कुछ दिन पहले करमापा लामा अपने मठ से संबंधित अनियमितताओं के कारण चर्चा में थे. मैं उम्मीद करता हूँ कि ये अनियमितताएं, यदि सही भी हों, तो भी उनका संबंध करमापा लामा के आशयों से नहीं है. बाकी, जो भी विधिसम्मत हो उसकी स्थापना होनी चाहिए. करमापा लामा की यह पोस्ट उनकी TEDtalk का अनुवाद है. इस पोस्ट में वे बता रहे हैं कि किस प्रकार उन्हें तिब्बती बौद्ध धर्म के एक पूज्य व्यक्तित्व के पुनर्जन्म के रूप में खोजा गया. अपनी कथा सुनाने के दौरान वे हमें प्रेरित करते हैं कि हम केवल सतही तकनीक और डिज़ाइन पर ही कार्य न करें बल्कि हृदय की तकनीक और डिज़ाइन का अनुसंधान करें.
इस समय मुझे यह लग रहा है कि सभी वक्तागण वह सब कह चुके हैं जो मैं वास्तव में कहना चाहता था और अब मेरे लिए यही बचा रह गया है कि मैं आप सभी को आपकी सहृदयता के लिए धन्यवाद दूं. लेकिन आपकी उदारता और उसके महत्व का मान रखने के लिए मैं आप सभी से स्वयं का एक छोटा सा किस्सा बांटना चाहता हूं.
जब मैं बहुत छोटा था तभी से मुझे बहुत से उत्तरदायित्व दिए गए, और जब मैं बड़ा हुआ तब मुझे यह लगने लगा कि मेरे लिए हर चीज नियत कर दी गई थी. मुझसे संबंधित सभी योजनाएं बनाई जा चुकी थीं. मुझे आवश्यक वस्त्रादि दे दिए गए थे और मुझे बताया गया कि मुझे कहां उपस्थित रहना है. इन बहुत मूल्यवान और पवित्र प्रतीत होनेवाले वस्त्रों के साथ एक समझ भी विकसित हो गई थी कि यह सब निस्संदेह बहुत पवित्र और महत्वपूर्ण था.
लेकिन इस प्रकार की औपचारिक जीवनशैली को अपनाने से पहले मैं पूर्वी तिब्बत में अपने परिवार के साथ रहता था.और जब मैं सात साल का था तभी अचानक मेरे घर में एक खोजी दल का आगमन हुआ. वे अगले करमापा की खोज कर रहे थे और मैंने यह देखा कि वे मेरे माता-पिता से बात कर रहे थे. फिर मुझे यह पता चला कि वे कह रहे थे कि मैं ही करमापा हूं. इन दिनों लोग मुझसे बार-बार पूछते हैं कि मुझे उस समय कैसा लगा और यह कि मुझे कैसा लगा जब वे आए, मुझे ले गए, और मेरा जीवन हमेशा के लिए बदल गया. ऐेसे में मैं जो कुछ उनसे ज्यादातर कहता हूं, वह ये है कि उस समय यह सब मेरे लिए बहुत रोचक था. मुझे यह लगा कि ये सब बहुत मजेदार होगा और यह भी कि मुझे खेलने के लिए बहुत सारी चीजें मिलेंगीं.
लेकिन यह सब उतना मनोरंजक या रोचक नहीं था जितने की मैंने कल्पना की थी. मुझे बड़े कठोर नियंत्रण के वातावरण में रखा गया और तत्काल ही मेरी शिक्षा संबंधी और अन्य जिम्मेदारियां मुझपर डाल दीं गईं. मैं अपने माता-पिता और सभी परिजनों से दूर हो गया. मेरा कोई मित्र भी नहीं था जिसके साथ मैं समय बिताता, और मुझे कई प्रकार के दायित्व निभाने पड़ते थे. इस प्रकार मैंने करमापा बनकर आरामदायक जीवन व्यतीत करने की जो कल्पना की थी वह सच साबित नहीं हुई. मुझे यह लगता रहता था कि मुझे एक मूर्ति की भांति आदर दिया जा रहा है और मैं मूर्तिवत ही एक स्थान पर बैठा रहता था.
उस पर भी, मुझे यह लगता था कि हांलांकि मैं अपने परिवार और प्रियजनों से दूर हो गया था — और… खैर, अब तो मैं और अधिक दूर हो गया हूं. जब मैं 14 साल का था तब मैं तिब्बत से निकला और अपने माता-पिता, सगे-संबंधियों, मित्रों और मातृभूमि से और अधिक दूर हो गया. फिर भी, अब मेरे हृदय में विस्थापित होने का भाव घनीभूत नहीं है, क्योंकि मैं इन व्यक्तियों के प्रति प्रेम का अनुभव करता हूं. मेरे मन में, इन सभी व्यक्तियों और अपनी मातृभूमि के लिए बहुत गहरा प्रेम है.
और मैं अभी भी अपने माता-पिता से संपर्क बनाए रखता हूं, हांलांकि यह कम हो गया है. अपनी मां से मैं लंबे अंतराल में एक बार टेलीफ़ोन पर बात कर लेता हूं. और इस विषय पर मेरा अनुभव यह है कि जब मैं उनसे बात करता हूं तब हर गुज़रते पल के साथ हमारी बातचीत के दौरान हमें एक-दूसरे से जोड़नेवाला प्रेम हमें और अधिक समीप ले आता है.
तो ये कुछ बातें थीं मेरी पृष्ठभूमि के बारे में. और कुछ दूसरी बातें जो मैं आप सभी से बांटना चाहता हूं, वे कुछ विचार हैं, मेरे विचार से यह बहुत अच्छा अवसर है कि यहां विभिन्न स्थानों और पृष्ठभूमि के लोग एक साथ बैठकर अपने विचार साझा कर रहे हैं और एक-दूसरे से मित्रता स्थापित कर रहे हैं. मुझे यह उसका प्रतीक लग रहा है जो हम ,सामान्यतः विश्व में अनुभव कर रहे हैं कि यह विश्व छोटा, और छोटा होता जा रहा है और विश्व के समस्त नागरिकों को संपर्क के अच्छे अवसर मिल रहे हैं. यह बहुत अच्छी बात है, पर हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हमारे भीतर भी ऐसी ही प्रक्रिया का प्रारंभ होना चाहिए. बाहरी विकास और बढ़ते हुए अवसरों के साथ भीतरी विकास भी होना चाहिए और बाहरी संबंध पनपने के साथ-साथ हृदय के संबंध भी गहरे होने चाहिए. इस सप्ताह हमने डिजाइन के बारे में सुना और बातें की हैं. मुझे लगता है कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हमें यह याद रखें कि हमें हृदय की योजना का विकास करने के लिए और आगे प्रयास और उद्यम करते रहें. इस सप्ताह हमने तकनीक के बारे में बहुत कुछ सुना और हमें इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए कि हम अपनी ऊर्जा का अधिकाधिक उपयोग अपने हृदय की तकनीक के संवर्धन में लगाएं.
तो, हांलांकि मैं कुछ प्रसन्न हूं कि दुनिया भर में आश्चर्यजनक विकास हो रहा है फिर भी मुझे लगता है कि जब कभी भी हम हृदय-से-हृदय या मन-से-मन के स्तर पर एक-दूसरे से जुड़ना चाहते हैं तो हमारे सम्मुख बाधाएं आ जातीं हैं.मुझे लगता है कि कुछ चीजें हैं जो हमें ऐसा करने से रोक देतीं हैं.
हृदय-से-हृदय के संपर्क या मन-से-मन के स्तर के संपर्क की संकल्पनाओं के मेरे अनुभव बहुत रोचक हैं क्योंकि आध्यात्मिक नेता के रूप मे मैं सदैव प्रयास करता हूं कि मैं अपने हृदय में दूसरों को स्थान दूं, हृदय-से-हृदय के या मन-से-मन के स्तर के संपर्कों को विकसित करने के लिए स्वयं को शुद्ध मन से दूसरों के हांथों में सौंप दूं लेकिन उसी समय मुझे यह भी लगता है कि मैं इस बात पर ज़ोर दूं कि हृदय-से-हृदय के संपर्क के ऊपर मैं बुद्धि की महत्ता को दर्शाऊं क्योंकि मेरी जैसी स्थिति में होने के कारण यदि मैं बोध पर मुख्य रूप से विश्वास नहीं करूंगा तो मेरे साथ कुछ विपत्तिकारक भी हो सकता है. इस प्रकार इन सभी बातों में रोचक विरोधाभास हैं. लेकिन एक बार मुझे बहुत अद्भुत अनुभव हुआ, जब अफगानिस्तान से एक दल मुझसे मिलने के लिए आया और हमारे बीच बहुत अच्छी बातचीत हुई.
हमने बामियान की बुद्ध प्रतिमाओं की बात भी की जिनके बारे में आप जानते हैं कि उन्हें कुछ वर्षों पहले अफगानिस्तान में ध्वस्त कर दिया गया था. लेकिन हमारी बातचीत का मूल बिंदु मुस्लिम और बौद्ध परम्पराओं में आध्यात्मिकता के प्रति भिन्न मान्यताओं पर केन्द्रित था. आप जानते हैं कि मूर्तिपूजा के सम्बन्ध में इस्लाम में काया और दैवीयता का चित्रण एवं मुक्ति का स्वरूप उस प्रकार नहीं मिलता है जैसा यह बौद्ध परम्परा में है जहां बुद्ध की अनेक प्रतिमाओं की ईश्वरतुल्य जानकार पूजा की जाती है और अपार आदर किया जाता है. इस तरह हमने इन परम्पराओं के मध्य स्थित अंतर पर चर्चा की. हमारे ऊपर बामियान की प्रतिमाओं को धवस्त करने की त्रासदी के प्रभाव के बारे में बात करने पर मैंने यह सुझाव भी दिया कि हम इसे भी सकारात्मक रूप से देख सकते हैं. हमने बामियान के बुद्धों के ध्वंसन को पदार्थ के अवक्षय के रूप में देखा – जैसे कुछ ठोस पदार्थ ऊपर से गिरकर बिखर गया. शायद इससे मिलती-जुलती बात हम बर्लिन की दीवार के टूटने में भी देख सकते हैंजहाँ दो प्रकार के व्यक्तियों को एक-दूसरे से अलग रखनेवाली दीवार गिर गयी और इस घटना ने संपर्क और संबंध विकसित करने का नया मार्ग दिया. तो मुझे लगता है कि इस प्रकार यह सदैव संभव है कि हम किसी सकारात्मक स्तर पर आ जाएँ जिससे हम एक-दूसरे को बेहतर समझ सकें.
विकास के संदर्भ में इस कांफ्रेंस में हम सभी जिसकी बात कर रहे हैं, मुझे यह लगता है कि इससे जो भी विकास हो वह हमारे ऊपर कोई बोझ न डाले बल्कि हमारी मूलभूत जीवनशैली में सुधार लाये ताकि हम सभी विश्व में बेहतर तरीके से जी सकें.
यह सत्य है कि मैं इस महान देश भारत की पवित्र भूमि के उत्थान और विकास से बहुत प्रसन्न हूँ पर उसी समय मैं यह भी सोचता हूँ कि हम लोगों में से कुछ यह जानते हैं कि हमें जागरूक होना चाहिए क्योंकि हम इस विकास के कुछ पहलुओं की उस रूप मे बड़ी भारी कीमत चुका रहे हैं जिससे हमारे विकास करने पर प्रश्नचिह्न लगने लगे हैं. जैसे-जैसे हम वृक्ष के ऊपर चढ़ रहे हैं तब वृक्ष पर आरोहण की प्रक्रिया में हम वे काम कर रहे हैं जिनसे इस वृक्ष की जड़ ही नष्ट हो रही है. ऐसे में, मुझे यह लगता है कि हमें न केवल इसका बोध होना चाहिए बल्कि हमें ध्यानपूर्वक अपनी प्रेरणा को इसपर केन्द्रित करना चाहिए ताकि इसके वास्तविक शुद्ध एवं सकारात्मक परिणाम आयें. इस सप्ताह हमने यहाँ सुना है कि विश्व में असंख्य महिलायें दिन-प्रतिदिन घोर कष्टप्रद जीवन जी रही हैं. इस बात की जानकारी हमें है पर अक्सर यह होता है कि हम इसपर ध्यान ही नहीं देना चाहते. हम इस बात का मौक़ा ही नहीं देते कि यह चीज़ हमारे ह्रदय पर कुछ प्रभाव डाले. मुझे लगता है कि — दुनिया यह कर सकती है जिससे हमारे बाहरी विकास का हमारी खुशियों से सीधा तालमेल हो. इसका उपाय यह है कि हम इन जानकारियों से अपने ह्रदय को द्रवित होने दें.
मुझे लगता है कि हमारे बेहतर भविष्य के लिए या मनुष्य होने के सुखद अहसास के लिए परिशुद्ध प्रेरणा बहुत आवश्यक है, और मैं सोचता हूँ कि इसके लिए हमें अपने समस्त कार्यों को भली प्रकार करना चाहिए. विश्व के कल्याण के लिए आप जो भी कार्य करें, उसमें आप अपना समस्त दें, और उसका पूरा आनंद लें.
तो, इस पूरे सप्ताह हम यहाँ रहे हैं, हमने सम्मिलित होकर लाखों श्वास लीं हैं, पर शायद हमने अपने जीवन में किसी परिवर्तन का अनुभव नहीं किया है, या शायद हमने सूक्ष्म परिवर्तनों को अनदेखा कर दिया है. और मुझे लगता है कि कभी-कभी हम अपनी प्रसन्नता की विराट संकल्पनाएँ और धारणाएं बना लेते हैं, पर यदि हम ध्यान से देखें, तो हम पाएंगे कि हमारी हर श्वास में आनंद और प्रसन्नता के सूक्ष्म प्रतीक तत्व हैं.
यहाँ आमंत्रित आप सभी आगंतुक बहुत मेधावी हैं, और इस विश्व को बहुत कुछ दे सकते हैं, मेरे विचार से समापन के समीप हम यह कहना उचित होगा कि एक क्षण के लिए हम सोचें कि हम कितने भाग्यवान हैं कि हम सभी ने इस प्रकार यहाँ एकत्र होकर अपने विचारों का आदान-प्रदान किया और अपने भीतर विशाल महत्वाकांक्षा और प्रेरणा का अर्जन कियाकि हम इस कांफ्रेंस से कुछ अच्छी बातें जैसे ऊर्जा, आवेग, सकारात्मकता लेकर जायेंगे और उसे दुनिया भर में बोएंगे और प्रसारित करेंगे.
Photo by Tim Marshall on Unsplash
हृदय की तकनीक से हम लोगों को जुड़ना सिखाते हैं।
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अच्छा लगा इतनी सहज आत्मीयता और खुलेपन से अनुभव बांटना. (आप भाषा से जुड़े हैं इसलिए ‘एक पूज्यनीय व्यक्तित्व’ में पूज्य अथवा पूजनीय, संशोधन पर कृपया विचार करें.)
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धन्यवाद राहुल जी, अपेक्षित संशोधन शीघ्र ही कर दूंगा.
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aapka jwaab nahi bahut badiya.god bless you.
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kaash sab ise samajh sake.god bless you.
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