को लोग फुटबॉल बना लेते हैं. क्रोध का समुचित उपयोग ही बेहतर है. बढ़िया आलेख.

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  6. प्रवीण शाह

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    बेहतरीन आलेख, बस अपनी ओर से इतना जोड़ना चाहूँगा कि यदि क्रोध की अधिकता हो तो किसी योग्य फिजिशियन को जरूर दिखाना चाहिये… यह एक स्थापित तथ्य है कि अधिकाँश मामलों में उच्च रक्त दाब व Sympathetic Hyperdrive के कारण क्रोध का आधिक्य होता है…

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    1. shilpamehta1

      डॉक्टर को तो दिखा ही लेना चाहिए | किन्तु यह जोड़ना चाहूंगी कि रक्तचाप और क्रोध का सम्बन्ध एक तरफा नहीं – बल्कि दो तरफा है | दोनों ही एक दूसरे को बढाते हैं |

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  7. Ranjana

    काम क्रोध लोभ मोह अहंकार…ये सभी विकार माने गए हैं और सदा से ही इनसे मुक्ति की कामना ज्ञानी /साधक करते रहे हैं…परन्तु सही मायने में देखा जाय तो जबतक ये गुण एक सिमित मात्रा में व्यक्ति में अवस्थित हो और इसका व्यवहार सकारात्मक ढंग से किया जाय, यही जीवन को जीवन भी बनाते हैं…इसका आस्तित्व यदि पूर्णतः समाप्त हो जायेगा तो संभवतः सृष्टि ही समाप्त हो जायेगी..

    उदहारण के लिए किसी पर हो रहे अत्याचार पर यदि क्रोध न आये तो इसे संवेदनहीनता ही न कहेंगे..अच्छी बाते सीखने की जिज्ञासा लोभ के स्तर तक न हो तो व्यक्ति का आत्मोत्थान नहीं हो पायेगा..इसी तरह बाकी सभी के लिए भी विचार जा सकता है…

    मैं आपकी बातों का खंडन नहीं कर रही…आपकी विवेचना से पूर्णतः सहमत हूँ…बस पढ़ते समय ये विचार मन में आये ,तो सोचा सांझा कर लूँ…

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  8. Smart Indian - स्मार्ट इंडियन

    सुन्दर आलेख! अनुरोध का मान रखने का आभार! इसी सप्ताहांत क्रोध के बारे में अपने अनुभव साझा करने की बात पर एक मित्र ने कहा कि क्रोध वह है जिसे करने के बाद बुद्धिमान व्यक्ति को दुःख अवश्य होता है। मुझे ऐसा लगता है कि ज्यों-ज्यों हम शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, आर्थिक, सामाजिक आदि रूपों से सक्षम होते जाते हैं, हमें क्रोध दिलाने के कारण कम होते जाते हैं। आत्म-मोह, के साथ-साथ अक्षमता, असहायता, अतृप्ति, पीड़ा, अति-अहंकार आदि की भावनायें क्रोध का कारण बनती हैं।
    तिक न्यात हंह की कहानी ने अनायास ही हँसा दिया।

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  9. Nimish Kapoor

    Krodh ek manviya gun hai. Ise kam to kiya jaa sakta hai par khatm nahi kiya jaa sakta. Doosre par shak karna, apna manchaha kaam na hone par pareshaan hona, kisi ki baat ya vyavhaar ko bardasht naa kar pana kroodh ko janm deta hai. Krood par hamare saahitya me kafi shhodh ho chuka hai. Mera sujhav hai ki yadi kekhak krrodh ko kam karne wale sujhavon par patkon ka dhyaan aakarshit karen aur aise “Prathmik Upchaar” ki padtal karen jisse loog ek doosre par shak na karen aur kisi par kroodh aane par usse shanti se baat karen aur kroodh ka samadhan karen to, mere khyaal se behtar hoga.

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  10. Gopal Mishra

    Krodh pae ye lekh achha laga.maine apne bog par Anger Quotes ka sankalan kiya hai. jisme se mera pasandida quote hai:
    Quote 14 :For every minute you remain angry, you give up sixty seconds of peace of mind.

    In Hindi : हर एक मिनट जिसमे आप क्रोधित रहते हैं, आप ६० सेकेण्ड की मन की शांति खोते हैं.

    Ralph Waldo Emerson राल्फ वाल्डो इमर्सन

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