वर्ष 1962 में जन्म के समय रिक होयट के गले में अम्बिलिकल कॉर्ड के फंस जाने के कारण उसके मष्तिष्क को ऑक्सीजन की सप्लाई रुक गयी जिसके परिणामस्वरूप उसे सेरेब्रल पैल्सी हो गयी. डॉक्टरों ने उसके माता-पिता को बताया कि रिक को ताउम्र विकलांगों के अस्पताल में रहना होगा. लेकिन पिता डिक होयट और रिक की माँ को यह मंज़ूर नहीं था. उन्होंने तय कर लिया कि वे रिक को सामान्य जीवन उपलब्ध कराने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे.
कुछ लोग यह सवाल उठाएंगे कि ‘पिछले तीस सालों में लगभग 1000 मैराथन और ट्रायाथलॉन दौड़ में भाग लेना सामान्य कैसे कहला सकता है’, लेकिन डिक होयट के लिए यह सामान्य बात है.
रिक चल-फिर नहीं सकता. वह बोल भी नहीं सकता हांलांकि उसने बोस्टन कॉलेज से स्पेशल एजुकेशन में डिग्री ली. उसने बोस्टन कॉलेज को “ईगल आई” नामक एक कम्प्युटर सिस्टम विकसित करने में मदद की जिसकी सहायता से उस जैसे असाध्य अवस्था से ग्रस्त व्यक्ति स्क्रीन पर नज़र गड़ाकर शब्दों का निर्माण करके अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकते हैं.
एक दिन कॉलेज में एक बास्केटबाल मैच देखने के दौरान उसने सुना कि एक दुर्घटना में विकलांग हो चुके व्यक्ति के लिए धन जुटाने की मंशा से एक क्रॉस कंट्री दौड़ का आयोजन होनेवाला है. डिक को याद है कि उस दिन रिक ने घर आनेपर उनसे कहा, “डैड, हमें उसके लिए कुछ करना चाहिए. मैं उसे यह दिखा देना चाहता हूँ कि हाथ-पैरों के बेकार हो जाने से ज़िंदगी नहीं रुक जाती.”
“रिक ने मुझे दौड़ने के लिए प्रेरित किया”, डिक ने कहा. उस दिन के पहले डिक ने कभी भी दौड़ में भाग नहीं लिया था. वर्ष 1979 में डिक ने रिक को दोपहिया व्हीलचेयर में बिठाकर उसे धकेलते हुए पांच मील की दौड़ में भाग लिया.
“फिर हम मैराथन के लिए दौड़ने लगे. हमने पहली मैराथन में 1981 में भाग लिया.” (2006 में इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक) वे 26.2 मील की 64 मैराथन दौड़ चुके हैं जिनमें 24 बोस्टन मैराथन भी शामिल हैं.
“हमने अपनी पहली ट्रायाथलॉन 1985 में पूरी की”, डिक ने बताया. इस दौड़ में एक मील की तैराकी, 40 मील की साइकिलिंग, और 10 मील की दौड़ पूरी करनी होती है.
1988 में उन्होंने अपनी पहली आयरनमैन दौड़ के लिए प्रयास किया. इस मुश्किल दौड़ में 2.4 मील की समुद्री तैराकी, 112 मील की साइकिलिंग, और एक फुल मैराथन पूरी करनी होती है. उन्हें बीच दौड़ से हटना पड़ा क्योंकि डिक की तबीयत ख़राब हो गयी और वे कट-ऑफ टाइम को नहीं पा सके. अगले साल उन्होंने दौड़ सफलतापूर्वक पूरी कर ली. 2003 में वे साइकिलिंग के 85वें मील पर दुर्घटनाग्रस्त हो गए और कुछ समय अस्पताल में भर्ती रहे. अगले साल उन्होंने पुनः यह दौड़ पूरी कर ली.
“रिक को खेलना बहुत अच्छा लगता है”, डिक ने बताया. “वह आयरनमैन का बेसब्री से इंतज़ार करता है. इस दौड़ से उसे भी वही रोमांच मिलता है जो मैं पाता हूँ. उसकी रगों में भी ऐड्रीनलीन दौड़ने लगता है”.
तैरने के दौरान डिक अपने बेटे को हवा भरनेवाली नाव में लिटाकर नाव को खुद से बाँध कर खींचते हैं. सड़क पर दौड़ने के वक़्त रिक ख़ास तौर पर डिजायन की गयी तीन पहिये वाली साइकिल में सामने एक बास्केट में बैठता है. ऊबड़-खाबड़ सड़क दौड़ों में वे दोनों दुर्गम स्थानों से गुज़रते हैं. “मुझे पहाड़ियों से कोई दिक्कत नहीं है पर तेज़ हवा से बहुत तकलीफ होती है”, डिक ने कहा. साइकिलिंग करते वक़्त डिक को पूरे 365 पाउंड के वज़न को धकेलना पड़ता है.
“मैं नहीं जानता कि मैं यह सब कर तक कर पाऊंगा”, 66-वर्षीय डिक ने कहा. “शायद मैं एक आयरनमैन और दौडूँ पर ट्रायाथलॉन में भाग लेना बंद नहीं करूंगा. रिक अब 44 साल का हो गया है. अब हम नई आयरनमैन 70.3 सीरीज के रेस में भाग लिया करेंगे जो रेगुलर रेस से आधी है”.
सेना से रिटायर होने के बाद डिक अपना ज्यादातर समय मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में दौरा करके बिताते हैं. उन्होंने रिक के पालन-पोषण के अनुभवों पर एक किताब भी लिखी है जिसका कई भाषाओँ में अनुवाद भी हुआ है.
सर्वांग, संपूर्ण, स्वस्थ्य को प्रेरित करने वाली जीवनी.
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बहुत सुन्दर अच्छी लगी आपकी हर पोस्ट बहुत ही स्टिक है आपकी हर पोस्ट कभी अप्प मेरे ब्लॉग पैर भी पधारिये मुझे भी अपने अनुभव के बर्मे जन ने का मोका देवे. दिनेश पारीक
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ऐसे जांबाज़ दिये तूफान में भी जगमगाते रहते हैं।
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Very good
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bahut achcha lagaa aap ke blog par aakar haemsha lagtaa haen vyakta tab kartee hun jab dil ko chutaa haen
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फिर भी जीवन में कुछ तो है, हम थकने से रह जाते हैं।
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अद्भुत पोस्ट! पोस्ट में वर्णित परिवार की जिजीविषा को सलाम।
आज इसे सुबह घर में देखा। दफ़्तर में आकर अपने एक स्टाफ़ को दिखाया और प्रिंट करके दिया। उसका बच्चा आटिज्म का मरीज है। अभी पिछले हफ़्ते ही पता चला ! इस पोस्ट को पढ़कर उसको कुछ हौसला बंधा कि अपने बच्चे की देखभाल वह कर सकता है। पिछले कई दिनों से काम में अनमना था वह बालक। आज खूब काम किया उसने।
इस पोस्ट को यहां लगाने के लिये आभार! 🙂
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Jo kewal shareer se kam kare use majdoor kaha jata he, jo shareer aur dimag se kam kare use kareegar kaha jata he aur jo shareer,dimag tatha dil se kam kare vah kalakar kahlata he. Rick Hoyat aise hi kalakar they.padhkar prerna milti he.
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Bhoot hi acche vichar hai apke, aap aise hi vichar post karte rhiye.
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Thanks
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