(यह पोस्ट कई दिनों से ड्राफ्ट में कुछ वृद्धि और सुधार का इंतज़ार कर रही थी. संयोग देखिये कि कल ही मुझे भाई अनुराग शर्मा की यह पोस्ट और टाइनी बुद्ध की यह पोस्ट मिल गयी जिसमें इस वाकये का वर्णन है. अपनी टालमटोल की आदत पर अफ़सोस होता है. अब हमेशा के लिए ड्राफ्ट में रखने से अच्छा यह है कि इसे दोनों पोस्टों के घालमेल के साथ पोस्ट कर दिया जाए.)
भारत में मेट्रो रेल की बढ़िया शुरुआत हुए अभी एक दशक भी नहीं बीता है. लाखों लोग रोजाना खचाखच भरे प्लेटफॉर्म पर गाड़ी के आने का इंतज़ार करते हैं. इनमें से कुछ के मन में तो यह बात कभी-न-कभी आई होगी, “यदि मैं कभी भीड़ की धक्कामुक्की के कारण ट्रैक पर गिर जाऊं और तभी ट्रेन आ जाए तो क्या होगा?”.
बढ़िया सवाल है. लेकिन एक सवाल और है जो शायद कोई भी खुद से नहीं पूछता, और वह है, “अगर कोई मेरे सामने ट्रैक पर गिर जाए और तभी ट्रेन आ जाए तो क्या मैं उसे बचाने के लिए कूदूँगा?”
पचास वर्षीय भूतपूर्व नेवी कर्मी और निर्माण श्रमिक वेस्ली औट्री ने प्लेटफॉर्म पर यह दोनों सवाल खुद से पूछे और उसे इनका उत्तर भी तुरंत ही मिल गया.
चार साल पहले वेस्ली औट्री न्यूयॉर्क के मैनहटन स्टेशन पर अपनी दो छोटी बच्चियों (चार वर्षीय सीशे और छः वर्षीय शुकी) के साथ सामने से आती हुई ट्रेन देख रहे थे. तभी उनके पास खड़ा एक व्यक्ति दौरे का शिकार होकर ट्रैक पर गिर गया. वेस्ली के चेहरे पर इंजन की हैडलाईट पड़ रही थी. “मुझे उसी समय निर्णय लेना पड़ा”, वेस्ली ने कहा.
वेस्ली ने छलांग लगा दी. वेस्ली ने उस युवक को ट्रैक के बीच बनी कुछ इंच गहरी नाली में खींच लिया. ज़ोरदार आवाज़ के साथ ट्रेन के ब्रेक लगे लेकिन वह रुक नहीं पाई.
पांच डब्बे उनके सिरों को बस छूते हुए ही ऊपर से गुज़र गए. गंदगी से सनी अपनी टोपी उतारते हुए वेस्ली ने चीख रही भीड़ से कहा, “हम ठीक हैं, लेकिन वहां मेरी दोनों बेटियां हैं, उन्हें बता दो कि उनके पापा ठीक से हैं”. भीड़ में सभी हैरानी और ख़ुशी से वाहवाही कर रहे थे.
कुछ देर के लिए ट्रेक की बिजली काट दी गयी. श्रमिक उन्हें लेने के लिए नीचे उतरे. दौरे का शिकार युवक न्यूयोर्क फिल्म अकादमी का एक छात्र था. उसे अस्पताल ले जाया गया. उसके दादा ने बताया कि उसे केवल मामूली चोट और खरोंचें ही आईं थीं.
वेस्ली ने मेडिकल सहायता लेने से यह कहकर इनकार कर दिया कि उन्हें कुछ नहीं हुआ. अपनी रात की शिफ्ट पर जाने से पहले उन्होंने युवक से कहा, “मुझे नहीं लगता कि मैंने कोई कारनामा कर दिखाया है. तुम्हें उस समय मदद की ज़रुरत थी, और मैंने वही किया जो मुझे करना चाहिए था.”
नायकत्व पर अनुराग शर्मा की बेहतरीन श्रृंखला पढ़ते समय उसमें अदम्य साहस के लक्षण का उदाहरण हमें वेस्ली के कारनामे में मिलता है.
रोम्यां रोलां ने नायक की परिभाषा दी है, “नायक वह व्यक्ति है जो ऐसे कार्य करता है जो वह कर सकता है”.
भारत में भी मैंने समाचार पत्रों और टीवी में दूसरों के जीवन को बचानेवाले बहादुर व्यक्तियों के अद्भुत किस्से देखे हैं. कुछ मामलों में अपने जीवन को खतरे में डालनेवाले व्यक्ति अपनी जान से हाथ धो बैठे. वे सभी साधारण व्यक्ति ही होते हैं. उनमें से शायद ही किसी ने आर्मी या पुलिस की कोई ट्रेनिंग ली हो. वीरता के अतिरिक्त उनका सबसे बड़ा गुण यह है कि बिजली की गति से अपना निर्णय ले सके.
एक प्रसिद्द मनोविश्लेषक के अनुसार हम सभी ऐसा नायकत्व दिखा सकते हैं. और इसके लिए यह ज़रूरी नहीं है कि हम स्वयं को किसी तरह के खतरे में डालें. मानव प्रकृति पर अध्ययन करनेवालों ने इस विषय पर शोध किया है कि क्यों कुछ मनुष्य करुणापूर्ण और कुछ मनुष्य क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते हैं. उनके अध्ययन से यह पता चलता है कि हम सबके भीतर अच्छाई और बुराई कम-ज्यादा निहित रहती है और यह परिस्तिथियों से संचालित होती है.
इस पोस्ट के परिप्रेक्ष्य में नायक वह व्यक्ति है जो आपदा और संकट के क्षणों में अन्य व्यक्तियों की प्रतिक्रियाओं के लिए प्रतीक्षा नहीं करता. किसी मित्र या अपरिचित व्यक्ति की सहायता के लिए तत्पर हो उठने के लिए ऐसे व्यक्ति को करुणावान होना आवश्यक है. यह नायक अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध खड़ा हो उठता है, वह औरों द्वारा कदम उठाये जाने की राह नहीं तकता. कुछ भी करने से पहले उसके मन में कोई पुरस्कार या पारितोषक पाने की लालसा नहीं उठती.
दुनिया में बहुत बड़े-बड़े द्वंद्व चल रहे हैं. बहुतेरी अन्यायी एवं अत्याचारी शक्तियां इतनी बर्बर हो चुकी हैं कि उनके समक्ष स्वयं को शक्तिहीन समझने में लोगों को शर्मिन्दगी नहीं होती. विरलों में ही इनका विरोध करने का साहस जागता है. वही नायक कहलाते हैं… बन जाते हैं.
क्या आप ऐसा नायक बनना चाहते हैं?
Photo by Amos Bar-Zeev on Unsplash
इस पोस्ट के परिप्रेक्ष्य में नायक वह व्यक्ति है जो आपदा और संकट के क्षणों में अन्य व्यक्तियों की प्रतिक्रियाओं के लिए प्रतीक्षा नहीं करता. किसी मित्र या अपरिचित व्यक्ति की सहायता के लिए तत्पर हो उठने के लिए ऐसे व्यक्ति को करुणावान होना आवश्यक है. यह नायक अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध खड़ा हो उठता है, वह औरों द्वारा कदम उठाये जाने की राह नहीं तकता. कुछ भी करने से पहले उसके मन में कोई पुरस्कार या पारितोषक पाने की लालसा नहीं उठती.
exactly
this is the real truth
people like to walk behind each other follow each other and in the process they forget this
nishant
look at your own writing and compare it with the recent happenings of this blog world
u will find many a similarities
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बहुत प्रेरक पोस्ट।
नायकत्व अवसर मिलने पर ही प्रकट होता है। जरूरत तैयार रहने की है।
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प्रत्येक व्यक्ति में एक नायक होता है जो उसकी प्रकृति के अनुसार अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति में जाग उठता है. कई बार अढ़ाई फुट का बच्चा अपने 6 फुटे के दैत्याकार पिता के अत्याचार के विरुद्ध उठ खड़ा होता है. बढ़िया पोस्ट.
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बहुत ही प्रेरणादायी पोस्ट है , असल जीवन में दुस्साहस करके दूसरों के लिए कुछ कर गुजरने वाला व्यक्ति ही नायक है , बेहतरीन पोस्ट ।
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very nice.
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करुणापूर्ण स्वभाव ही वह धरा है जिस पर साहस की खाद से नायकत्व उभर आता है।
जिनके हृदय में करूणा नहीं, चाहे लाख अवसर आए, अन्दर से नायकत्व प्रस्फुटित नहीं हो सकता।
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बहुत सुन्दर! सटीक उदाहरण और वैसा ही विश्लेषण! साहस, उदारता और ईमानदारी के बिना नायक कैसे बना जाय भला! कबीर के कुछ शब्द, यूँ ही रैंडम चयन
ये तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाहिं
सीस उतारे भुई धरे, तब बैठे घर माँहि (साहस)
सूरा सोइ सराहिये जो लड़े दीन के हेत
पुर्जा-पुर्जा कट मरै तऊँ न छाँड़े खेत (उदारता)
कबीर तो सांचै मतै, सहै जो सनमुख वार
कायर अनी चुभाय के, पीछे झखै अपार (जैसा हूँ वैसा ही दिखना)
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A good Blog posting define the leader.. A appreciate to thought of the writer but controversy in the some point like wise..
दुनिया में बहुत बड़े-बड़े द्वंद्व चल रहे हैं. बहुतेरी अन्यायी एवं अत्याचारी शक्तियां इतनी बर्बर हो चुकी हैं कि उनके समक्ष स्वयं को शक्तिहीन समझने में लोगों को शर्मिन्दगी नहीं होती. विरलों में ही इनका विरोध करने का साहस जागता है. वही नायक कहलाते हैं… बन जाते हैं. ..
Leader is not who has courage of going to against the world…..but lead ship is the motivate to self for doing the good job like that Wesley Autrey
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Heroes and leaders may share many qualities and characteristics but this post is specifically dealing with heroes. All leaders can be called heroes but all heroes may not choose to become leaders.
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Good post…indeed not all heroes choose to become leaders. _/|_
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In my opinion this type of leadership or understanding is god gifted, it can not be developed suomotto. However one should try to be like that bcose it is the real duty of human being. This is actually manhood. We should pray to god to develop this type of leadership. The man is actually meant for man. This is the call of huminity. Thanks to the writer of this post. I also pray to my almighty to pour down that sort of sences.
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bahut sundar
sadar
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वहां वह लेख और यहाँ यह…
मुझे लगता है यदि बारम्बार व्यक्ति ऐसी बाते पढ़ते देखते सुनते रहे तो उसके भीतर का नायक भी जाग उठेगा और स्व से आगे बढ़ अपर के लिए वह सोचने और करने लगेगा…क्योंकि नायक और खलनायक सबके भीतर है..अब बात यह है कि कौन कितना जाग्रत है..कौन उस व्यक्तित्व पर अपना अधिपत्य रखता है…
आप दोनों को ही इन प्रेरक आलेखों के लिए कोटिशः आभार..
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नायक कोई बनता नहीं जन्म से होता है !
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नायक जन्म से कैसे हो सकता है कोई? वह बनता है, हाँ उसे समय सहायता कर देता है।
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माफ़ कीजिएगा परन्तु मैं इसमें अरविन्द जी के साथ हूँ की नायक कोई नहीं बन सकता, ये गुण तो बचपन से ही आता है, कोई नायक है तो बिन ट्रेनिंग के भी कुछ कर जाता है, और अगर कोई नहीं है तो फिर चाहे आप उसे कितनी भी त्रिनिंग दे दें वो कुछ नहीं कर पाएगा, ये जज्बा तो दिल के अन्दर होता है इसे कोई पैदा नहीं कर सकता
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हमारा समाज ऐसे ही नायकों की वजह से जीवंत है। संवेदनाएँ जिनमें जीवित हैं उन्हीं से नायकत्व की अपेक्षा की जा सकती है।
जहाँ तक जन्म से नायक होने का प्रश्न है, कुछ जन्म से होते हैं, कुछ को परिस्थितियाँ बना देती हैं (जैसे कोइ काम न करने वाला युवक, परिवार की जिम्मेदारी आने पर सफल व्यवसाय करे और पूरे परिवार का पोषण करने लगे)। प्रशिक्षण से कोइ नायक नहीं बन सकता, लेकिन नायक को यदि प्रशिक्षण न हो तो वो कोइ खास काम करने का कितना ही साहस कर ले, चपलता कर ले, आवश्यक नहीं कि उस कार्य को कर पाये।
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एक क्षण के निर्णय का निरूपण है नायकत्व।
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निशान्त भाई,
फिर पढ़ा इसे। नायक का उदाहरण तो काफ़ी प्रेरक है। सुन्दर कथा लेकिन क्या हमें भी ऐसा नहीं होना चाहिए? और नायक कोई होता नहीं , बनता है। अलौकिकताओं में जीना हमेशा नियतिवादी बनाकर पटक देता है। साहस तो नायक और खलनायक दोनों में होता है, अब हम उसे जो नाम दे दें। कुछ लोग गॉड गिफ़्टेड के चक्कर में रहते हैं लेकिन कुछ भी ऐसा नहीं हो सकता। कोशिशें और इच्छाएँ नायक बना देती हैं। वरना एक लफ़ंगा कमाल पाशा तुर्की में नायक नहीं बन जाता। इस पर विवाद क्यों करें अब हम सब…बस अपने नायकत्व को आगे बढ़ाएँ, है तो अवश्य हो, उसे जगाएँ न हो तो पैदा करें। वह पैदा होता है, पैदा होगा।
अब वेस्ली को ही देखिए…
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नायक जन्म से नहीं होता , सामान्य व्यक्ति भी विशेष परिस्थिति में नायक के गुण अपना लेता है मगर क्षण विशेष में उपजा नायकत्व स्थाई नहीं होता !
अपने गुणों को लगातार परिमार्जित करते हुए नायक बना जा सकता है .
प्रेरक पोस्ट.
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Nayak: haan ye shabd hi hai jo aap sabhi logon ko is post pe comment karne ke liye utsahit kiya…nahi to aisi kahaniyon ko aap logon ne pahle bhi kai baar suna hoga ya pratayksha dekha hoga…bilkul is shabd ke bhav hi aise hain jo hume prerit karten hain… agar aap mein ye bhav kuchh der ke liya bana rah jata hai to aap nayak ban jaten hain…nahi to bhav aate jaate rahten hai… 🙂
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Thanks Nishant for adding the video clip.
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