‘हां’ या ‘ना’ का निर्णय लेना का आसान तरीका

दुनिया बहुत जटिल है और हमें चलायमान रहने के लिए अपने अनुभवों पर निर्भर रहना पड़ता है.

जब हम छोटे होते हैं तो एक अनुभवजन्य नियम (heuristic) हमारे हमेशा काम आता है और वह यह है कि “अपने माता-पिता की बात मानो”. बचपन में हम ऐसा नहीं करते हैं तो नुकसान हमारा ही होता है. वयस्क हो जाने पर हम इस बात को मानने लगते हैं कि “किसी विशेषज्ञ की सलाह लो और उसके बताये अनुसार ही काम करो”, हांलांकि इस सिद्धांत का पालन करना दिन-बदिन मुश्किल होता जा रहा है.

एक दिन मैंने अपने निजी अनुभवजन्य नियम को दोहराया जिसे मैं लंबे समय से मानता आया हूँ. इसने मुझे अवसर की पहचान करना, अपने मेलबौक्स के साथ निपटना, और मेरी उम्मीद से भी ज्यादा गति से आगे बढ़ने में मदद की है.

अब मैं आपको बता ही दूं कि वह सिद्धांत क्या है:

निर्णय जल्दी लो और परिणाम के साथ जियो.

जब सामने बहुत कुछ करने के लिए होता है तो बहुत से लोग जड़वत हो जाते हैं. वे बहक जाते हैं और अनिर्णय से पंगु हो जाते हैं. उनके मन में यह चिंता बनी रहती है कि वे सही हैं या गलत हैं.

सच कहूं तो आपके निर्णय इतने परिणामी नहीं होते जितना आप समझते हैं.

यही कारण है कि यह सिद्धांत बेहतरीन है. यदि आप तनाव के क्षणों में इसका उपयोग करेंगे तो पायेंगे कि आप कठिन समस्याओं को पीछे छोड़कर बड़ी फुर्ती से आगे बढ़ जाते हैं. यदि आप स्मार्ट हैं तो यह बहुत अच्छे से काम करेगा क्योंकि यह आपके सोच में उलझे हुए मष्तिष्क को पलट देता है और लिए गए निर्णयों के साथ जीने में आपकी मदद करता है.

एक अन्य नियम जो इसके बरअक्स काम करता है वह ये है:

यदि अनिश्चित हो तो “हाँ” कह दो.

‘त्वरित निर्णय’ के नियम के समान ही यह नियम भी शानदार है क्योंकि यह अवसर चूके बिना आपको त्वरित गलतियाँ करने में मदद करता है.

मान लें कि आपको किसी बात के लिए “नहीं” कहना चाहिए था पर आपने “हाँ” कह दिया और बात बिगड़ गयी – तो इसमें चिंता की बात नहीं है क्योंकि आप इस गलती से सीख ले चुके हैं और अगली बार आप अनिश्चित नहीं रहेंगे और बेझिझक “नहीं” कहेंगे.

ये दोनों नियम निर्णय लेते समय रोज़मर्रा के जीवन में बहुत काम आते हैं. ये नियम परिपूर्ण नहीं हैं पर इनसे जीवन और कामकाज में बहुत अच्छा सुधार आता है.

जब आप पहली बार कुछ करते हैं पर उसमें असफल रहते हैं तो आपको उससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है. यदि आप इसे सकारात्मक रूप से ग्रहण करते हैं तो आप मानसिक और भावनात्मक धरातल पर और मजबूती से खड़े होते हैं.

जब कोई आपसे यह कह देता है कि ‘असफलता की परवाह नहीं करो’ तो आप अधिक उत्साह और मनोयोग से अपना काम बखूबी करते हैं. जब कभी आप कोई बिलकुल अलग चीज़ करते हैं तो सारे ‘सामान्य व्यक्ति’ आपको सनकी समझते हैं. ऐसे में मैं यही कहूँगा कि आप नए विचारों को मन में लायें और नए काम हाथ में लेते रहें. यदि आप यह भांप लें कि असफलता तय है तो जल्दी असफल होकर अपनी भूल सुधार लें और आगे बढ़ जाएँ. लोग असफलता से इतना भय खाते हैं कि निर्णय लेना ही नहीं चाहते.

Photo by Kyle Glenn on Unsplash

There are 11 comments

  1. राहुल सिंह

    यह दोनों सिद्धांत के बजाय नजरिया कहना बेहतर होगा. वैसे भी अक्‍सर निर्णय सही या गलत नहीं होते, हम अपने उद्यम से उन्‍हें ऐसा साबित करते हैं.

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  2. Arvind Mishra

    दरअसल मनुष्य का जीवन और व्यवहार जटिल होता गया है और परिस्थितियाँ और परिप्रेक्ष्य भी!

    उसके लिए कोई नियम माडल नहीं है -प्रायः वह अपनी परिस्थितितियों से खुद निपट लेता है क्योंकि मनुष्य में जितनी अनुकूलनशीलता है वहज किसी अन्य प्राणी में नहीं है!

    ऐसे में बंधे बंधाये नियम उसके लिए कोई ख़ास महत्व के नहीं हैं -यद्यपि ये क्षणिक उत्साह जरुर बढाते हैं !

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  3. Gyandutt Pandey

    सोचता हूं!
    निर्णय लेने पर एक चीज तो होती है – तात्कालिक बोझ टल जाता है। और सामान्यत: करेक्टिव एक्शन की सम्भावनायें बची रहती हैं – अगर निर्णय लेने में गलती की तो!
    कुछ निर्णय दिमाग और दिल दोनो की बराबर मांग करते हैं!

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