“आप बहुत अच्छे व्यक्ति हैं” या “you are very nice”. अक्सर ही किसी से भी यह सुनकर मुझे बहुत ख़ुशी होती थी. मुझे लगता था कि यह किसी भी व्यक्ति से मिलनेवाली सबसे बढ़िया प्रशंसोक्ति है.
फिर मुझे अपने और अन्य “अच्छे व्यक्तियों” के जीवन को ध्यान से देखने पर यह अनुभव होने लगा कि इस लेबल का लग जाना अमूमन ही कोई बहुत प्रतिष्ठा या महत्व की बात नहीं है. अब तक कुछ अनदेखे रह गए पैटर्न मेरे सामने उभरकर आने लगे और मैं यह समझने लगा कि दूसरों की नज़रों में “अच्छा” बने रहना किसी आदमी के लिए कितना तकलीफदेह हो सकता है.
और फिर मैंने ये कोशिश की कि मेरे ऊपर चढ़ चुका अच्छाई का मुखौटा कुछ उतरे और मैं भी दूसरों की तरह बेफिक्री से सांस ले सकूं. अपने साथ मैंने कभी कोई बेहतरीन चीज़ की है तो वह यही है.
कम्युनिकेशन कोच के तौर पर मैंने दूसरों को भी यह सिखाना शुरू कर दिया कि बहुत अच्छे बने बिना कैसे जियें.
अब मैं और मेरे कुछ करीबी दोस्त इस बात को बहुत अच्छे से समझ चुके हैं. जब कभी हम किसी व्यक्ति को किसी और व्यक्ति से यह कहते हुए सुनते हैं कि “आप बहुत अच्छे आदमी हैं” या “वह बड़ी सज्जन महिला हैं” तो हम समझ जाते हैं कि जिस व्यक्ति के बारे में बात की जा रही है वह दूसरों की दृष्टि में भला और अच्छा बने रहने के लिए हर तरह की दिक्कतें झेलता है और दूसरे उसका जमकर फायदा उठाते हैं.
“अच्छा” आदमी बनने का क्या अर्थ है?
मुझे लगता है कि जब कभी कोई आपको “अच्छा आदमी”, “नाइस गर्ल”, या “सज्जन पुरुष” कहता है तो इसके दो मतलब होते हैं:
कभी-कभी यह होता है कि सामनेवाले व्यक्ति के पास आपको कहने के लिए कोई उपयुक्त और सटीक पौज़िटिव शब्द नहीं होता. वे आपसे यह कहना चाहते हैं कि आप रोचक, या मजाकिया, या दयालु, या प्रभावशाली वक्ता हैं, पर ऐसे बेहतर शब्द नहीं सोच पाने के कारण वे कामचलाऊ अभिव्यक्ति के तौर पर आपको अच्छा, बढ़िया, या ओके कहकर काम चला लेते हैं.
यदि ऐसी ही बात है तो आप इसमें कुछ ख़ास नहीं कर सकते और आपको परेशान होने की ज़रुरत भी नहीं है. आपके बारे में कुछ पौज़िटिव कहने के लिए “अच्छा” या “नाइस” बहुत ही साधारण विकल्प हैं. इन्हें सुनकर यदि आप बहुत अधिक खुश नहीं होते तो इसमें कोई बुरा मानने वाली बात भी नहीं है.
अब मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि “अच्छा” या “नाइस” का लेबल ऐसी चीज़ को दिखता है जो बाहरी तौर पर तो आपके बारे में पौज़िटिव बात कहती है पर सही मायनों में यह आपके खिलाफ जाती है.
दूसरों की बात बड़ी आसानी से मान जानेवाले और दूसरों के लिए खुद को तकलीफ में डालने के लिए हमेशा तैयार बैठे हुए आदमी को सभी “भला मानस” और “नाइस” कहते हैं.
तो ये शब्द सुनने में भले ही अच्छे लगें पर ये आपको मनोवृत्तियों और स्वभाव को दर्शाते हैं जिनसे आपको आगे जाकर बहुत नुक्सान भी उठाना पड़ सकता है.
“अच्छा” आदमी बने रहने के खतरे
हम लोगों में से अधिकतर यह मानते हैं कि हमें भले बने रहना चाहिए, दूसरों की सहायता के लिए तत्पर होना चाहिए भले ही इसके कारण कभी कुछ कष्ट भी उठाना पड़ जाए. इससे समाज में हमारी छवि भी बेहतर बनी रहती है. लेकिन यदि आप दूसरों की नज़र में हमेशा ही हद से ज्यादा भले बने हुए हैं तो यह इस बात का संकेत है कि आपने स्वयं की इच्छाओं का सम्मान करना नहीं सीखा है.
मैं दूसरों के प्रति उदारता बरतने और किसी की सहायता करने का विरोधी नहीं हूँ. लेकिन मैं यह भी मानता हूँ कि कुछ लोग इस नीति के पालन के चक्कर में अपनी सुख-शांति को हाशिये पर रख देते हैं. वे यह मानते हैं कि उनके इस व्यवहार से दूसरे उनसे हमेशा खुश रहेंगे और ऐसा करने से उनकी समस्याएँ भी सुलझ जायेंगीं. दुर्भाग्यवश, इस बात में बहुत कम सच्चाई है.
मनोविज्ञान के क्षेत्र में इस विषय पर हाल में ही बहुत शोध हुआ है और इसे nice guy syndrome के नाम से जाना जाता है.
भलामानस बने रहने के नुकसान धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं. इनमें से कुछ ये हैं:
1. दूसरों को खुश रखने के लिए खुद को हलकान कर लेना – हर सज्जन पुरुष या भद्र महिला को यह पता होता है कि हर किसी को खुश रखना और समाज में इस छवि को बनाए रखने के लिए उन्हें कितनी दिक्कतें झेलनी पडतीं हैं. ज्यादातर भलेमानस अपना अधिकांश समय, ऊर्जा, और संसाधन दूसरों पे इसलिए लुटाते फिरते हैं ताकि दूसरों की नज़र में वे अच्छे बने रहें.
2. स्वयं को नज़रंदाज़ करना – यह स्पष्ट है कि यदि आप हमेशा दूसरों का ही ध्यान रखते रहेंगे तो आपको अपनी देखरेख और आराम के लिए समय नहीं मिलेगा. यही कारण है कि ज्यादातर भलेमानस थकेमांदे, तनावग्रस्त, और बुझे-बुझे से रहते हैं. उनमें से कई अवसाद के शिकार हो जाते हैं.
3. दूसरों द्वारा आपका अनुचित लाभ उठाना – एक बहुत खतरनाक झूठ है जिसमें हम लोगों में से ज्यादातर यकीन करते हैं – और वह यह है कि यदि हम दूसरों के लिए अच्छे बने रहेंगे तो वे भी हमसे अच्छा बर्ताव करेंगे. व्यवहार में ऐसा कभी-कभार ही होता है. अधिकांश मौकों पर आपकी अच्छाई के कारण आपका गलत फायदा उठाया जाता है. लोग आपसे बिना पूछे या जबरिया आपकी चीज़ें मांग लेते हैं आप संकोचवश ना नहीं कहते, यहाँ तक कि आपसे अपनी ही चीज़ें दोबारा मांगते नहीं बनता क्योंकि आप किसी को नाराज़ नहीं करना चाहते.
4. इसी छवि में सिमटकर रह जाना – एक कोच के तौर पर मैं ऐसे भलेमानुषों के साथ काम करता हूँ और उन्हें यह सिखाता हूँ कि वे अपने दिल के कहने पर चलना सीख जाएँ एवं निश्चयात्मक बनें. लेकिन दूसरे लोग उनमें आए परिवर्तनों से बड़ी हैरत में पड़ जाते हैं. लोगों को उनके ‘अच्छेपन’ की इतनी आदत हो जाती है कि जब वे दहलीज को छोड़कर बाहर निकलते हैं तो इसे विश्वासघात समझा जाता है.
अच्छी बात यह है कि ‘सज्जन पुरुष’ की छवि से बाहर निकला जा सकता है. इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप अपनी बेहद विनीत और मुलायम छवि में परिवर्तन लायें.
ऐसा करने के ये तीन तरीके हैं:
1. अपनी ज़रूरतों को पहचानें – अपनी ज़रूरतों को पहचानने के लिए यह ज़रूरी है कि आपको उनका पता चले. दूसरों के प्रति हमेशा अच्छे बने रहने वाले व्यक्तियों की यह मानसिकता होती है कि हमेशा औरों के मनमुआफिक चलकर सबकी नज़रों में भले बने रहते हैं पर यह सच है कि उनकी भी बहुत सी भावनात्मक और दुनियावी ज़रूरतें होतीं हैं. उनके लिए यह बहुत ज़रूरी है कि वे अपनी ज़रूरतों की कद्र करें और खुद से बेहतर सम्बद्ध होकर जियें.
2. आत्मविश्वास जगाएं – मेरे अनुभव में यह देखने में आया है कि बहुतेरे ‘भलेमानुषों’ में आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की कमी होती है. उन्हें अपने बंधनकारी विचारों को तोड़कर संकोच और चिंताओं से उबरना चाहिए. यदि आपके साथ ऐसा हो रहा हो अपने भीतर घट रहे परिवर्तनों का ध्यानपूर्वक अवलोकन करें और आत्मविश्वास जगाएं.
3. अपने काम में व्यस्त रहें – आपको जो कुछ भी करना अच्छा लगता हो उसे करने में भरपूर समय लगायें और दूसरों के लिए समय नहीं होने पर उन्हें खुलकर मना कर दें. ऐसे में यदि आपके और दूसरों के बीच संबंधों में खटास भी आती हो तो इसमें कोई हर्ज़ नहीं है क्योंकि आप दूसरों को हद से ज्यादा अपना फायदा नहीं उठाने दे सकते. शुरू में यह सब करना आसान नहीं होगा लेकिन आपके बेहतर निजी जीवन के लिए यह सब करना ज़रूरी है.
हर समय लोगों को खुश रखने के बजाय जब आप ज्यादा निश्चयात्मक (assertive) रुख अख्तियार कर लेते हैं तो आपके आसपास मौजूद लोग आपके समय और काम की कद्र करना सीख जाते हैं और आपसे अपना काम निकलवाने के लिए सोचसमझकर ही प्रयास करते हैं.
अब हो सकता कि लोग आपको ‘परोपकारी’ या ‘देवता स्वरूप’ संबोधनों से नवाज़ना कम कर दें. लोग आपको रूखा या स्वार्थी भी कह सकते हैं, पर यह तय है कि इन सभी लेबलों से इतर आपके औरों से संबंध अधिक परिपक्व व प्रोफेशनल होंगे और आपके जीवन में सुधार होगा.
इस पोस्ट के लेखक Eduard Ezeanu कम्युनिकेशन कोच हैं. उनका ब्लॉग है People Skills Decoded. यह पोस्ट अरविन्द देवलिया के ब्लॉग से ली गयी है.
यह बात तो सच है कि कभी कभी सिद्धान्तों से चिपके रहने अहित हो जाता है। प्रश्न वही है कि राम बने या कृष्ण?
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संभवतः जेबी शॉ ने कहा था- मैं अपनी सफलता का रहस्य तो नहीं बता सकता, लेकिन असफलता का रहस्य जरूर बता सकता हूं और वह है, सबको खुश रखने की कोशिश. बाप-बेटे और गदहे की कहानी तो प्रसिद्ध है ही.
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सीखने की कोशिश करूंगा यार ! शुभकामनायें अपने आपको ! 😦
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very nice post.
i like it very much.
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बढ़िया….विचारणीय
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धन्यवाद निशांत! कुछ दिनो से ऎसी ही कुछ मन: स्थिति से गुजर रहा था। इस पोस्ट से उस दिशा में सोचने में जरूर मदद मिली। हमेशा की तरह आपका आभार।
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bahut khoob…,
bahut achchha.
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इस बिमारी से 20 साल तक मे लडा हु ,पीछ्ले 8 साल से ठिक हु ,आपकी इस दवा रुपी post से उम्मीद करता हु की कयी बिमार ठिक होगे ।बहुत बडिया ।ध्नयवाद।
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मुझे अच्छा तो नहीं, पर “सीधा” अवश्य कहा जाता है. बचपन से यह सुन रहा हूं और इस लेबल के कारण कई कुर्बानियां भी दी हैं. लेकिन अब कोई मुझे सीधा कहता है, तो गाली की तरह लगता है. तमाम कोशिशों के बावजूद अपने कथित सीधेपन को छोड नहीं पाया हूं.
मेरी पक्की धारणा बन चुकी है कि आदमी को “सीधा” या “अच्छा” होने की बजाय “सही” होना चाहिए, यानी अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ बुरा. काश यह योग्यता मुझमें होती, तो जिंदगी ज़्यादा सुखी और सफ़ल होती.
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yaar kash me bachpan me ye sikh leta..
mene sab-kuch gawa diya hai-bachpan-khelkud-knoledge-study-weight-hight-SELFCONFIDANCE-money-love!!!
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ताज्जुब है इस लेख के पढने के पहले ही मैं ये सीखे अपनाने लगा हूँ –
ग़ालिब बुरा न मान जो वाईज बुरा कहे
ऐसा भी कोई है सब अच्छा कहे जिसे ?
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भले या अच्छे बने रहने का चाव कई बार बचपन से माँ बाप शिक्षकों का प्रिय, अच्छा बच्चा बने रहने की सीख का नतीजा होता है ! दूसरों को खुश रखना हमेशा कहा मानना ,वरना जो सबसे प्रिय करीब हैं वो बुरा मान जायेंगे , या दूसरों के प्यार से वंचित हो जाओगे, अकेले हो जाओगे! एक तरह का डर ही तो है जिसकी वजह से व्यक्ति अपनी इच्छाओं को व्यक्त ही नहीं कर पाता |
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bachpan ki yaad aa gayi yaar. mera bachpar same as…
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I like it very much.This is a good lesson for goody-goody chhavi valo ke liye.
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खूबसूरत पोस्ट !
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सही है, लंबे समय तक अच्छे बने रहने के बाद एकाएक लगने लगता है कि इस अच्छे होने के चक्कर में हमने क्या खो दिया। जीवन का सारा रस और आनंद इस अच्छे होने की भेंट चढ़ जाता है। कुछ साल पहले ही ये अकल आ गई, वरना तो ऐसे ही जीवन गुजर जाता।
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yaar aisa lagta he mera to janma hi is liye hua he ki dusro ki seva karu aur khud bhukha pada rahu, pehle isme aanang aata tha par ab aadat nahi jati aur suicede karne ka man karta hai par himmat nahi hoti. ghar chodne ki bhi himmat nahi. paisa bhi nahi kama sakta accha hone ke karan.
kya kary samaj me nahi aata me sirf saamnewalo ka hi bhala kyu chakta hu?????
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its very nice.
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I have also faced this situation many time in past, but now I think that we should work whatver we want and not bothered about the comments of other people for that.
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this will give me great threshold level to living hood.
mai aap ka sada abhari hoon.
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achcha ya bura insan ki soch hoto hai .
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sanskrit me ek sloke hai , NA ATYANT SARLEBHYAM……!
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ab to koi vakti muje acha kahta he to tapad sa lagta he
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कुछ दाग भी अच्छे होते हैं. यदि सभी ऐसा सोचने लगे तो जो थोड़ी बहुत मानवता बीच है वो भी समाप्त हो जाएगी
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Behtarin post.
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