शैतान के कुछ शिष्य काहिरा के नज़दीक रहनेवाले एक महात्मा को पतन के मार्ग पर लाने का भरसक प्रयास कर रहे थे. उन्होंने उसे नूबिया की हसीनाएं, मिस्र के लज़ीज़ पकवान, और लीबिया के जवाहरात का प्रलोभन देकर वश में करना चाहा पर उनकी किसी तरकीब ने काम नहीं किया.
एक दिन शैतान की निगाह अपने शिष्यों की कोशिशों पर पड़ गयी. शैतान ने झल्लाते हुए कहा, “नामुरादों! तुमने उस चीज़ को क्यों नहीं आजमाया जिसे फ़रिश्ते भी नज़रंदाज़ नहीं कर सकते!? देखो, मैं तुम्हें यह करके दिखता हूँ!”
महात्मा के करीब जाकर शैतान ने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा, “आपको अपने उस शिष्य की याद है जो सालों तक आपके क़दमों के पास बैठता रहा!? सुना है उसे सिकंदरिया के मठ का महंत बनाया गया है”.
यह सुनते ही महात्मा ने अपना आपा खो दिया और ईश्वर को ऐसा अन्याय करने के लिए लानतें भेजीं!
“आइंदा से हर मुश्किल आदमी के साथ सबसे पहले इसी प्रलोभन का प्रयोग करना”, शैतान ने शिष्यों को यह निर्देश दिया.
“आदमी हर उकसाव और प्रलोभन का संवरण कर सकता है लेकिन अपने से निचले दर्जे के आदमी की जीत कभी बरदाश्त नहीं कर सकता”.
(Hindi translation of a story from the blog of Paulo Coelho) Photo by Gianni Zanato on Unsplash
सुबह सुबह सुंदर लघुकथा और सीख पढ़कर मन तोषयुक्त हो गया!
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Very useful lesson.
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शैतान = माया = महाठगिनी!
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मनोविज्ञान का एक और सत्य।
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अहं
ego
जब तक इसपर काबू नहीं, कोई महात्मा नहीं बनता।
अच्छी कहानी।
धन्यवाद और शुभकामनाएं
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Good One,
Very interesting observation.
I also liked the quote of Buddha on the top.
P.
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हा! हा!!
मोहे न नारि नारि के रूपा!
पन्नगारि यह चरित अनूपा!!
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अततः हम इंसान ही है 🙂
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अहं और ‘कान का कच्चा होना’ हमेशा पतन का कारण बनता है|
जो दिल ने कहा ,लिखा वहाँ
पढिये, आप के लिये;मैंने यहाँ:-
http://ashokakela.blogspot.com/2011/05/blog-post_27.html
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अच्छे अच्छो का विपरीत समय में सारा ज्ञान फ़ैल हो जाता है. लेकिन हमेशा ऐसा कुछ होता है की भगवान् अपने सच्चे भक्तों को शैतान की चालों को समझने के लिए कोई छोटी या आश्चर्य जनक घटनाये घटित करता है जिससे भगवन के भक्तों को ईश्वर पर दोवारा भरोसा होने लगता है. और शैतानी चलें फीकी पड़ जाती हैं.
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मठाधीशी का नशा.
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बहुत सुन्दर विचारणीय लेख
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जीवन के परम सत्य से साक्षात्कार करवा दिया आपने।
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बहुत बहुत सही कहा….
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यदि हम वास्तव में ईर्ष्या-भाव रखते हैं तो संत,महात्मा तो दूर की बात है,अच्छे इंसान भी नहीं हैं !
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वाकई इंसानी फितरत का स्याह पक्ष
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