ज़रा इस दृश्य की कल्पना कीजिये:
एक साधारण सा व्यक्ति, अपनी गोद में अपने बेटे को बिठाये है और साथ ही घर के पीछे के तालाब से पकड़ी गयी मछली खा रहा है. पास ही फेंकी गयी हड्डियों को खाने एक कुत्ता वहां आ पहुंचा है जिसे वह व्यक्ति लात मारकर वहां से भगाने की चेष्टा करता है.
सब यही सोचेंगे कि भला इसमें क्या असामान्य बात ठहरी, किन्तु गौतम बुद्ध के शिष्य शारिपुत्र ने इस पर कुछ ऐसी टिपण्णी की :
“वह अपने पिता का मांस खाता है और अपनी माँ को लात मारकर वहां से भगा देता है. अपने जिस शत्रु की उसने हत्या की थी, उसे ही आज गोद में बिठा कर झुला रहा है. एक पत्नी अपने ही पति की हड्डियों को चबा रही है. यह संसार एक तमाशा है.”
हुआ यूँ था कि इस व्यक्ति के पिता की मृत्यु हो चुकी थी. अपने अगले जन्म में वे उस मछली के रूप में पास ही के तालाब में उत्पन्न हुए. मछली पकड़ने गया वह व्यक्ति उसी मछली को पकड़ लाया जो पूर्वजन्म में उसकी पिता थी. वह अभी उसी मछली को मारकर खा रहा है.
उस व्यक्ति की माँ को अपने घर से बहुत लगाव था. उसकी भी मृत्यु हो चुकी थी. अपने इस लगाव के चलते ही वह महिला अपने इस जन्म में इसी व्यक्ति के कुत्ते के रूप में जन्मी थी.
इस व्यक्ति ने कभी एक अन्य व्यक्ति की हत्या की थी. मरने वाले का अपराध यह था कि उसने इस व्यक्ति की पत्नी के साथ बलात्कार किया था. इस व्यक्ति की पत्नी के प्रति मृतक की आसक्ति इतनी ज्यादा थी कि उसका पुनर्जन्म उसी महिला के पुत्र के रूप में हुआ.
अब इस सबको पुनः देखिये:
जब वह अपने पिता का मांस खा रहा था तभी कुत्ता जो अपने पिछले जन्म में उसकी माँ थी, हड्डियाँ खाने की कोशिश में लात खा बैठा था. और उसका दुश्मन उसी का बेटा बना उसी की गोदी में दुलारा जा रहा था. (featured image)
कुछ दम नहीं लगा इसमें!
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या तो यह मूलतः बुद्ध बोध कथा नहीं या किसी खास प्रसंग के संदर्भ में है. इसलिए इस रूप में यहां बेजान प्रस्तुति लगी.
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अदभुत नीति कथा है. दिमाग झन्ना गया पढ़ कर…..
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पुनर्जन्म मे विश्वास नही करने के कारण कथा सर के उपर से गुजर गयी !
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कथा पर टिप्पणी से पहले पुनर्जन्म पर विश्वास करना पडेगा 🙂
@ पुनर्जन्म के हिंदू विश्वास /तर्क के आधार पर कथा का औचित्य ?
बलात्कारी , पुत्र होकर स्नेह पा रहा है भला क्यों ? पिता का मांस और माता को लात ? अगर यह पुनर्जन्म है तो इसका औचित्य ? इस कथा से किस नीति का बोध होता है ?
@ बौद्ध भिक्षु ,
क्या संसार को तमाशा बताने मात्र के लिए पुनर्जन्म विषयक यह कथन किया गया है !
@ राहुल सिंह जी ,
संभव है इस कथा के अन्य कोई सन्दर्भ भी हों , आपके अनुमान से सहमत !
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सभी टिप्पणीकारों का धन्यवाद.
यह आवश्यक नहीं कि इस कथा को नीति कथा, बोध कथा, या केवल औचित्यपूर्ण प्रसंग के रूप में ही देखा जाए. हम इसे एक संन्यासी का दृष्टांत मान सकते हैं जो उसने कार्य-कारण प्रभाव या कर्म सिद्धांत का निरूपण करने के लिए दिया है. कर्म सिद्धांत को जानने-समझने के लिए फिर पुनर्जन्म की संकल्पना को भी सिद्ध मानना होगा. यदि आप पुनर्जन्म को खारिज कर दें तो कथा निश्चित ही निष्प्रयोजन हो जायेगी.
दृष्टांत में वर्णित घटनाओं की कठोरता/निर्ममता कथा (?) की युक्ति है.
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सम्बंधो की नश्वरता याद दिला कर संसार की मोहान्धता और आस्क्ति से तटस्थ रहने की प्रेरणा देने रूप यह प्रसंग-दृष्टांत है। कर्म-सिद्धांत एक ध्रुव सच्चाई है, सत्य तो कितना भी कठोर सम्भव है। पर पूर्वजन्म में न मानने वाले भी एक ही जन्म में रिश्तों के प्रति बदलते राग अथवा द्वेष से, सम्बंधों की नश्वरता ज्ञात कर सकते है।
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पुनः पुनः आपके परिचित आपके पास जन्म लेते रहते हैं, संभव है।
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यह संसार की ही विडम्बना है। प्रायः यह समझा जाता है कि या तो संसार से पूर्ण विरक्ति अथवा फिर संसार में पूर्ण आसक्ति ही सम्भव है। जबकि संसार के संग रहते हुए, तटस्थ भाव, निरपेक्ष भाव का विकास सम्भव है।
जैसे एक आया बच्चे का पुत्र सम पालन पोषण, देखभाल करते हुए भी उस पर अपने पुत्र के दावे का भाव नहीं आता। और अगर आ भी जाय तो वह मिथ्या मोहासक्ति ही होगी।
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मेरा दावा है जिसे ये कहानी समझ आ जाएगी ,बिना कोई सवाल किये ,समझना इस जन्म में भी वो संत है और सत्य क़े करीब है ,बहुत बडिया निशांत जी ,”ॐ नमह शिवाय “
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पुनर्जन्म के सिद्धांत में अगर कर्म-फल स्पष्ट न हो तो यूं गड्ड-मड्ड लगता है।
मेरे विचार से जैसे हमें अपने भविष्य को जानने की तलब नहीं दिखानी चाहिये, वैसे ही पूर्व जन्मों के बारे में जानने जी उत्कण्ठा नहीं होनी चाहिये।
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@ निशांत जी ,
मैंने टिप्पणी करते हुए अप्रत्यक्षतः कर्म को ध्यान में रख कर ही पूछा था कि बलात्कारी को पुत्रवत स्नेह की प्राप्ति ?
कृपया इसे अन्यथा ना लीजियेगा मेरी टिप्पणी को उन बौद्ध भिक्षु महानुभाव के प्रयोजन / आशय पर सवाल मात्र ही मानियेगा !
@ मनोज शर्मा जी ,
जी , कहानी आपको समझ में आ गयी है तो कृपया हमें भी समझा दीजिए ! सत्य के निकट पहुँचने की उत्कंठा हमें भी है 🙂
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कहानी की कल्पना समझ से परे है,उद्देश्य क्या है ऐसी कहानी बताने का…जिस प्रकरण के द्वारा इसका उद्देश्य स्थापित किये जाने की कोशिश की गयी है,वह कतई तार्किक नहीं है !अंध-विश्वासों की दुनिया से दूर ही रहें तो अच्छा है !
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The story shows the result of attachment. We take birth according to the attachments we have had in the past life. Without attachment playing our role out of choice, is what they call Enlightment.
So the Sanyasi informed just that.
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@ The story shows the result of attachment. We take birth according to the attachments we have had in the past life…
बलात्कारी को अपने हत्यारे से अटेचमेंट था ? 🙂
या फिर हत्यारे को अपनी पत्नी के आशिक से ? 🙂
पिता जी को पोखर से ? 🙂
माता जी को श्वानों से या हड्डियों से ? 🙂
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पिछले जन्मों की सारी बातें सभी को स्मरण रहें तो पता नहीं क्या होगा, शायद भला न हो इसलिये इंसान में बहुत कुछ आजीवन दबा ढंका ही रहता है। वैसे सत्याकांक्षियों के लिये वर्तमान को जानना समझना पर्याप्त
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Best story from spirituality. Its all about our past karmas and attachments that comes in happening for future so aware about lifes reality & truth. In right ways what we are seeing is not that means when we take birth over earth is by all our moha(maya) & attachment.
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दुनिया में मुख्यतया दो तरह की विचारधाएँ होती है, एक भोगवादी विचारधारा और दूसरी आत्मनियंत्रणवादी विचारधारा। यह किसी ध्रर्म सम्प्रदाय के पारिपेक्ष्य में ही नहीं बल्कि व्यक्ति व्यक्ति में भी अलग अलग होना सम्भव है। कृपया इसे व्यक्तिगत न लें पर यह सत्य है कि भोगवादी विचारधारा के लिए इस ‘अनासक्ति बोध कथा’ के मर्म तक पहुँच पाना बड़ा दुष्कर है। वहीं आत्मनियंत्रणवादी विचारधारा के लिए यह बोधदायक दृष्टांत सिद्ध है।
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टिपण्णी करने के लिये सभी का आभार.
कुछ स्पष्टीकरण:
१. यह गैर-परंपरागत रूप से संरचित कथा एक घटना विशेष की बौद्ध व्याख्या प्रस्तुत करती है.
२. सभी बौद्ध कथाएं गौतम बुद्ध द्वारा नहीं कही गयीं हैं और न ही सिर्फ उन्ही के जीवन काल तक सीमित रहीं.
३. मूल कहानी में सन्दर्भ की उपस्थिति के आभाव के चलते सन्दर्भ की स्थापना के लिए विकिपीडिया पर उपलब्ध परिभाषा सहायक हो सकती है, जिसके अनुसार “संसार” का तात्पर्य जन्म, जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म का एक सतत प्रवाह है.
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रोचक कथा. दुनिया को माया ऐसे ही तो नहीं कहते :-). सत्य असत्य, सही गलत, न्याय अन्याय, मनुष्य के बनाये हुए ही तो हैं, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए !
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यह तो संसार हे ! इश्वर ने ये सब होना लिखा था , अगर ये सब रुक जाये तो संसार भी रुक जायेगा , धरती पर पैर रखने की जगह नहीं मिलेगी , ये इश्वर ने चक्कर बनाया हे , ताकि संसार में सब समान बना रहे ! और अपनी अपनी करनी का फल पा सके ! इश्वर महान हे !
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Things are being seen as you have walked on the path of life from your birth.This is called experienced.so not need to be worry what other is saying about this story.People will get what they want from this story depend on their glasses they have to filter the things.
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इश्वर महान हे !
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If we take a water from Gaga in a pot is called Ganga jal .it is not different from which that is flowing in the Ganga River.
As we are the part of God so we are not separate from him.He is with in us.we have all the qualities as he has
1. Compassion
2.Cooperation
3. Unity with others .
we forget these qualities because we think he is separate from US.
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देर से आया हूँ, टिप्पणी करना अनुपयोगी है ! हाज़िरी भर ।
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रोचक कथा.
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Really I DONT UNDERSTAND THESE STORY TOTTALY BASIS ON HINDUSM BUT BUDHHISM ONLY SCINTIFIC BASSIS NOT SOUL , GOD ANYTHING
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satya ko udghatit karane wali gyan vardhak katha.
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yah kahani bauddha dhamma ki nahi hai. kyonki bauddha dhamma me is tarah se punarjanm nahi hai.
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Milind ji aapko kisne kaha hai ke baudh dhamma me punarjanam nahin hai, sansaar bhar mein char aise dharm dharam hai jo punarjanam ko mante hai aur wvo charon bharat se sambandh rakhte hain
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ant mati so gati ko charitarth karti ha ye katha
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