श्री देवदत्त पटनायक का यह आलेख अंग्रेजी अखबार कॉरपोरेट डॉज़ियर ईटी में 4 फरवरी, 2011 को प्रकाशित हो चुका है. उनकी अनुमति से मैं इसका हिंदी अनुवाद करके यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ. यदि आप मूल अंग्रेजी आलेख पढना चाहें तो यहाँ क्लिक करें.
समुद्र के आर-पार एक विराट पुल बनाने के कार्य का प्रारंभ हुआ. इस पुल के द्वारा श्रीराम की सेना ने लंकानगरी जाकर युद्धोपरांत माता सीता को सकुशल लेकर आने की ठानी थी. श्रीराम की सेना अद्भुत थी – यह मुख्यतः वानरों और अन्य पशुओं की सेना थी. गिद्धराज ने लंकानगरी की दिशा बताई थी. भालुओं ने वास्तुकार की भूमिका का निर्वहन किया. वानरों ने श्रमिकों के रूप में निर्माणकार्य में योगदान दिया. उन्होंने बड़े-बड़े पत्थर उठाकर समुद्र में फेंके – यह बड़ा विकट काम था. कार्य को योजनाबद्ध रूप से कुशलतापूर्वक संपादित करने के लिए वानर समूह अपने स्वाभाविक करतबों और शोरगुल के साथ भिड़े हुए थे तभी एक नन्ही गिलहरी भी एक कंकड़ उठाये चली आई. इस छोटे प्राणी के मन में भी विराट प्रयोजन की सफलता के लिए योगदान करने का संकल्प था. उसका बेतुका प्रयास देखकर वानरों की हंसी छूट गयी. एक ने तो उसे अपने रास्ते का अवरोध जानकर परे भी धकेल दिया. लेकिन श्रीराम ने उसे देखा और वे उसके समर्पण से अभिभूत हो गए. उन्होंने उस नन्हे प्राणी को उसके अथक योगदान के लिए धन्यवाद दिया. नन्ही गिलहरी को सुखकर प्रतीति देने के लिए उन्होंने उसकी पीठ पर उंगलियाँ फेरीं. कहा जाता है कि इसी कारण से गिलहरियों की पीठ पर धारियों के चिह्न दिखते हैं जो उस छोटे से प्राणी के अंशदान के प्रति श्रीराम की कृतज्ञता अर्पित करने के द्योतक हैं.
सांख्यिकीय दृष्टि से देखें तो पुल के निर्माण में गिलहरी का योगदान नगण्य है. लेकिन हमारे लिए जो नगण्य है वह गिलहरी के लिए 100% है. क्या गिलहरी के योगदान का कोई औचित्य नहीं है? यह तो निश्चित है कि पुल के निर्माण के संबंध में इसका कोई महत्व नहीं है, लेकिन श्रीराम के लिए यह निस्संदेह महत्वपूर्ण था. उन्होंने यह देख लिया कि गिलहरी की निष्ठा का कोई सानी नहीं है. मात्रा या सामग्री के रूप में तो उसका योगदान दूसरों के योगदान के सामने कुछ भी नहीं है पर इसका भावनात्मक मूल्य औरों से बढ़कर है. यही बात मायने रखती है.
जायसवाल एक क्रेडिट कार्ड कंपनी में ग्राहक सेवा विभाग का मुखिया है. अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिए वह हर संभव प्रयास करता है कि उसके ग्राहक संतुष्ट और प्रसन्न रहें. जब भी उसका प्रबंध निदेशक (MD) उससे ग्राहकों की संतुष्टि के बारे में पूछता है तो जायसवाल उसे एक ग्राफ दिखता है जिसमें नियमित भुगतान करनेवाले ग्राहकों की संतुष्टि का स्तर दिखता है. फिर वह MD को एक दूसरा ग्राफ दिखाता है जिसमें ग्राहकों की इस साल की संतुष्टि की तुलना पिछले साल की संतुष्टि के स्तर से दिखाई जाती है. वह एक टेबल भी दिखाता है जिसमें आधार में बढ़ोत्तरी होने और काल सेंटर के लिए अतिरिक्त खर्च किये बिना भी संतुष्टि के स्तर में सुधार दिखता है. उसके प्रेजेंटेशन के ख़त्म होते-होते कमरे में मौजूद सभी व्यक्तियों और MD को भी यह विश्वास हो जाता है कि ग्राहक वास्तव में खुश हैं.
लेकिन इस सबसे बहुत दूर बेलगाम में जयराज बहुत परेशान है. वह कुछ महीने पहले श्री लंका की यात्रा पर गया था और कंपनी ने उसे बिना बताये उसका कार्ड डी-एक्टीवेट कर दिया. जब उसने इसका कारण पूछा तो उसे बताया गया कि ऐसा सुरक्षा कारणों से किया गया था क्योंकि श्री लंका जैसे पर्यटक स्थलों पर कार्ड से सम्बंधित बहुत धांधलेबाजी हो रहीं थीं. कंपनी ने जयराज को बताया कि उसे एक सप्ताह में नया कार्ड मिल जाएगा पर इस बात को दो महीने बीत गए थे और कोई कार्ड नहीं आया.
जयराज बार-बार कंपनी से बात करता है पर हर बार उसे रटारटाया उत्तर मिलता है. उसने ग्राहक सेवा के मुखिया को भी लिखा लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला. जयराज क्रोधित है. उसे लगता है कि उसके साथ धोखा किया गया है. वह स्वयं को असहाय मानने लगा है. उसे लगता है कि किसी को भी उसकी फ़िक्र नहीं है और कंपनी के लिए वह महत्वहीन है.
कंपनी के संतुष्टि ‘पुल’ के प्रयोजन में जयराज की भूमिका नन्ही ‘गिलहरी’ की भांति हो गयी है जिसका उत्तरदायी जायसवाल है. एक अकेले जयराज के योगदान से कंपनी को बहुत फर्क नहीं पड़ता. वह सैंकड़ों-हज़ारों में से एक है. कंपनी की दृष्टि अपार सांख्यिकीय वानर समूह पर रहती है जो बड़े-बड़े पत्थर फेंककर पुल का निर्माण करते हैं और कंपनी को लक्ष्य तक पहुंचाते हैं. कंपनी की दृष्टि में जयराज के छोटे अंश का कोई मोल नहीं है. उलटे, कंपनीवाले तो उसकी बार-बार की शिकायतों से त्रस्त हो चुके हैं. यह आधुनिक प्रबंधन की त्रासदी है कि इसने यह धारणा बना ली है कि सभी लोगों को खुश नहीं किया जा सकता. इसमें यह शिक्षा दी जाती है कि ‘राम कैसे नहीं बनें’: यह 100 % की चिंता नहीं करती. इसके लिए 80% का महत्व है और बचे हुए 20% के बारे में यह कुछ नहीं सोचती.
लक्ष्य के अनुसार नीतियां बदल जाती हैं, कई बार जिन्हें हम ‘थम्ब रूल’ मानते हैं, वही अंगूठा दिखा देते हैं.
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हमारा 100 प्रतिशत उनके लिये नगण्य है, बहुधा होता है, हर क्षेत्र में।
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kaash ye hmaari govt.bhi samajh sake.ek din to aayega?
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एक एक मिलकर ही अनेक बनते हैं. जब सामूहिक लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है तो उसमे एक का इतना महत्व नहीं रहता. दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन ऐसा ही होता है.
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मैने दोनो लेख – अंग्रेज़ी और हिन्दी में – पढ़े। बहुधा ऐसा कम ही देख्नने को मिलता है कि अनुवादित लेख मूल लेख से बढ़िया एवं बहतर हो। इसके लिएँ आपको बहुत बहुत धन्यावाद एवं बधाई।
अब इस लेख के विषय पर आता हूँ। बात सौ फ़ीसदी सच है कि कंपनीयां अपने सारे ग्राहकों कि जगह सिर्फ़ सरसरी तौर पर आँकड़े पढ़ती हैं व उसी आधार पर अपनी तरक्की की गिनती करती हैं।
ऐसा मेरे साथ भी घट चुका है और अभी तक तो कोई जवाब मुझे नहीं मिला है। मैने इस पर एक लेख भी लिखा है अपने ब्लॊग पर।http://palakmathur.wordpress.com/2010/11/18/mts-mblaze-worst-internet-service-provider/
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Beautiful analysis, I agree with you.
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निशांत पढने में ये लेख बहुत मधुर है पर ज़मीनी सच्चाई इससें भी भयावह है. सिर्फ कॉरपोरेट जगत ही दोषी नहीं. हम भारतीयों ने कब प्रतिभाओ का सम्मान किया है या किसी के मूल्य को कब ठीक से समझा है. It’s now use and throw.
ये सन्देश किसी का पढ़ा और लगा शायद ये वृत्ति अपनाना हम भारतीय लोगो के बस की बात नहीं : Every individual matters. Every individual has a role to play. Every individual makes a difference. (Jane Goodall ). आप अगर “Pavlov’s dog” है तो ठीक लेकिन अगर लीक से हटकर चल रहे है तो समझिये सारी दुनिया गरियाने के लिए मुंह बाएं खड़ी है. हा सिस्टम का हिस्सा बन जाइये, हमाम में आप भी नंगे हो जाए. देखिये आप तुरंत जर्रे से कोहिनूर हीरे की तरह लाइट ना मारने लगे तो कहिये. मारल ऑफ़ द मेसेज :जो नंगा है वो ही हिट है, फिट है 🙂
अंत में होली की शुभकामनाएं तुम्हे और सबको.
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शानदार कमेंट के लिए धन्यवाद. जेन गुडाल ने अफ्रीका में गोरिल्ला पर काफी काम किया है, लगभग अपना पूरा जीवन ही उन्होंने कपियों के अध्ययन में लगा दिया.
पावलोव का कुत्ता वही न जो घंटी बजने पर लार बहाने लगता था? 🙂
And finally, I quote W. B. Yeats:
“The best lack all conviction, while the worst
Are full of passionate intensity.”
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निशांत हा मै इसी प्रसिद्ध कुक्कुर की बात कर रहा था. वैसे आज के ज़माने में किसी को कामयाब होने का हिट मंत्र चाहिए तो बस हर बात पे यस मैम/यस सर कहना सीख जाए. शर्तिया कामयाबी मिलेगी:-) और जो पति अपनी पत्नी को वश में करना चाहते है वो तो जरूर करे:-)
वैसे कुक्कुर वर्ल्ड से एक अत्यंत प्रेरणा देने वाली खबर जिससे ये साबित होता है कि कम से कम डागी तो मुसीबत के वक्त साथ निभाता. हम मनुष्य लोग तो मुसीबत के वक़्त Mr. X in Bombay बन जाते है.
http://newsfeed.time.com/2011/03/18/watch-heroic-dog-wont-leave-his-injured-friend-in-japan-debris/?xid=newsfeed-daily
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दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन ऐसा ही होता है|
होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
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गिलहरी के योगदान को भी महत्व देना आवश्यक है.
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