खलील जिब्रान की कहानी

man reading in parkमैं मानसिक रुग्णालय के उद्यान में टहल रहा था. वहां मैंने एक युवक को बैठे देखा जो तल्लीनता से दर्शनशास्त्र की पुस्तक पढ़ रहा था.

वह युवक स्वस्थ प्रतीत हो रहा था और उसका व्यवहार अन्य रोगियों से बिलकुल अलग था. वह यकीनन रोगी नहीं था.

मैं उसके पास जाकर बैठ गया और उससे पूछा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

उसने मुझे आश्चर्य से देखा. जब वह समझ गया कि मैं डॉक्टर नहीं हूँ तो वह बोला:

“देखिये, यह बहुत सीधी बात है. मेरे पिता बहुत प्रसिद्द वकील थे और मुझे अपने जैसा बनाना चाहते थे.”
“मेरे अंकल का बहुत बड़ा एम्पोरियम था और वह चाहते थे कि मैं उनकी राह पर चलूँ”.
“मेरी माँ मुझमें हमेशा मेरे मशहूर नाना की छवि देखतीं थीं”.
“मेरे बहन चाहती थी कि मैं उसके पति की कामयाबी को दोहराऊँ”.
“और मेरा भाई चाहता था कि मैं उस जैसा शानदार एथलीट बनूँ”.

“और यही सब मेरे साथ स्कूल में, संगीत की कक्षा में, और अंग्रेजी की ट्यूशन में होता रहा – वे सभी दृढ़ मत थे कि अनुसरण के लिए वे ही सर्वथा उपयुक्त और आदर्श व्यक्ति थे.”

“उन सबने मुझे एक मनुष्य की भांति नहीं देखा. मैं तो उनके लिए बस एक आइना था.”

“तब मैंने यहाँ भर्ती होने का तय कर लिया. आखिर यही एक जगह है जहाँ मैं अपने स्वत्व के साथ रह सकता हूँ”.

(खलील जिब्रान की कहानी)

There are 11 comments

    1. विवेक गुप्ता

      ठीक कहा आपने. जिसको वास्तव में कुछ करना होता है, वह कहीं भी करके दिखा सकता है. विपरीत परिस्थितियों में तो संकल्प और भी मज़बूत होता है. पलायन करने वाले को भागने का बस बहाना चाहिए. उसके लिए पागलखाने में भी जगह नहीं होनी चाहिए.

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