बहुत पुरानी बात है. कहीं एक चूहा रहता था जो बिल्लियों से बहुत डरता था. वह एक ओझा के पास गया और बोला, “मुझे बिल्लियों से बहुत डर लगता है. कृपया मुझे भी एक बिल्ली बना दें ताकि मैं उनसे भयभीत न रहूँ.”
ओझा को चूहे पर दया आ गयीं और उसने चूहे को बिल्ली में बदल दिया. चूहे (बिल्ली) ने ओझा को धन्यवाद कहा और अपने रास्ते चल दिया.
कुछ दिनों बाद चूहा (बिल्ली) ओझा के पास फिर आया और बोला, “मैं बिल्लियों से नहीं डरता लेकिन अब मुझे कुत्ते बहुत सताते हैं.” ओझा ने चूहे (बिल्ली) को कुत्ते में बदल दिया.
चूहा (बिल्ली/कुत्ता) कुछ दिन बाद फिर से ओझा से मिलने आ गया और बोला, “मैं जंगल में नहीं जा सकता क्योंकि वहां भयानक शेर रहता है. वह मुझे खा जायेगा. आप मुझे शेर में बदल दें तो बड़ी कृपा होगी.” ओझा ने पिंड छुड़ाने के लिए उसे शेर में बदल दिया. चूहा (बिल्ली/कुत्ता/शेर) भयंकर गर्जना करते हुए वहां से चला गया.
कुछ दिनों के बाद परेशान चूहा (बिल्ली/कुत्ता/शेर) फिर से ओझा के सामने आ खड़ा हुआ और बोला, “जंगल में मैं सबसे ताकतवर हूँ लेकिन शिकारियों के तीरों का सामना नहीं कर सकता. अब मैं क्या करूं?”
बार-बार की शिकायतों से तंग आकर ओझा ने चूहे (बिल्ली/कुत्ता/शेर) को फिर से चूहे में बदल दिया और कहा, “तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता क्योंकि तुम्हारे भीतर चूहे की आत्मा है.”
हर पल मौत से डरने वाला व्यक्ति चूहे की आत्मा ही तो है. पुरानी कहानी में से नई बात पैदा की है. बहुत खूब.
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खोदा पहाड़ और निकली चुहिया की तरह…
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🙂 रोचक सीख!
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बदलाव अन्दर से हो,तभी फ़र्क पड़ता है !
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“Essence” of anything-can it be modified? or is it there for once and all?
this is the question the post left me with.
the title is doubly assertive as well. 🙂
another meaningful, plain, deep n lovely post from you!
thanks!
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यह तो संस्कृत की कथा ‘मूषक: पुनर्मूषको भव:’ में की गई छेड़छाड़ है…उसमें है कि जब चूहा बाघ बन जाता है तब भी बार-बार मुहल्ले वाले कहते हैं कि देखो इस साधु ने इस चूहे को बाघ बना दिया…यह सुनते-सुनते चूहा एकदिन साधू पर गुस्सा कर उसी को मार देना चाहता है…जैसे ही मारना चाहता है…साधू उसे फिर चूहा बना देता है…
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बहुत अच्छी प्रस्तुति…
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wah….,,, bahut accha .
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जब छोटा था तब ये कहानी पढ़ी थी पर तब उसका मतलब नहीं समझ सका, आज आपने याद दिलाई तो समझ आया की मन मैं हिम्मत होनी चाहिए, शरीर तो ऐसे ही बड़ा हो जाता है
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आवश्यक्ता हो या आशा, अन्ततः मात्र इच्छा ही तो है। खत्म नहीं होती इसलिए तृष्णा कहलाती है। और तृष्णाएँ कभी नहीं मिटती।
संतोष और साहस हो तो कुछ भी हीन अथवा दुष्कर नहीं है।
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Bahut achhi kahaani hai…baahri badlav se kuch nahi hota…andar kya hai ye matter karta hai…aisi hi ek gadhe wali kahani hai jisme wo sher kii khaak paa jata hai…Thanks Nishant ji
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सच है, शरीर बदल जायेगा, आत्मा कहाँ से बदलेगी।
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kya baat kahi hai hum ko ander se majboot hona hoga bahar se roop badalne se kuch nahi hone wala………..
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उसका मतलब नहीं समझ सका….!
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पुनर्मूषको भव: !
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Always a blessing to read your blog posts, always. Thank you,
Caine
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हाहाहा… मजेदार और साथ ही शिक्षाप्रद भी…
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in this post तुम्हारे भीतर चूहे की आत्मा है, this does not give us right meaning.
The comments of Santosh trivedi gives us the teaching of this post. Does SOUL changes according to BODY ? NO ! Body changes But SOUL remains.
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Very inspiring story. Thank you.
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CHOOHA CHOOHA HI RAHAGA CHAHE USE BILLI BANA DO YA BAGH.
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[…] में एक संस्कृत की कहानी पढ़ी थी-पुर्नमूषको भव:, जो आज 24 घंटे से भी कम समय के लिए दुबारा […]
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[…] में एक संस्कृत की कहानी पढ़ी थी-पुर्नमूषको भव:, जो आज 24 घंटे से भी कम समय के लिए दुबारा […]
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