कुएं में मत कूदो!

आप जब छोटे थे तब आप ऐसे बहुत से काम करना चाहते थे जो आपके माता-पिता या शिक्षकों को पसंद नहीं थे. जब आप उन कामों को करने के लिए हठ करते तब आपसे यह कहा जाता था, “अगर दूसरे लोग कुँए में कूद जायेंगे तो क्या तुम भी कुँए में कूद जाओगे?”

इस बात को कहने के पीछे उनका मतलब यह होता था कि बेवकूफी भरी या व्यर्थ की बातों को करने में कोई सार नहीं है, भले ही दुनिया भर के लोग उन्हें कर रहे हों. तर्कबुद्धि यह कहती है कि हमें हर कार्य को करने से पहले भली-प्रकार सोच विचार करना चाहिए और भेड़चाल में नहीं पड़ना चाहिए.

यह सही सलाह है भले ही इसे देनेवालों की मंशा कुछ और ही रहतीं हों. लेकिन एक दिन आप बचपने से उबरते हैं और सहसा आपके लिए सब कुछ बदल जाता है. लोग आपसे अचानक ही यह उम्मीद करने लगते हैं कि आप सुसंस्कृत वयस्कों सरीखा अर्थात उन जैसा बर्ताव करें. यदि आप उनके कहे पर नहीं चलते और अपना बचपना खोने को तैयार नहीं होते तो वे चकरा जाते हैं या खीझ उठते हैं. यह ऐसा ही है जैसे वे कहें, “अरे भाई, सभी लोग तो कुँए में कूद रहे हैं! तुम काहे नहीं कूदते?”

हर दिन लोगों से बातचीत के दौरान और निर्णय लेते समय आपके सामने भी ऐसे अनेक कुँए आते रहेंगे – लेकिन उनमें कूदने या नहीं कूदने के बारे में निर्णय केवल आपको ही लेना है. ऐसे माहौल में आप पीछे हटकर अपने विकल्प स्वयं कैसे तलाश सकते है?

यह करके देखें:

1. पूछिए ‘क्यों?’ क्यों? यह एक अकेला शब्द ही बहुत शक्तिशाली और परेशान करनेवाला शब्द है. तीन साल के बच्चे तो इस प्रश्न का प्रयोग अक्सर करते हैं पर वयस्क इसे पीछे छोड़ देते हैं. ‘क्यों’ क्रांति के संवाहक बनें. हर किसी से ‘क्यों’ पूछने की आदत डालें. खुद से भी पूछते रहें, ‘क्यों?’

2. स्पष्ट करें – यह सब क्या है? आप वास्तव में क्या करना चाहते हैं और आपने उसे ही वरीयता क्यों दी है?

3. सरल करें – मिनिमलिस्म की पूरी अवधारणा ही सरलीकरण के इर्द-गिर्द घूमती है – जीवन को सादा व सरल रखते हुए अपने सपनों को पूरा करना. लेकिन सरलता का संबंध इस बात से नहीं है कि आपके पास कितने जोड़ी मोज़े हैं. इसका महत्व इस बात में है कि आपके उद्देश्य और संकल्प कितने स्पष्ट हैं.

4. अधिक … करें – हाँ जी, अधिक करें, कम नहीं. जब आपको अपने वास्तविक आवेगों की जानकारी न हो और आप कुँए के भीतर झाँक रहें हों तब बेहतर यही होगा कि आप मुंडेर से दूर हट जाएँ और सब कुछ उधेड़ कर नए सिरे से शुरुआत करें. इसके विपरीत आपके जीवन में यदि सब कुछ पहले से ही शानदार चल रहा हो तो कुछ और चाहने की क्या गरज है?

यदि आप ऊपर चौथे बिंदु में कही गयी बात को समझ नहीं पा रहें हों तो यह करें: कोई नई भाषा सीखें. किताब लिखें. यात्रा पर निकल चलें. कलाकृतियाँ बनाना सीखें. कुछ ऐसा सीखें जो शायद ही कोई और कर सके… जैसे अंगारों पर चलना. अपने आपको स्वयंसेवक के तौर पर दर्ज कराएं.

या फिर कुछ और करें जो आपके मन को अच्छा लगता हो. दुनिया बहुत बड़ी है और यहाँ करने को बहुत कुछ है. आपके सामने असल प्रश्न यह है: कल सुबह जागने पर मैं दुनिया से कदम मिलाकर चलते हुए अपनी इच्छानुसार अपना जीवन कैसे जी सकूंगा?

हम लोगों में से ज्यादातर लोग बहुत सरल जीवन जीने के हिमायती नहीं हैं. हम सभी यह तो चाहते हैं कि हमारे जीवन में अवांछित तत्व नहीं हों पर हमें बड़े-बड़े लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करने पड़ते हैं और एक-दूसरे से जुड़ना पड़ता है. हम वे चीज़ें नहीं जुटाना चाहते जो हमारे काम की नहीं हों पर हमें सार्थक वस्तुओं के लिए व्यय करना ही पड़ता है. हम अपने सफल और उज्जवल भविष्य के लिए स्वयं में ही नहीं बल्कि औरों में भी निवेश करते हैं.

अपने भावी जीवन पर एक कठोर दृष्टि डालिए. कहीं आप कुँए के भीतर तो नहीं झांक रहे हैं? एक कदम पीछे हटकर तय करें कि आपके लिए क्या सर्वोचित है.

सब कुछ आप पर ही निर्भर करता है.

Photo by Joshua Earle on Unsplash

There are 12 comments

  1. प्रवीण पाण्डेय

    यदि लोग दूसरे के दिखे से जैसे वाले सुखों के पीछे अपना दुख न बढ़ाये, आनन्द ही आनन्द फैल जायेगा। दूसरे लोग हमारा सुख दुख क्यों निर्धारित करें, ये प्रश्न तो पूछने ही होंगे स्वयं से।

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  2. रंजना

    सरलता का संबंध इस बात से नहीं है कि आपके पास कितने जोड़ी मोज़े हैं. इसका महत्व इस बात में है कि आपके उद्देश्य और संकल्प कितने स्पष्ट हैं.

    मन मोह लिया इस वाक्य ने….

    कितना सटीक कितना सही कहा गया है …..वाह…

    रूहानी सुकून दे जाती हैं आपकी पोस्टें….

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  3. Gyandutt Pandey

    प्रश्न पूछना बहुत जरूरी है। जब आप प्रश्न करते हैं और तर्क की प्रिमाइसेज तोल कर तय करते हैं तो तर्क आपको बहुत नई विमाओं के दर्शन कराता है। बहुधा बहुत से हल देता है समस्याओं के!

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