मनुष्य का मन अद्भुत है. वही संसार का और मोक्ष का रहस्य है. पाप और पुण्य, बंधन और मुक्ति, स्वर्ग और नर्क सब उसमें ही समाये हुए हैं. अन्धकार और प्रकाश उसी का है. उसमें ही जन्म है, उसमें ही मृत्यु है. वही है द्वार बाह्य जगत का, वही है सीढ़ी अंतस की. उसका ही न हो जाना दोनों के पार हो जाना हो जाता है.
मन सब कुछ है. सब उसकी लीला और कल्पना है. वह खो जाए, तो सब लीला विलीन हो जाती है.
कल यही कहा था. कोई पूछने आया, ‘मन तो बड़ा चंचल है, वह खोये कैसे? मन तो बड़ा गंदा है, वह निर्मल कैसे हो?’
मैंने फिर एक कहानी कही : बुद्ध जब वृद्ध हो गये थे, तब एक दोपहर एक वन में एक वृक्ष तले विश्राम को रुके थे. उन्हें प्यास लगी तो आनंद पास की पहाड़ी झरने पर पानी लेने गया था. पर झरने से अभी-अभी गाड़ियां निकली थी और उसका पानी गंदा हो गया था. कीचड़ ही कीचड़ और सड़े पत्ते उसमें उभर कर आ गये थे. आनंद उसका पानी बिना लिए लौट आया. उसने बुद्ध से कहा, ‘झरने का पानी निर्मल नहीं है, मैं पीछे लौट कर नदी से पानी ले आता हूं.’ नदी बहुत दूर थी. बुद्ध ने उसे झरने का पानी ही लाने को वापस लौटा दिया. आनंद थोड़ी देर में फिर खाली लौट आया. पानी उसे लाने जैसा नहीं लगा. पर बुद्ध ने उसे इस बार भी वापस लौटा दिया. तीसरी बार आनंद जब झरने पर पहुंचा, तो देखकर चकित हो गया. झरना अब बिलकुल निर्मल और शांत हो गया था, कीचड़ बैठ गयी थी और जल बिलकुल निर्मल हो गया था.
यह कहानी मुझे बड़ी प्रीतिकर है. यही स्थिति मन की भी है. जीवन की गाड़ियां उसे विक्षुब्ध कर जाती हैं, मथ देती हैं. पर कोई यदि शांति और धीरज से उसे बैठा देखता है रहे, तो कीचड़ अपने से नीचे बैठ जाती है और सहज निर्मलता का आगमन हो जाता है. बात केवल धीरज और शांति प्रतीक्षा की है और ‘बिना कुछ किये’ मन की कीचड़ बैठ सकती है.
केवल साक्षी होना है और मन निर्मल हो जाता है. मन को निर्मल करना नहीं होता है. करने से ही कठिनाई बन जाती है. उसे तो केवल किनारे पर बैठ कर देखें और फिर देखें कि क्या होता है!
ओशो के पत्रों के संकलन ‘क्रांतिबीज’ से. प्रस्तुति – ओशो शैलेन्द्र Photo by Jay Castor on Unsplash
अगर मनुष्य शान्त हो जाता तो वह पशु ही रहता। मन को बेचैन रहना चाहिए। संभवत: कथा धैर्य का संदेश दे रही है।
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ऐसे उद्बोधन भरे पोस्ट समय की मांग हैं !
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मन की भी यही स्थिति है, सच देखने के लिये मन का निर्मल होना बहुत आवश्यक है।
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यथार्थ तुलना है, मन और नीर की!!, पानी का स्वभाव ही स्वच्छता और शीतलता है, वहीं अन्य स्वभाव तरलता है। जैसे एक कंकर पडनें पर शान्त जल में तरंगे उत्पन्न होती है, वैसे ही जरा सा आवेग मन को चंचल बना जाता है। जरा सी हलचल जल को गंदला बना देती है, और पुनः स्वच्छता को प्राप्त होना उसकी स्वभाविक क्रिया है। वैसे ही मन की हलचल अवनत्ति का कारण और मन की शान्ति उन्नति का कारण है। धैर्य युक्त ध्यान, मन को उसकी स्वभाविक स्थिति (शान्ति)में लाने में समर्थ है।
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Thanks for sharing this story.In this story ,it is clear how to be happy & make life peaceful.
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निशांत जी – यह कहानी है तो बहुत ही अच्छी, किन्तु यह “बुद्ध” जैसे लोगों के लिए सही बैठता है |
हम साधारण लोगों के मन तो पानी भी स्वयं ही है , तले का कीचड भी , उथल पुथल मचाने वाली गाडी भी मन खुद हैं, और उस गाडी का ड्राइवर भी हमारा मन ही है | ऐसे में पानी शांत तब ही हो सकेगा जब ड्राइवर गाडी को ठीक से चलाये और पानी को बार बार चलायमान ना करे – यह होता है गीता के अनुसार मन पर बुद्धि का नियंत्रण |
किन्तु असली शान्ति तब होगी जब पानी के नीचे कीचड हो ही नहीं – बल्कि विश्वास की साफ़ सुथरी पथरीली जमीन हो – नहीं तो बनाई गयी शान्ति तो फिर टेम्पररी ही हो सकेगी , परमानेंट नहीं (यह भी गीता के ही अनुसार – यदि हम इन्द्रियों को जबरन दबा लें – वैसी शान्ति स्थायी नहीं होती ) | झरने के नीचे की ज़मीन पथरीली और साफ़ होगी जब या तो स्त्रोत (सदगुरु,/ ईश्वर/ बुद्ध या ओशो) के इतने करीब हों कि पानी (मन) अपने पुरानी रास्ते की गन्दगी वहां जमा करने योग्य गन्दगी एकत्रित ही न कर पाया हो , या फिर झरना इतना तेज वेग वाला हो कि गन्दगी को बहा कर ले जाए |
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बेहतरीन प्रस्तुति
जल शांत है,स्वच्छ है,शीतल है और मन इसका तो सिर्फ भ्रम है…
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बस ये जो भी सीख गया समझो पार हो गया ,बहुत अच्छा ,
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Achchi kahani hai. Man ko Niyantrad me rakhna bahut hi mushkil kaam hai. khaas kar nirasha, krodh, bhay, abhimaan chand aise bhaav hai jo man ko roj marra hi galat raah par le jaane ka prayas karte rahte hai.
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बहुत सही। मन को निश्चल होने दो। तलछट बैठने की प्रतीक्षा करो!
यही करता हूं मित्र!
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इस लेख ने हालिया देखी हौलीवुड फिल्म “कराटे किड” की याद दिला दी!
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धैर्य रखकर ही किसी काम को सही तरह से किया जा सकता है !
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બહુત અચ્છા લિખા હૈ.મનકો સંયમમેં રખનેકી કોશિશ કરતે રહેના બહુત જરૂરી હૈ.
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स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ।
कल 16/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
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achchhi
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Bahut sundar rachna.. sanyam bahut jaroori hai..
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bahut sarthak aalekh.
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