अस्थायित्व

after the rain clouds

तूफ़ान और झंझावात

पेड़ों और पर्वतों को ध्वस्त करते हैं,

पर आकर वापस लौट जाते हैं.

फिर हमारे कर्मों की क्या बिसात!

प्रचंड तूफ़ान जब धरती से टकराता है तब वायु और वर्षा प्रलय मचाती हैं. वृक्ष जड़ों से उखड़ जाते हैं, नदियां मार्ग बदल लेती हैं, यहाँ तक कि बड़े-बड़े पर्वत भी बिखरने लगते हैं. फिर भी ऐसे प्रकोप एक-दो दिन से अधिक नहीं ठहरते. सर्वनाश की शक्ति लेकर धावा बोलनेवाले तूफानों को भी अपना डेरा-डांडा समेटना पड़ता है.

यदि प्रकृति के कर्म और प्रयत्न दो-चार दिन भी नहीं ठहरते तो मनुष्यों की रचनाओं और उपायों का क्या कहें! सरकारें बमुश्किल चंद साल घिसटती हैं, समाज अपने नियम-कायदे बदलते देखता है, परिवार बिखरते हैं, आत्मीय संबंध कलुषित होते हैं, लोग काम-धंधे से जाते रहते हैं. सहस्राब्दियों से टिके हुए स्मारक प्रदूषण और उपेक्षा सहते हैं. सब नश्वर है. मनुष्य ऐसा कुछ नहीं कर पाते जो चिरंतन रहे.

समस्त मानवीय प्रयत्न अस्थाई हैं. वे अतीत से उधार लिए जाते हैं, वर्तमान की धारा पर सवारी करते हैं, और परिस्थितियों की आज्ञा का पालन करते हुए लुप्त हो जाते हैं. वस्तुओं की क्षणभंगुर प्रकृति का ज्ञान रखते हुए उनसे लय मिलाकर चलना सर्वोत्तम नीति है.

There are 12 comments

  1. sugya

    “वस्तुओं की क्षणभंगुर प्रकृति का ज्ञान रखते हुए उनसे लय मिलाकर चलना सर्वोत्तम नीति है.”

    दार्शनिक, अध्यात्मिक और व्यवहारिक सूत्र!!!!! एक साथ!!!! अद्भुत!!अद्भुत!!अद्भुत!!

    पसंद करें

  2. नीति

    यही दार्शनिकता शायद ‘यह भी गुज़र जायेगा ‘ वाली कहानी से मिलती हुई है! जैसे की एक टिपण्णी में कहा गया था कि यह कुछ नकारात्मक सोच है! क्या ‘गुज़र जायेगा’ के बजाये यह सोचना न ठीक होगा कि जब तक है जो है उसे तो भरपूर ख़ुशी से जी लूं? कल हो न हो मेरी बला से , आज अभी तो है ! फिर चाहे जितने भी बदलाव आयें सृष्टि तो अभी तक बनी हुई है , मनुष्य भी है सैंकड़ों सालों से, संस्कृति भी है , समाज भी , नियम भी ! जो बदलाव हुए हैं तो हमारे कर्मों के ही कारण ! सभी के हर क्षण के कर्म इन छोटे छोटे बदलावों में बने रहते है, व्यर्थ तो नहीं जाते! क्षणभंगुरता भी इसीलिए है क्योंकि सभी किसी न किसी कर्म में लगे हुए हैं , तो कोई एक ही कर्म किसी एक का हमेशा तो बना ही नहीं रह सकता ! खैर लेख का तात्पर्य बढ़िया है, अब जिसको जिस तरह से समझ में आये !:-)

    पसंद करें

  3. Dr Prabhat Tandon

    अनित्यता ( impermanent ) जीवन का सच है | हम सब वय: परिवर्तन के दौर मे है . जो हम आज से बीस साल पहले थे वह आज नही है , यहाँ तक कि हमारे विचार हर पल बदलते रहते हैं . प्रकृति मे भी यह बदलाव आसानी से देखा जा सकता है , कली का फ़ूल बनना , फ़ूल का मुरझाना , और यहाँ तक तारे और आकाश गंगा भी परिवर्तन के दौर मे हैं । हमें अपने आप को सागर की तंरगों के समान सोचना चहिये . लहरों की मुख्य विशेषता इसकी अस्थायी प्रवृति है , इसी तरह हम भी एक दिन नशवरता मे मिल जाते हैं जैसे कभी हुये ही न हों .

    पसंद करें

  4. shilpamehta1

    सब कुछ गुज़र जाता है निशांत जी | एक इंग्लिश कविता है “even this shall pass away” यह theodore tilton ने लिखी है | करीब करीब यही कहती है | यही बात हर धर्मं शास्त्र में है ” दुखालायम अशाश्वतम” कहा गया है गीता में इस दुनिया को |

    पसंद करें

टिप्पणी देने के लिए समुचित विकल्प चुनें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.