आजकल चीज़ों पर ध्यान दे पाना मुश्किल होता जा रहा है. बातें याद रखने के जितने जतन सुलभ है उन्हें भूलने के तरीके उनसे भी ज्यादा हो चले हैं. हमारे सामने अनगिनत विकल्प हैं, अनेक मार्ग हैं. इस पोस्ट को लिखते समय भी मैं किसी एक बिंदु पर फोकस नहीं कर पा रहा हूँ. मेरे सामने एक विषय है जिसपर कुछ लिखने के लिए मैंने सोचा है पर मन में कुछ और ही चल रहा है इसलिए मैंने अपनी बात की शुरुआत इस ज़ेन कहानी से करता हूँ:
एक छात्र ने ज़ेन गुरु इचू से कहा, “कृपया मेरे लिए ज्ञान की कोई बात लिख दें.”
गुरु इचू ने ब्रश उठाया और छात्र की तख्ती पर लिखा, “ध्यान दो”.
छात्र ने कहा, “बस इतना ही?”
गुरु इचू ने फिर से लिखा, “ध्यान दो. ध्यान दो”.
छात्र चिढ गया और बोला, “इसमें तो मुझे ज्ञान की कोई गहरी शिक्षा नहीं दिख रही”.
गुरु इचू ने इसपर पुनः लिखा, “ध्यान दो. ध्यान दो. ध्यान दो”.
छात्र झुंझलाकर बोल उठा, “आखिर इस ‘ध्यान दो’ का अर्थ क्या है?”
गुरु इचू ने कहा, “ध्यान देने का अर्थ है ध्यान देना”.
रचनात्मकता पर मैं पहले कुछ पोस्टें लिख चुका हूँ. इस बार मैंने लिखने के लिए जो बिंदु चुना था उसे अंग्रेजी में बहुत से लोग तीन C’s के नाम से जानते हैं. वे हैं, Clarity (स्पष्टता), Centrality (केन्द्रीयता या विषय-बद्धता), और Commitment (संकल्प). और इनके बारे में मैं संक्षेप में इतना ही कहना चाहता हूँ कि हम में से किसी के पास भी असीमित गतिविधियों के लिए असीमित समय नहीं है इसलिए हमें यह स्पष्ट रूप से पता होना चाहिए कि हम किस बारे में लिखने जा रहे हैं; हमें विषय पर केन्द्रित रहना चाहिए; और इसके साथ ही हमें एक संकल्पभाव भी मन में रखना चाहिए कि हम तय समय में अपना काम पूरा कर लेंगे. इस सबके लिए पर्याप्त ध्यान और फोकस की ज़रुरत होती है.
जैसा कि आप भांप गए होंगे, मैंने पोस्ट की शुरुआत ही कुछ ऐसी की थी… मैं सभी को वे सलाह और सुझाव देता रहता हूँ जिनपर अक्सर ही मैं खुद भी बेहतर अमल नहीं कर पाता. इस ब्लॉग की शुरुआत करते समय मेरा मन केवल आध्यात्मिक गूढ़ अर्थों वाली कहानियों में ही रमा रहता था जो धीरे-धीरे भटकता गया (यह भी ठीक ही हुआ) जिसका परिणाम यह है कि इस ब्लॉग में इतनी तरह की सामग्री का समावेश हो गया है कि यह अपनी तरह का एकमात्र हिंदी ब्लॉग बनकर उभर रहा है. लेकिन इसके बावजूद मैं यह जानता हूँ कि मैंने अपना ध्यान कई बार भटकाया है और मुझे बारंबार फोकस करने की ज़रुरत महसूस हुई है. किसी रचनात्मक काम की शुरुआत में पहले मन में विविध विचारों का आना अच्छी बात है लेकिन किसी फलदायी अंत तक पहुँचने के लिए हमें कुछ सूत्रों को पकड़कर ही काम करना पड़ता है.
मैं ऐसा ब्लॉग बनाना चाहता हूँ जिसमें हर आयु और रूचि रखनेवाले व्यक्ति के लिए प्रेरक और काम की बातों का खजाना हो. लेकिन अब मुझे यह लगता है कि यह बहुत ही श्रमसाध्य काम है और इसके लिए बहुत समय चाहिए. आपाधापी में रहने से कार्य की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
यदि हम यह सोच लें कि अगले कुछ समय तक जैसे एक महीने तक हम रचनात्मकता पर लिखेंगे, उसके बाद एक महीने ब्लौगिंग पर, फिर एक महीने नैतिकता पर तो इससे खुद पर लिखने का दबाव बढ़ जाता है. फिर कुछ समय बाद यह लगने लगता है कि हम केवल ब्लॉग में एक पोस्ट अटकाने लिखने के लिए ही लिख रहे हैं. यदि लेखन में मौलिकता कम हो तो जल्द ही ट्यूब खाली होने का खटका होने लगता है.
जीवन के छत्तीस साल… एक तरह से कहें तो यह आधा जीवन ही तो है. इतना समय बीत जाने पर अब प्रौढ़ावस्था और उसकी मुश्किलें सामने मुंह बाए खड़ी हैं. तकरीबन रोजाना ही कुछ न कुछ ऐसा होता रहता है जो ज़िंदगी को बोझिल और बेमजा करता रहता है. विवाह, बच्चे, नौकरी, उलझनें, पारिवारिक, आर्थिक, तथा व्यक्तिगत समस्याएँ – और इनके साथ ही खुद को हर दुनियावी कुटिलता और दुश्वारियों से बचने की जद्दोजहद से मेरे जैसे अनगिनत मनुष्य सर्वथा दो-चार होते रहते हैं. इस सबके बीच मेरे भीतर से यह चाह उठती रहती है कि इस ब्लॉग के माध्यम से मुझमें और सभी में शुभ संस्कारों और सरलता के बीज पड़ें, सबका जीवन ज़ेनमय बने.
कृपया पथ के साथी बने रहें.
सुंदर!
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अच्छा है। आपके अभियान के लिये मंगलकामनायें।
वैसे अभी भी आपका ब्लाग प्रेरक, रोचक और चौचक है! 🙂
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१९७५ के आस-पास पुणे के ऒशो आश्रम गया था। अंदर एक स्थान पर लिखा था‘ Shoes & Mind Leave Here’….ऒशो की यह शैली उस प्राचीन परंपरा से निकली थी जहाँ यह गुरुकुलीय प्रथा थी कि गुरु के पास जिज्ञासु भाव से जाओ न कि शंकालु भाव से अर्थात पात्र पहले से ही भरा हुआ है तो उसमें अतिरिक्त कुछ भी भरा नहीं जा सकता। ऒशो के कथन को समझना अधिक उपयोगी होगा बजाऎ उनकी शैली की अनुकृति में उलझ जाना।
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स्वागत है.
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nice me din me 1 bar jaru hindizen jarur dekh leta hu me apane sare friends ko bhi kahta hu ki jaror dekhe aap se 1 gujarish he ki aap osho ke bare me kuch kahe
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चाहे जितना जी लो,जीना बचा रह जाता है…चाहे जितना कर लो,करना बचा रह जाता है.
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thanks,I am waiting…………..
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बस ध्यान नहीं टिक पाता है, मन जीत जाता है।
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हे शान्त नहीं रहनेवाले निशान्त जी! ध्यान दिया और ध्यान देंगे।
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अभी भी आपका ये ब्लाग भी बेहद प्रेरकऔर रोचक है. नया कुछ .और करने जारहे है पढ़ कर खुशी हुई..शुभकामनायँ…..
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बढ़िया लगा यह लेख पढ़ कर …कुछ कुछ बातें तो ऐसे लगा कि आप हमारी ही कह रहे हैं जैसे कि ..मैं सभी को वे सलाह और सुझाव देता रहता हूँ जिनपर अक्सर ही मैं खुद भी बेहतर अमल नहीं कर पाता.
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आपका निर्णय यथेष्ट है। ओशो की बोध-कथाएं भी पढना रसमय-ज्ञानवर्धक रहेगा।
@ इस ब्लॉग के माध्यम से मुझमें और सभी में शुभ संस्कारों और सरलता के बीज पड़ें,
आपका सद्भाव और हितचिंतन प्रशंसनीय है।
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आप लगातार बहुत अच्छा लिखते आ रहे है. मेरा विचार है कि यह “ध्यान देना” दरअसल अपने आपको “Optimal Experience या Flow” में पहुंचाना है. एक ऐसी मानसिक अवस्था जहाँ खुद को स्थापित करके किसी भी कार्य को करना सहज हो जाता है. जिसके उलट अगर किसी मानसिक व्याधा के साथ साधारण सा भी कार्य किया जाये तो कठिन जान पड़ता है. विभिन्न धर्मों, विशेषकर बोद्ध धर्म ने इस मानसिक अवस्था को पारिभिषित करने के अच्छे प्रयास किये हैं. एक मशहूर हंगेरियन मनोवैज्ञानिक Mihaly Csikszentmihalyi ने तो जिन्दगी भर इसी अवस्था पर खोज भी की है.
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केवल लिखने के लिए लिखना अकसर लेखन-क्षमता को प्रभावित करता है लेकिन कभी-कभी ज़बरिया लेखन अन्दर से कुछ अच्छा भी निकाल लाता है !
रही बात लिखते-लिखते भटक जाने की तो यह स्वाभाविक नियम है! जब पूरा मन बन जाये,दो-चार दिन कोई विषय आपको मथे,तो आप उसे एक बार में बिना अटके-भटके लिख सकते हैं !
नए प्रयोग करते रहें जिनसे समाज को कुछ मिलता हो !
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अच्छा है. चिन्तन करते रहना चाहिये बेहतर रचनात्मकता के लिए.
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मेरे भाई आपका ब्लॉग मुझे एक हरे भरे उपवन जैसा लगता है. दिन भर की भाग दौड़ के बाद यहाँ आकर तारो ताजा हो जाता हूँ.
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अपने अनुभव के आधार पर आपको यही सुझाव दूंगी कि अपने को बांधिए मत…जब लक्ष्य सुस्पष्ट हो कि सार्थक लेखन करना है, दायरा अपने आप में ही इतना बड़ा हो जाता है कि समय के साथ स्वतः ही विषय, दृष्टिकोण सब परत दर परत खुलते से जायेंगे आपके सामने…
हम और आप लेखक नहीं हैं…हमारे हाथों तो केवल कलम भर है…लिखवाने वाला हमसे अपने मन की लिखवा लेता है…हाँ, प्रार्थना उससे करनी है कि कलम को क्षण भर के भी भटकन से रोक ले…लिखवा ले जो चाहे हमें निमित्त बनाकर…
आपका पुनीत प्रयास पूर्ण सफल हो…यही शुभेक्षा है…
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This is good news for us.
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