जगत के रहस्य का ज्ञान ही मुक्ति है

house of cards

एक परिवार में आमंत्रित था. संध्या हुए ही वहां से लौटा हूं.

एक मीठी घटना वहां घटी. बहुत बच्चे उस घर में थे. उन्होंने ताश के पत्तों का एक महल बनाया था. मुझे दिखाने ले गये. सुंदर था. मैंने प्रशंसा की. गृहणी बोली, ‘ताश के पत्तों के महल की भी प्रशंसा! जरा सा हवा का झोंका सब मिट्टी कर देता है.’

मैं हंसने लगा, तो बच्चों ने पूछा, ‘क्यों हंसते हैं?’ यह बात हुई ही थी कि ताश का महल भरभरा कर गिर गया. बच्चे उदास हो गये. गृहणी बोली,’देखा!’ मैंने कहा, ‘देखा! पर मैंने और महल भी देखे हैं और सब महल ऐसे ही गिर जाते हैं.’

पत्थर के ठोस महल भी पत्तों के ही महल हैं. बच्चों के ही नहीं, बूढ़ों के महल भी पत्तों के ही महल होते हैं. हम सब महल बनाते हैं – कल्पना और स्वप्नों के महल और फिर हवा का एक झोंका सब मिट्टी कर जाता है. इस अर्थ में हम सब बच्चे हैं. प्रौढ़ होना कभी-कभी होता है. अन्यथा अधिकतर लोग बच्चे ही मर जाते हैं.

सब महल ताश के महल हैं, यह जानने से व्यक्ति प्रौढ़ हो जाता है. फिर भी वह उन्हें बनाने में संलग्न हो सकता है, पर तब सब अभिनय होता है. यह जानना कि जगत अभिनय है, जगत से मुक्त हो जाना है. इस स्थिति में जो पाया जाता है, वही भर किसी झोंके से नष्ट नहीं होता है.

ओशो के पत्रों के संकलन ‘क्रांतिबीज’ से. प्रस्तुति – ओशो शैलेंद्र

There are 14 comments

  1. Maheshwari Kaneri

    हम अच्छी तरह जानते हैं, जीवन क्षण भंगुर है,नाश वान है ठीक ताश के पत्तो की तरह फिर भी हम सपनो की दुनियां बसाते हैं उसी में खुश रहने की कोशिश करते हैं,चाहे वो अगले ही पल बिखर क्यों न जाए…. शायद यही नियति है…….

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  2. adityakshukla

    जीवन वास्‍तव में क्षणभंगुर है। इसलिए इसमें हर पल बिखराव की स्थिति बनी रहती है। हम सब जानते हैं कि मिटटी को देह को एक दिन मिटटी में मिल जाना है। फिर भी इससे मोह कैसा?

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  3. डॉ. रामकुमार सिंह

    क्रांतिबीज, क्‍या ईश्‍वर मर गया है, ध्‍यान और प्रेम आदि मेरी पसंदीदा किताबें हैं। ओशो की सहज तार्किकता आपमें भी विद्यमान है, साधु।

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