शाश्वत क्षण में छिपा है, और अणु में विराट. अणु को जो अणु मानकर छोड़ दे, वह विराट को ही खो देते हैं. क्षुद्र में खोजने से ही परम की उपलब्धि होती है.
जीवन का प्रत्येक क्षण महत्वपूर्ण है. और किसी भी क्षण का मूल्य किसी दूसरे क्षण न ज्यादा है, न कम है. आनंद को पाने के लिए किसी अवसर की प्रतीक्षा करना व्यर्थ है. जो जानते हैं, वे प्रत्येक क्षण को ही आनंद बना लेते हैं. और, जो अवसर की प्रतीक्षा करते हैं, वे जीवन के अवसर को खो देते हैं. जीवन की कृतार्थता इकट्ठी और राशिभूत नहीं मिलती है.
एक साधु के निर्वाण पर उसके शिष्यों से पूछा गया था कि दिवंगत सद्गुरु अपने जीवन में सबसे बड़ी महत्वपूर्ण बात कौन-सी मानते थे? उन्होंने उत्तर में कहा, ‘वही जिसमें किसी क्षण वे संलग्न होते थे.’
बूंद-बूंद से सागर बनता है. और क्षण-क्षण से जीवन. बूंद को जो पहचान ले, वह सागर को जान लेता है. और, क्षण को जो पा ले, वह जीवन पा लेता है.
ओशो के पत्रों के संकलन ‘पथ के प्रदीप’ से. प्रस्तुति – ओशो शैलेन्द्र
सत्यवचन!
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क्षण-क्षण जीना….जीवन को घूँट-घूँट पीने जैसा है ! वस्तुतः जीना तो यही है ही !
प्रविष्टि का आभार ।
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न जाने किस क्षण ज्ञान प्रस्फुटित हो बैठे।
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एक एक क्षण मिल कर बनता है जीवन बहुत खूब !!!!
santosh bahuwala
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true.. I agree that each n every single moment should be cherished !!!
It was a a thoughtful n intriguing read.
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हर क्षण एक सम्पूर्ण जीवन सम होता है। हर क्षण जीवन को प्रभावित करता है। इसलिए हर क्षण मूल्यवान है।
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क्षण-क्षण से जीवन बनता है,सत्य किंतु हम इससे कितने अनभिज्ञ…
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मेरी समझ से बाहर।
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ओशो की खंडनात्मक प्रतिभा बहुत प्रखर और मुखर थी ..इसलिए उन्हें चिढाने के लिए (जैसे बच्चे दादा बूढों को खेल खेल में चिढाते हैं ) मैं उनकी कई बातों का खंडन करने में बालसुख पाता हूँ ….. 🙂
सनातनी भारतीय क्षण वादी नहीं हैं यद्यपि यह सही है कि जो क्षण में जीना सीख गया वह जीने का शाश्वत सारभूत पा गया -कवियों में अज्ञेय क्षणवादी थे…..मगर शाश्वत भारतीय मूल्य अलग है -यहाँ मनुष्य अपनी यशः काया,वंश परम्परा ,पुनर्जन्म तक का कायल है …वह अपने कार्यों के आलोक में भी देहत्याग के बाद जीवित बने रहने का आकांक्षी है -लोग तालाब ,मंदिर बनवाते हैं .राहों पर पेड़ लगवाते हैं ,शिक्षा संस्थान ,अस्पतालों की नींव रखते हैं -किसलिए ? क्या क्षणों में जीने के लिए ?
भारतीय मनीषा काल निरपेक्ष गतिविधियों में खुद के होने का अर्थ तलाशती है… वह क्षणवादी नहीं है दद्दा जी!
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You are right 🙂
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समय का मूल्य जो पहचान गया,वही समय से जीत गया !
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