विलिस्टन फिश की वसीयत

लगभग 125 साल पहले अमेरिका में विलिस्टन फिश नामक एक मामूली लेखक रहता था. वह वकालत और व्यापार में भी असफल रहा. उसकी लिखी कोई किताब न तो कभी छपी न ही किसी ने पढ़ी. उसके मरने के बाद उसके कागज-पत्तरों में उसकी लिखी एक वसीयत मिली. यह पहली बार एक पत्रिका में 1898 में प्रकाशित हुई. इंटरनेट पर इस वसीयत के कई वर्जन हैं. मैंने पता नहीं किस वर्जन का कभी अनुवाद किया था. यह सवाल सामने आया तो फिश की वसीयत ध्यान में आ गई.

मैं दुनिया को वही देकर जाऊंगा जो फिश देकर जाना चाहता था. ये रही उसकी वसीयत, जो मेरी भी वसीयत होगीः

  1. सबसे पहले अच्छे माताओं और पिताओं को अपने बच्चों को देने के लिए प्यारे-प्यारे निराले नाम और प्रशंसा के मीठे शब्द. माता-पिता उन्हें जिस समय जैसी ज़रूरत हो वैसे प्रयोग में लायें.
  2. यह सिर्फ़ बच्चों के लिए है वह भी तभी तक जब वे छोटे बच्चे हैं. ये चीज़ें हैं खेतों और मैदानों में खिले रंगबिरंगे खुशबूदार फूल… बच्चे उनके चारों ओर वैसे ही खेलें जैसे वे खेलना चाहें, बस काँटों से बचें. पीली सपनीली खाडी के परे झील के तट पर बिछी रेत उनकी है… जहाँ लहरों पर टिड्डे सवारी कर रहे हों और हवाओं में सरकंडों की महक घुली हो. बड़े-बड़े पेड़ों पर टिके हुए सन से सफ़ेद बादल भी मैं बच्चों के नाम करता हूँ.
  3. इसके अलावा सैंकडों-हजारों तरीकों से मौज-मस्ती करने के लिए मैं बच्चों को लंबे-लंबे दिन देता हूँ. रात को वे चाँद और सितारों से मढे हुए आसमान और आकाशगंगा को देखकर स्तब्ध हो जायें – और… (वैसे रात पर प्रेमियों का भी उतना ही हक है) मैं हर बच्चे को यह अधिकार देता हूँ कि वह अपने लिए एक तारा चुन ले. बच्चे के पिता की यह जिम्मेदारी होगी कि वह बच्चे को उस तारे का नाम बताये ताकि बच्चा उसे कभी न भूले, भले ही वह पूरा ज्योतिर्विज्ञान भूल जाए.
  4. थोड़े बड़े लड़कों के लिये – ऐसे बड़े-बड़े मैदान जहाँ वे गेंद से खेल सकें, बर्फ से ढकी चोटियाँ जहाँ चढ़ना मुनासिब हो, झरने और लहरें जिनमें उतरा जा सके, सारे चारागाह जहाँ तितलियों का डेरा हो, ऐसे जंगल जहाँ गिलहरियाँ फुदकें और तरह-तरह की चिडियां चहचहाएं, दूरदराज़ की ऐसी जगहें जहाँ जाना मुमकिन हो – ऐसी सभी जगहों में मिलनेवाले रोमांच पर भी लड़कों का हक हो. सर्द रातों में जलती हुई आग के इर्द-गिर्द बैठकर अंगारों में शक्लें ढूँढने का बेरोकटोक काम मैं लड़कों के सुपुर्द करता हूँ.
  5. प्रेमियों के लिये मैं वसीयत करता हूँ उनकी सपनों की दुनिया जहाँ उनकी ज़रूरत की सारी चीज़ें हों – चाँद-सितारे, लाल सुर्ख गुलाब के फूल जिनपर ओस की बूँदें हों, मादक स्वरलहरियां, और उनके प्रेम और सौन्दर्य की अनश्वरता का अहसास.
  6. युवकों के लिये मैं चुनता हूँ बहादुरी, पागलपन, झंझावात, बहस-मुबाहिसे, कमजोरी की अवहेलना और ताक़त का जूनून. हो सकता है कि वे कठोर व अशिष्ट हो जायें… मैं उन्हें इस बात की आज़ादी देता हूँ कि वे ताउम्र की दोस्ती और दीवानगी को निभाएं. उनके लिये मैंने चुने हैं रगों में तूफ़ान भर देनेवाले जोशीले गीत जिन्हें वे सब मिलकर गायें, मौज मनाएँ.
  7. और उनके लिये जो न तो बच्चे हैं, न किशोर, न युवा, और न प्रेमी… उनके लिये मैं यादें छोड़ता हूँ. सारी पुरानी कवितायें और गीत उनके हैं, उन्हें यह याद दिलाने के लिये कि उन्हें उन्मुक्त और भरपूर ऐसी ज़िंदगी जीना है जिसमें कुछ बकाया न रह गया हो. उनके लिये जो न तो बच्चे हैं, न किशोर, न युवा, और न प्रेमी… उनके लिये यही काफी है कि वे इस दुनिया को जानते रहें, समझते रहें… यह दुनिया असीम है.

तो यह थी विलिस्टन फिश की वसीयत.

कागज के इस एक पृष्ठ के लिए लोग उसे आज भी याद करते हैं. आगे भी करते रहेंगे.

फिश की ही भांति मैंने भी कुछ लिखा. कुछ मिटाया भी. इसमें मौलिक कम था और दुनिया जहान का अनुवाद थोड़ा अधिक.

लेकिन मैं चाहूंगा कि लोग मुझे याद रखें. जिस तरह लोग किसी अनाम शायर को उसके एक शेर के लिए सदियों याद रखते हैं उसी तरह मुझे भी याद किया जाए. ऐसा कुछ मैं दुनिया को देकर जाना चाहता हूं.

Photo by Steve Halama on Unsplash

 

There are 9 comments

  1. सिद्धार्थ जोशी Sidharth Joshi

    वसीयत के अनुसार मैं अपना कुछ हिस्‍सा ले चुका हूं और बाकी लेने की कोशिश कर रहा हूं। खुदा का शुक्र है कि विलिस्‍टन ने इतना छोड़ा है कि किसी से प्रतिस्‍पर्द्धा करने की जरूरत नहीं है।निशान्‍त जी एक बार फिर धन्‍यवाद।

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