मुल्ला नसरुद्दीन ने नया कुरता बनवाने के लिए पैसे जमा किये. बड़े जोश-ओ-खरोश से वह दर्जी की दुकान पर गया. नाप लेने के बाद दर्जी ने कहा, “एक हफ्ते के बाद आइये. अल्लाह ने चाहा तो आपका कुरता तैयार मिलेगा”.
हफ्ते भर के इंतज़ार के बाद मुल्ला दुकान पर गया. दर्जी ने कहा, “काम में कुछ देर हो गयी. अल्लाह ने चाहा तो आपका कुरता कल तक तैयार हो जायेगा.”
अगले दिन मुल्ला फिर दुकान पर पहुंचा. उसे देखते ही दर्जी ने कहा, “माफ़ करिए, अभी कुछ काम बाकी रह गया है. बस एक दिन की मोहलत और दे दें. अगर अल्लाह ने चाहा तो कल आपका कुरता तैयार हो जाएगा.”
“तुम तो मुझे यह बताओ कि इसमें और कितनी देर लगेगी…”, मुल्ला ने मन मसोसकर कहा…
“अगर तुम अल्लाह को इससे अलग रखो”.
सुन्दर बात!
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गोया नाम भी न लें अल्लाह का.
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सच है, अल्लाह को अपनी विवशता से क्यों जोड़ना।
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jo kaam thik se ho jaaye to mene kiyaa hai .nahi to wo to hai hi…?
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sachhi baat……….
sadar
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:):)
सुन्दर !
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हाय अल्लाह ये तो सांप्रदायिक पोस्ट लिख दी आपने !!!!!!!! 🙂
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मजेदार !
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Good one Nishant bhai
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Nice post…
मुल्ला ने मन मसोसकर कहा…
“अगर तुम अल्लाह को इससे अलग रखो, तो मुझे यह बताओ कि इसमें और कितनी देर लगेगी…”
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nice
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kya vichar hai.baboo khus hua..:)
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kamchor allah ka sahara dundta hai
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