एक बेमेल इंसान

मनोज पटेल शानदार ब्लौगर और लेखक हैं. मेरी तरह उन्होंने भी अपने ब्लौग को अनुवाद केन्द्रित किया है और उनके ब्लौग पढ़ते-पढ़ते में आपको विश्व साहित्य के कुछ प्रसिद्द और कुछ अल्पचर्चित श्रेष्ठ लेखकों की रचनाएं पढ़ने को मिलेंगीं जिनका अनुवाद मनोज ने बहुत मनोयोग से किया है. उनके ब्लौग पर कुछ दिनों पहले इटली के लेखक और पत्रकार इतालो काल्विनो की यह कहानी पढ़ने को मिली थी जिसे मैं उनकी अनुमति से यहाँ पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ.

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इतालो काल्विनो : एक बेमेल इंसान

चोरों के देश में एक ईमानदार आदमी रहने क्या आ गया पूरी व्यवस्था ही गड़बड़ा गयी. पढ़िए इतालो काल्विनो की यह बेहतरीन कहानी. उनकी और कहानियां आप यहां पढ़ सकते हैं.

एक ऐसा देश था, जिसके सारे निवासी चोर थे.

रात में नकली चाभियों के गुच्छे और लालटेन के साथ सभी लोग अपने-अपने घर से निकलते और किसी पड़ोसी के घर में चोरी कर लेते. सुबह जब माल-मत्ते के साथ वे वापस आते तो पाते कि उनका भी घर लुट चुका है.

तो इस तरह हर शख्स खुशी-खुशी एक-दूसरे के साथ रह रहा था, किसी का कोई नुकसान नहीं होता था क्योंकि हर इंसान दूसरे के घर चोरी करता था, और वह दूसरा किसी तीसरे के घर और यह सिलसिला चलता रहता था उस आखिरी शख्स तक जो कि पहले इंसान के घर सेंध मारता था. उस देश के व्यापार में अनिवार्य रूप से, खरीदने और बेचने वाले दोनों ही पक्षों की धोखाधड़ी शामिल होती थी. सरकार अपराधियों का एक संगठन थी जो अपने नागरिकों से हड़पने में लगी रहती थी, और नागरिकों की रूचि केवल इसी बात में रहती थी कि कैसे सरकार को चूना लगाया जाए. इस तरह ज़िंदगी सहज गति से चल रही थी, न तो कोई अमीर था न तो कोई गरीब.

एक दिन, यह तो हमें नहीं पता कि कैसे, कुछ ऐसा हुआ कि उस जगह पर एक ईमानदार आदमी रहने के लिए आ गया. रात में बोरा और लालटेन लेकर बाहर निकलने की बजाए वह घर में ही रुका रहा और सिगरेट पीते हुए उपन्यास पढ़ता रहा.

चोर आए और बत्ती जलती देखकर अन्दर नहीं घुसे.

ऐसा कुछ दिन चलता रहा : फिर उन्होंने उसे खुशी-खुशी यह समझाया कि भले ही वह बिना कुछ किए ही गुजर करना चाहता हो, लेकिन दूसरों को कुछ करने से रोकने का कोई तुक नहीं है. उसके हर रात घर पर बिताने का मतलब यह है कि अगले दिन किसी एक परिवार के पास खाने के लिए कुछ नहीं होगा.

ईमानदारी आदमी बमुश्किल ही इस तर्क पर कोई ऐतराज कर सकता था. वह उन्हीं की तरह शाम को बाहर निकलने और अगली सुबह घर वापस आने के लिए राजी हो गया. लेकिन वह चोरी नहीं करता था. वह ईमानदार था, और इसके लिए आप उसका कुछ कर भी नहीं सकते थे. वह पुल तक जाता और नीचे पानी को बहता हुआ देखा करता. जब वह घर लौटता तो पाता कि वह लुट चुका है.

हफ्ते भर के भीतर ईमानदारी आदमी ने पाया कि उसके पास एक भी पैसा नहीं बचा है, उसके पास खाने के लिए कुछ नहीं है और उसका घर भी खाली हो चुका है. लेकिन यह कोई ख़ास समस्या न थी, क्योंकि यह तो उसी की गलती थी ; असल समस्या तो यह थी कि उसके इस बर्ताव से बाक़ी सारी चीजें गड़बड़ा गयी थीं. क्योंकि उसने दूसरों को तो अपना सारा माल-मत्ता चुरा लेने दिया था जबकि उसने किसी का कुछ नहीं चुराया था. इसलिए हमेशा कोई न कोई ऐसा शख्स होता था जो, जब सुबह घर लौटता तो पाता कि उसका घर सुरक्षित है : वह घर जिसमें उस ईमानदार आदमी को चोरी करना चाहिए था. कुछ समय के बाद उन लोगों ने जिनका घर सुरक्षित रह गया था अपने आप को दूसरों के मुकाबले कुछ अमीर पाया और उन्हें यह लगा कि अब उन्हें चोरी करने की जरूरत नहीं रह गयी है. मामले की गंभीरता और अधिक कुछ यूं बढ़ी कि जो लोग ईमानदार आदमी के घर में चोरी करने आते, उसे हमेशा खाली ही पाते ; इस तरह वे गरीब हो गए.

इस बीच, उन लोगों में जो अमीर हो गए थे, ईमानदार आदमी की ही तरह रात में पुल पर जाने और नीचे बहते हुए पानी को देखने की आदत पड़ गयी. इससे गड़बड़ी और बढ़ गयी क्योंकि इसका मतलब यही था कि बहुत से और लोग अमीर हो गए हैं तथा बहुत से और लोग गरीब भी हो गए हैं.

अब अमीरों को लगा कि अगर वे हर रात पुल पर जाना जारी रखेंगे तो वे जल्दी ही गरीब हो जाएंगे. तो उन लोगों को सूझा : ‘चलो कुछ ग़रीबों को पैसे पर रख लिया जाए जो हमारे लिए चोरियां किया करें’. उन लोगों ने समझौते किए, तनख्वाहें और कमीशन तय किया : अब भी थे तो वे चोर ही, इसलिए अब भी उन्होंने एक-दूसरे को ठगने की कोशिश की. लेकिन, जैसा कि होता है, अमीर और भी अमीर होते गए जबकि गरीब और भी गरीब.

कुछ अमीर लोग इतने अमीर हो गए कि उन्हें अमीर बने रहने के लिए चोरी करने या दूसरों से कराने की जरूरत नहीं रह गयी. लेकिन अगर वे चुराना बंद कर देते तो वे गरीब हो जाते क्योंकि गरीब तो उनसे चुराते ही रहते थे. इसलिए उनलोगों ने ग़रीबों में भी सबसे गरीब को अपनी जायदाद को दूसरे ग़रीबों से बचाने के लिए पैसे देकर रखना शुरू कर दिया, और इसका मतलब था पुलिस बल और कैदखानों की स्थापना.

तो हुआ यह कि ईमानदार आदमी के प्रगट होने के कुछ ही साल बाद, लोगों ने चोरी करने या लुट जाने के बारे में बातें करना बंद कर दिया. अब वे सिर्फ अमीर और गरीब की बात किया करते थे ; लेकिन अब भी थे वे चोर ही.

इकलौता ईमानदार आदमी वही शुरूआत वाला ही था, और वह थोड़े समय बाद ही भूख से मर गया था.

(अनुवाद : मनोज पटेल)

There are 7 comments

  1. प्रवीण पाण्डेय

    मनोज पटेलजी का बहुत बहुत आभार इतना अच्छा अनुवाद करने का। यदि सुन्दर साहित्य हिन्दी में पढ़ने को मिलेगा तो अंग्रेजी में भला कोई क्यों पढ़े।

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  2. संतोष त्रिवेदी

    बिलकुल अलग ‘टेस्ट’ में व्यंजना देखने को मिली.यह कहानी नहिं वरन आज की हमारी ही व्यवस्था को बेपर्दा किया गया है.
    काश कोई चोर भी पाठक होता !

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