व्यक्तित्व विकास : पाठक व कर्ता में अंतर

आपके अनुमान से कितने लोग होंगे जो व्यक्तित्व विकास की पुस्तकें या लेख आदि पढ़ते हैं और अपने जीवन में अपेक्षित परिवर्तन ला पाते हैं? आप कहेंगे कि ऐसे लोग कम ही हैं. इस लेख को पढ़िए और आप यह जान जायेंगे कि ऐसे लोग कम नहीं बल्कि नगण्य ही हैं.

मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ क्योंकि मैं यह जानता हूँ कि स्वयं में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ता है और बचपन से पनप चुके हमारे स्वभाव और आदतों में बदलाव ला सकना सहज नहीं है. चाहते तो सभी यही हैं कि उनमें ये ज़रूरी परिवर्तन आ जाएँ पर अधिकांश लोग सिर्फ किताबें, लेख, ब्लॉग, पत्रिकाएं, पढ़ते या डीवीडी देखते और ट्रेनिंग/कोर्स आदि में भाग लेते ही रह जाते हैं.

व्यक्तित्व विकास को मैं इस नज़रिए से देखता हूँ कि यह मूलतः नयी जानकारियाँ जुटाने का नहीं बल्कि नए कौशल एवं मनोवृत्ति को अपनाने का कर्म है. लेकिन नए कौशलों को विकसित करने और नई मनोवृत्ति को अपनाने के लिए बहुत धैर्य, अनुशासन और अभ्यास की ज़रुरत होती है. स्वयं में छोटे-बड़े परिवर्तन ला पाना इतना सहज नहीं है जितना प्रतीत होता है. यह बहुत दुरूह, संगठित, निर्मम, और सतत क्रिया है. यह दुरूह इसलिए है क्योंकि क्योंकि इस मामले में हम बहुत कुछ स्वयं के विरोध में करते हैं.

व्यक्तित्व विकास की कामना करने वाले व्यक्ति इसके बारे में बहुत कुछ पढ़ते हैं पर उनमें से अधिकांश जन इस महत्वपूर्ण तथ्य को नहीं समझ पाते कि उन्हें पढ़ी गयी कीमती बातों को अपने व्यवहार का अंग बनाने के लिए कुछ कर्म भी करना पड़ता है. यह मूलतः अभ्यास की विषयवस्तु है. यह जाने बिना वे केवल सतह पर ही मंडराते रह जाते हैं और गहराइयों को नहीं देख पाते.

ऐसे लोग किसी अच्छी किताब को पढ़ना शुरू करते हैं. उन्हें किताब में कोई बेहतरीन प्रेरक एवं व्यावहारिक विचार मिलता है जिसे वे अपने ऊपर कुछ दिनों तक लागू करने का प्रयास करते हैं पर इसमें सफल नहीं होनेपर किसी अन्य पुस्तक में ‘प्रेरणा’ को खोजने लगते हैं. ऐसे लोग केवल ‘पाठक’ हैं.

मैं भी ऐसा ही करता था… फिर एक दिन मुझे यह पता चला कि मुझे तो व्यक्तित्व विकास की बातें पढ़ने में केवल आनंद आने लगा था. जिस तरह कुछ लोग रोमांटिक नॉवेल पढ़ना पसंद करते हैं वैसे ही मैं व्यक्तित्व विकास की पुस्तकें पढ़ना पसंद करता था. अभी भी मुझे ये किताबें पढ़ना बहुत अच्छा लगता है पर मुझे इस बात का बोध भी हो गया है कि व्यक्तित्व विकास की बातें पढ़ना और स्वयं में मौलिक परिवर्तन लाना दो अलग-अलग बातें हैं इसलिए मैं पढ़ी गयी बातों को व्यवहार में लाता हूँ. अब मैं ‘कर्ता’ बन गया हूँ.

व्यक्तित्व विकास के संबंध में ‘पाठक’ और ‘कर्ता’ के मध्य यह मुख्य अंतर है कि पहला व्यक्ति जहां रुचिपूर्वक पुस्तकें और विचार आदि पढ़ने में ही लगा रह जाता है वहीं दूसरा व्यक्ति पढ़ी हुई बातों से उपयुक्त सन्देश लेकर उन्हें अमल में लाता है और लाभ पाता है. इसके अतिरिक्त नीचे दी हुईं तीन बातों का भी मैंने अनुभव किया है जिनके बारे में जानना ज़रूरी होगा:

  • कर्ता व्यक्ति जो कुछ भी पढ़ते या अनुभव करते हैं उसमें से सबसे मूल्यवान सन्देश या विचार को मनन करने के बाद चुनते हैं, याद रखते हैं, और फिर उसे अपनी विकास यात्रा का वाहन बनाते हैं.
  • कर्ता व्यक्ति कामकाज की रणनीतियां बनाते हैं. वे लक्ष्य निर्धारित करते हैं और नियमित अभ्यास भी करते रहते हैं. स्वयं को सकारात्मकता की राह पर अटल रखने के लिए वे नित-नए तरीके खोजते हैं और अपनी प्रगति पर दृष्टि जमाये रखते हैं.
  • कर्ता व्यक्ति कभी-कभी ध्यानपूर्वक अपने अध्ययन को सीमित कर लेते हैं ताकि वे अधिकाधिक सूचनाओं और बातों के जंजाल में नहीं उलझें. बहुत अधिक प्रेरणा भी अपने लक्ष्य से ध्यान भटका सकती है यदि वह कोरे अध्ययन तक ही सीमित हो. जिन बातों को वे अपने जीवन में उतारने लगे हैं उन्हें ही वे बार-बार दुहराते हैं.

इसका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति में सतत और संतुलित परिवर्तन होता रहता है. आप निरे पाठक और कर्मठ कर्ता में हमेशा ही अंतर कर सकते हैं एवं आपने कुछ ऐसे व्यक्ति ज़रूर होंगे जिनसे लंबे अंतराल के बाद मिलने पर आपने उनमें शानदार परिवर्तन का अनुभव किया होगा – उनका बोलचाल सुधरा होगा, उनका व्यक्तित्व अधिक आकर्षक बन गया होगा, वे अधिक प्रसन्न, आत्मविश्वास से लबरेज़ और संभवतः अधिक… धनी प्रतीत होते होंगे. मुझे भी ऐसे कुछ लोग मिले हैं जिनमें आये परिवर्तनों से मैं चमत्कृत रह गया हूँ.

तो… इस लेख को पढ़ने के बाद आप एक गहरी सांस लेकर कोई और पोस्ट पढ़ने के लिए बढ़ जायेंगे या अपनी आरामकुर्सी से उठकर स्वयं में कोई पौज़िटिव परिवर्तन लाने का बीड़ा उठाएंगे? यदि आप व्यक्तित्व/आत्म विकास पर पुस्तकें पढ़ने में रूचि लेते हैं तो आपने स्वयं में कितना परिवर्तन अनुभव किया है?

There are 10 comments

  1. arvind mishra

    निचोड़ यही है –
    व्यक्तित्व विकास की बातें पढ़ना और स्वयं में मौलिक परिवर्तन लाना दो अलग-अलग बातें हैं.
    मनुष्य के व्यक्तित्व में अमूल चूल परिवर्तन महज अपवाद हैं -हार्ड कोर क्रिमिनल किताबें पढ़कर बुद्ध नहीं हो सकते !

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  2. Pooran Singh Thakur

    The post is akin to truth or it would not be taken as venture to say that it is absolute truth. There are the people only to find enjoyment in reading good things without application of even a single word of that. Just like there are so called religious people who chant mantras even whole day without there being even a single change of ray in their life. I am also a person who usually read books, topics and hear discourses on the subject of self development, sprituality and divine knowlege but have not yet acted in accordance with the teachings. It is absolutely true that each and everybody who has a sense of understanding can rise then and there subject to his committment and determination to go upward otherwise the downfall is available for everybody.

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  3. kanwal kumar arora

    ABSOLUTELY RIGHT. MY OWN EXPERIENCE IS THAT ONE CAN SURELY IMPROVE HIMSELF BY STUDYING (NOT JUST READING) GOOD LITERATURE. THIS IS 100% TRUE. OF COURSE, IT IS AN ONGOING PROCESS AND HAS TO BE CARRIED ON TILL YOUR SENSES ARE INTACT.
    LONG AND PERSISTENT JOURNEY FROM COMMON TO GREAT.
    HUMANITY IS OBLIGED TO ALL THE GREAT MEN (AND WOMEN) WHO BECAME GREAT AND INPIRED THE COUNTLESS COMMONS.

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