हर धधकती लपट शांत हो जाती है.
हर बहकती जलधारा को विश्राम मिल जाता है.
कोई भी परिस्थिति कितनी ही विकट क्यों न हो, बदल जाती है. वह हमेशा नहीं रहती. इसीलिए जंगल की विकराल आग देरसबेर ख़त्म हो जाती है; उथल-पुथल भरे समुद्र में लहरें थम जाती हैं. प्रकृति की सभी घटनाएं अपने विलोम को खोजती हैं और साम्य को प्राप्त कर लेती हैं. यह संतुलनकारक प्रक्रिया ही हर उपचार का हृदयबिंदु है.
लेकिन हर प्रक्रिया अपना समय लेती है. यदि कोई घटना विशाल नहीं है तो संतुलन कायम करने के लिए कुछ विशेष नहीं करना पड़ता. कोई बड़ी बात हो जाए तो चीज़ों को अपनी धुरी तक लौटने में कई, दिन, महीने, साल, या जीवन भर भी लग सकता है. दूसरी ओर यह भी सच है कि जीवन में छोटे-छोटे असंतुलन न हों तो इसकी गति बड़ी नीरस हो जाती है. चढ़ाव और उतार पर चलती गाड़ी में ही यात्रा का आनंद आता है. सम्पूर्ण केन्द्रिकता और सम्पूर्ण संतुलन हमेशा संचार-रोध ले आते हैं. पूरा जीवन ध्वंस और उपचार की सतत धारा है.
यही कारण है कि विषम से विषम परिस्थितियों से घिरे रहने के बाद भी ज्ञानीजन शांत रहते हैं. वह परिस्थिति चाहे जो हो – बीमारी, आपदा, या क्रोध की अवस्था – वे जानते हैं कि रोग के बाद उसका निदान और उपचार भी होगा.
हर चीज समय में बँधा है, दुख भी।
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परिवर्तन ही प्रकृति है और प्रकृति ही जीवन है…
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सन्देश से बडे कलेवर में (समग्र रूप में देखने पर) पूर्ण सहमत हूँ।
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सत्य वचन , जय हो निशांत बाबा की ,
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Thanks for sharing this .
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परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है..समय कैसा भी क्यों न हो बदल ही जाता है….सार्थक संदेश देती सुन्दर रचना…….
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I love you.
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🙂
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bilkul sach hai ,, har pal ek jaisa nahi rahta…our har samsya samadhaan saath me lati hai….
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एक एक शब्द अमृत सामान….
मन तरल शीतल हो गया…
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समता और शान्ति!!
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ये कुदरत के नियम है । जीवन के बाद म्रत्यु । म्रत्यु के साथ जीवन है । सुख के साथ दुखः । जुदाई मेँ जो मजा है वो मिलन मे नही है
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True, +,- combination best combination.
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