स्मरण रहे कि मैं मूर्छा को ही पाप कहता हूं. अमूर्च्छित चित्त-दशा में पाप वैसे ही असंभव है, जैसे कि जानते और जागते हुए अग्नि में हाथ डालना. जो अमूच्र्छा को साध लेता है, वह सहज ही धर्म को उपलब्ध हो जाता है.
संत भीखण के जीवन की घटना है. वे एक रात्रि प्रवचन दे रहे थे. आसोजी नाम का एक श्रावक सामने बैठा नींद ले रहा था. भीखण ने उससे पूछा- “आसोजी! नींद लेते हो?” आसोजी ने आंखें खोलीं और कहा- “नहीं महाराज!”
थोड़ी देर और नींद फिर वापस लौट आई. भीखणजी ने फिर पूछा- “आासोजी, सोते हो?” फिर मिला वही उत्तर- “नहीं महाराज”. नींद में डूबा आदमी सच कब बोलता है!? और बोलना भी चाहे तो बोल कैसे सकता है!? नींद फिर से आ गई.
इस बार भीखण ने जो पूछा वह अद्भुत था. उसमें बहुत गहरा अर्थ है. प्रत्येक को स्वयं से पूछने योग्य वह प्रश्न है. वह अकेला प्रश्न ही बस सारे तत्व-चिंतन का केंद्र और मूल है. भीखण जी ने जोर से पूछा- “आसोजी! जीते हो?”
आसोजी तो सो रहे थे. निद्रा में सुनाई दिया होगा कि वही पुराना प्रश्न है. नींद में ‘जीते हो’, ‘सोते हो’ जैसा ही सुनाई दिया होगा! आंखें मिचमिचाईं और बोले- “नहीं महाराज!”
भूल से सही उत्तर निकल गया. निद्रा में जो है, वह मृत के ही तुल्य है. प्रमादपूर्ण जीवन और मृत्यु में अंतर ही क्या हो सकता है? जाग्रत ही जीवित है. जब तक हम विवेक और प्रज्ञा में जागते नहीं हैं, तब तक हम जीवित भी नहीं हैं.
जो जीवन को पाना चाहता है उसे अपनी निद्रा और मूच्र्छा छोड़नी होगी. साधारणत: हम सोये ही हुए हैं. हमारे भाव, विचार और कर्म सभी मूर्छित हैं. हम उन्हें इस प्रकार किये जा रहे हैं जैसे कि कोई और हमसे करा रहा हो. जैसे कि हम किसी गहरे सम्मोहन में उन्हें कर रहे हों. जागने का अर्थ है कि मन और काया से कुछ भी मूर्छित न हो – जो भी हो वह पूरी जागरूकता और सजगता में हो. ऐसा होने पर अशुभ असंभव हो जाता है और शुभ सहज ही फलित होता है.
ओशो के पत्रों के संकलन ‘पथ के प्रदीप’ से. प्रस्तुति – ओशो शैलेन्द्र. (featured image)
बहुश्रुत बहुज्ञ ओशो की मेधा पर आश्चर्य होता है ! सोचता हूँ, कितना गहन अध्ययन, अनुशीलन, पारायण किया होगा उन्होंने ! कहाँ से पायी होंगी यह बोध कथायें!
मुझे तो लगता है कि ओशो ने जिन महानतम लोगों की जीवन-घटनाओं का उल्लेख बोध कथाओं के तौर पर किया है, अन्यत्र वह ढूँढे भी न मिलेंगी !
तो क्या यह उनकी स्व-निर्मिति भी हो सकती हैं ! यह अद्भुत मनीषा कुछ भी करने में सक्षम थी !
ओशो के पत्र-संकलन की इस चिट्ठे की प्रविष्टियाँ अमूल्य हैं ! आभार ।
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bahuta prernadayak katha hai… sachmuch agar ham man, vichar our karm se jaag jayen to hamse ashubh kabhi ghatit hi nahihoga….
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हमारी स्वप्नशीलता हमें सच देखने ही नहीं देती है।
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Unenlightened equals to slept and we all are slept.
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agar hum neend main such bole kabhi jagkar bhi svayam se such bolne ka sahas karen ki hamara jeevan kaha aur hame jana kaha hai to kuch karne ki jarurat hi nahi hogi.
aapki prarnasrot post ke liye dhanywad.
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बहुत अमूल्य तथा प्रेरणादयक कथा….
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यहाँ जाग्रत अवस्था से तात्पर्य बोधप्राप्ति से है। जैसे बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य आदि साधकों को हुआ था। बाकी आमजन तो सांसारिक जीवन जी रहे हैं। इन्हे देहमुक्ति कहाँ है?
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
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शायद अपने आस पास से बेखबर रहना सबसे बडा सुख है… सोना भी एक सुख है… जागने की तकलीफ़ें बहुत हैं… आप इस संसार में तुरंत ही मिसफ़िट हो जाते हैं…
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जी महाराज।
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आँखे खोल देनी वाली टिपण्णी
धन्यवाद
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