फूल आते हैं, चले जाते हैं. कांटे आते हैं, चले जाते हैं. सुख आते हैं, चले जाते हैं. दुख आते हैं, चले जाते हैं. जो जगत के इस ‘चले जाने’ के शाश्वत नियम को जान लेता है, उसका जीवन क्रमश: बंधनों से मुक्त होने लगता है.
एक अंधकारपूर्ण रात्रि में कोई व्यक्ति नदी तट से कूदकर आत्महत्या करने का विचार कर रहा था. वर्षा के दिन थे और नदी पूर्ण पर थी. आकाश में बादल घिरे थे और बीच-बीच में बिजली चमक रही थी.
वह व्यक्ति उस देश का बहुत धनी व्यक्ति था, लेकिन अचानक घाटा लगा और उसकी सारी संपत्ति चली गई. उसके भाग्य का सूरज डूब गया था और उसके समक्ष अंधकार के अतिरिक्त और कोई भविष्य नहीं था.
ऐसी स्थिति में उसने स्वयं को समाप्त करने का विचार कर लिया था. किंतु वह नदी में कूदने के लिए जैसे ही चट्टान के किनारे पर पहुंचने को हुआ कि किन्हीं दो बूढ़ी लेकिन मजबूत बांहों ने उसे रोक लिया. तभी बिजली चमकी और उसने देखा कि एक वृद्ध साधु उसे पकड़े हुए है.
उस वृद्ध ने उससे इस निराशा का कारण पूछा और सारी कथा सुनकर वह हंसने लगा और बोला, ”तो तुम यह स्वीकार करते हो कि पहले तुम सुखी थे?” वह व्यक्ति बोला, ”हां, मेरा भाग्य-सूर्य पूरे प्रकाश से चमक रहा था और अब सिवाय अंधकार के मेरे जीवन में और कुछ भी शेष नहीं है.”
वह वृद्ध फिर हंसने लगा और बोला, ”दिन के बाद रात्रि है और रात्रि के बाद दिन. जब दिन नहीं टिकता, तो रात्रि भी कैसे टिकेगी? परिवर्तन प्रकृति का नियम है. ठीक से सुन लो – जब अच्छे दिन नहीं रहे, तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे. और जो व्यक्ति इस सत्य को जान लेता है, वह सुख में सुखी नहीं होता और दुख में दुखी नहीं. उसका जीवन उस अडिग चट्टान की भांति हो जाता है, जो वर्षा और धूप में समान ही बनी रहती है.”
सुख और दुख को जो समभाव से ले, समझना कि उसने स्वयं को जान लिया. क्योंकि, स्वयं की पृथकता का बोध ही समभाव को जन्म देता है. सुख-दुख आते और जाते हैं, जो न आता है और न जाता है, वह है, स्वयं का अस्तित्व, इस अस्तित्व में ठहर जाना ही समत्व है.
ओशो के पत्रों के संकलन ‘पथ के प्रदीप’ से. प्रस्तुति – ओशो शैलेन्द्र.
सब दिन जात न एक समान! सुबह-सुबह यही सीख मिली इस पोस्ट से।
पसंद करेंपसंद करें
सुख दुखे समे कृत्वा, लाभालाभौ जयाजयो..
पसंद करेंपसंद करें
हाँ, इसे हर जगह स्वीकार करना ठीक नहीं होगा…क्योंकि यह विकास के पथ में बाधा है…
पसंद करेंपसंद करें
I wrote on a similar theme yesterday.
plz do see https://personalconcerns.wordpress.com/2011/10/18/threads/
my take on the issue was a bit different though 🙂
पसंद करेंपसंद करें
sunder , sukh – dukh samaan bhave se dekhne wala sahi mayne me aanand ko prapt karta H.
पसंद करेंपसंद करें
‘सुखे दुखे समे कृत्वा ,लाभालाभौ जयाजयौ ….’
पसंद करेंपसंद करें
बहुत अच्छे सुख और दुख मे बहुत ज्यादा वीचलीत नही होना चाहीये
पर प्रयाशरत रहना चाहीये
पर मनुष्य स्वभाव ह सुख से वह सन्तुसट नही होता और सुख का पूर्ण आनंद नही ले पाता ह
पसंद करेंपसंद करें
परिवर्तन ही प्रकृति है…
पसंद करेंपसंद करें
ग़म और खुशी में फर्क न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मुकाम पे लाता चला गया
प्रत्येक व्यक्ति को यही करना होता है ताकि वह सुख-दुख से बरी हो जाए. परंतु कहना आसान है. यह मार्ग कठिन मानसिक अनुशासन माँगता है. बढ़िया प्रस्तुति.
पसंद करेंपसंद करें
Sukh Dukh Geet
पसंद करेंपसंद करें
ये भी गुजर जायेगा!
पसंद करेंपसंद करें
I agree with this story. It is very inspiring.
पसंद करेंपसंद करें
jo manusya sukh aur dukh me saman bhav se rahta hai vahi vakti sukhi hai.
पसंद करेंपसंद करें