ज़िंदगी को मुश्किल बनानेवाले 7 अवचेतन विचार

हम लोगों में से बहुत से जन अपने मन में चल रहे फालतू के या अतार्किक विचारों से परेशान रहते हैं जिसका हमारे दैनिक जीवन और कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ये विचार सफल व्यक्ति को असफल व्यक्ति से अलग करते हैं. ये प्रेम को नफ़रत से और युद्ध को शांति से पृथक करते हैं… ये विचार सभी क्लेशों और युद्दों की जड़ हैं क्योंकि अचेतन एवं अतार्किक विचारधारा ही सभी युद्धों को जन्म देती है.

इस पोस्ट में मैं ऐसे 7 अतार्किक व अवचेतन विचारों पर कुछ दृष्टि डालूँगा और आशा करता हूँ कि आपको इस विवेचन से लाभ होगा (यदि आप इनसे ग्रस्त हों, तो:)

1. यदि कोई मेरी आलोचना कर रहा है तो मुझमें अवश्य कोई दोष होगा.

लोग एक-दूसरे की अनेक कारणों से आलोचना करते हैं. यदि कोई आपकी आलोचना कर रहा है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपमें वाकई कोई दोष या कमी है. आलोचना का एक पक्ष यह भी हो सकता है कि आपके आलोचक आपसे कुछ भिन्न विचार रखते हों. यदि ऐसा है तो यह भी संभव है कि उनके विचार वाकई बेहतर और शानदार हों.  यह तो आपको मानना ही पड़ेगा कि बिना किसी मत-वैभिन्य के यह दुनिया बड़ी अजीब जगह बन जायेगी.

2. मुझे अपनी ख़ुशी के लिए अपने शुभचिंतकों की सुझाई राह पर चलना चाहिए.

बहुत से लोगों को जीवन में कभी-न-कभी ऐसा विचार आता है हांलांकि यह विचार तब घातक बन जाता है जब यह मन के सुप्त कोनों में जाकर अटक जाता है और विचलित करता रहता है. यह तय है कि आप हर किसी को हर समय खुश नहीं कर सकते इसलिए ऐसा करने का प्रयास करने में कोई सार नहीं है. यदि आप खुश रहते हों या खुश रहना चाहते हों तो अपने ही दिल की सुनें. दूसरों के हिसाब से ज़िंदगी जीने में कोई तुक नहीं है पर आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आपके क्रियाकलापों से किसी को कष्ट न हो. दूसरों की बातों पर ध्यान देना अच्छी बात है पर उन्हें खुश और संतुष्ट करने के लिए यदि आप हद से ज्यादा प्रयास करेंगे तो आपको ही तकलीफ होगी.

3. यदि मुझे किसी काम को कर लेने में यकीन नहीं होगा तो मैं उसे शुरू ही नहीं करूंगा.

इस विचार से भी बहुत से लोग ग्रस्त दिखते हैं. जीवन में नई चीज़ें करते रहना बढ़ने और विकसित होने का सबसे आजमाया हुआ तरीका है. इससे व्यक्ति को न केवल दूसरों के बारे में बल्कि स्वयं को भी जानने का अवसर मिलता है. हर आदमी हर काम में माहिर नहीं हो सकता पर इसका मतलब यह नहीं है कि आपको केवल वही काम हाथ में लेने चाहिए जो आप पहले कभी कर चुके हैं. वैसे भी, आपने हर काम कभी-न-कभी तो पहली बार किया ही था.

4. यदि मेरी जिंदगी मेरे मुताबिक नहीं चली तो इसमें मेरी कोई गलती नहीं है.

मैं कुछ कहूं? सारी गलती आपकी है. इससे आप बुरे शख्स नहीं बन जाते और इससे यह भी साबित नहीं होता कि आप असफल व्यक्ति हैं. आपका अपने विचारों पर नियंत्रण है इसलिए अपने कर्मों के लिए भी आप ही जवाबदेह हैं. आपके विचार और कर्म ही आपके जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं. यदि आप अपने जीवन में चल रही गड़बड़ियों के लिए दूसरों को उत्तरदायी ठहराएंगे तो मैं यह समझूंगा कि आपका जीवन वाकई दूसरों के हाथों में ही था. उनके हाथों से अपना जीवन वापस ले लें और अपने विचारों एवं कर्मों के प्रति जवाबदेह बनें.

5. मैं सभी लोगों से कमतर हूँ.

ऐसा आपको लगता है पर यह सच नहीं है. आपमें वे काबिलियत हैं जिन्हें कोई छू भी नहीं सकता और दूसरों में वे योग्यताएं हैं जिन्हें आप नहीं पा सकते. ये दोनों ही बातें सच हैं. अपनी शक्तियों और योग्यताओं को पहचानने से आपमें आत्मविश्वास आएगा और दूसरों की सामर्थ्य और कुशलताओं को पहचानने से उनके भीतर आत्मविश्वास जगेगा. आप किसी से भी कमतर नहीं हैं पर ऐसे बहुत से काम हो सकते हैं जिन्हें दूसरे लोग वाकई कई कारणों से आपसे बेहतर कर सकते हों इसलिए अपने दिल को छोटा न करें और स्वयं को विकसित करने के लिए सदैव प्रयासरत रहें.

6. मुझमें ज़रूर कोई कमी होगी तभी मुझे ठुकरा दिया गया.

यह किसी बात का हद से ज्यादा सामान्यीकरण कर देने जैसा है और ऐसा उन लोगों के साथ अक्सर होता है जो किसी के साथ प्रेम-संबंध बनाना चाहते हैं. एक या दो बार ऐसा हो जाता है तो उन्हें लगने लगता है कि ऐसा हमेशा होता रहेगा और उन्हें कभी सच्चा प्यार नहीं मिल पायेगा. प्यार के मसले में लोग सामनेवाले को कई कारणों से ठुकरा देते हैं और ऐसा हर कोई करता है. इससे यह साबित नहीं होता कि आप प्यार के लायक नहीं हैं बल्कि यह कि आपका उस व्यक्ति के विचारों या उम्मीदों से मेल नहीं बैठता, बस इतना ही.

7. यदि मैं खुश रहूँगा तो मेरी खुशियों को नज़र लग जायेगी.

यह बहुत ही बेवकूफी भरी बात है. आपकी ज़िंदगी को भी खुशियों की दरकार है. आपका अतीत बीत चुका है. यदि आपके अतीत के काले साए अभी भी आपकी खुशियों के आड़े आ रहे हों तो आपको इस बारे में किसी अनुभवी और ज्ञानी व्यक्ति से खुलकर बात करनी चाहिए. अपने वर्तमान और भविष्य को अतीत की कालिख से दूर रखें अन्यथा आपका भावी जीवन उनसे दूषित हो जाएगा और आप कभी भी खुश नहीं रह पायेंगे. कोई भी व्यक्ति किसी की खुशियों को नज़र नहीं लगा सकता.

इन अवचेतन विचारों से कैसे उबरें?

यह बहुत आसान है. जब भी आपके मन में कोई अवचेतन या अतार्किक विचार आये तो आप उसे लपक लें और अपनी विचार प्रक्रिया का अन्वेषण करते हुए उसमें कुछ मामूली फेरबदल कर दें… कुछ इस तरह:

सोचिये कि आप किसी शानदार दिन अपनी प्रिय शर्ट पहनकर जा रहे हैं और एक चिड़िया ने उसपर बीट कर दी. ऐसे में आप सोचेंगे:

“ये @#$% हमेशा मेरे साथ ही क्यों होता है!?”
इसकी जगह आप यह कहें…
“अरे यार… अब तो इस शर्ट को धोना पड़ेगा.”

अपनी बातों में “हमेशा” को खोजें, जो कि अमूमन सही जगह प्रयुक्त नहीं होता. यदि वाकई आपके ऊपर चिड़ियाँ “हमेशा” बीट करतीं रहतीं तो कल्पना कीजिये आप कैसे दिखते. अबसे आप इस तरह की बातें करने से परहेज़ करें. एक और उदाहरण:

“मैं हमेशा ही बारिश में फंस जाता हूँ”… (यदि यह सच होता तो आप इंसान नहीं बल्कि मछली होते).

“मैं/मुझे… कभी नहीं…”{ उदाहरण: “मुझे पार्किंग की जगह कभी नहीं मिलती”… (यदि यह सच होता तो आप अपनी गाड़ी के भीतर ही कैद सुबह से शाम तक घूमते रहते).

“मैं… नहीं कर सकता” {उदाहरण: “मैं दो मील भी पैदल नहीं चल सकता”… (कभी कोशिश की?).

“मुझसे… करते नहीं बनता” {उदाहरण: “मुझसे कई लोगों के सामने बोलते नहीं बनता”… (ऐसा आप अपने परिजनों/दोस्तों याने कई लोगों के सामने ही बोलते हैं).

“कितनी बुरी बात है कि… {उदाहरण: “कितनी बुरी बात है कि सुबह से बारिश हो रही है”… (छोड़िये भी, इतनी भी बुरी बात नहीं है).

इसी तरह के और भी अवचेतन व अतार्किक विचार हो सकते हैं जिनकी हमें पहचान करनी है और समय रहते ही उन्हें सकारात्मक विचार से बदल देना है. मुझे आशा है कि इस पोस्ट से आपको अपने जीवन में बदलाव/रूपांतरण लाने के कुछ सूत्र अवश्य मिले होगे. कोई भी बदलाव सहज नहीं होता बल्कि उसके लिए सतत प्रयासरत रहना पड़ता है. यदि पोस्ट में लिखी बातों पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के बाद आप उन्हें अपने जीवन में उतरने का प्रयास करेंगे तो आपको कुछ सफलता ज़रूर मिलगी.

Photo by Ümit Bulut on Unsplash

There are 50 comments

  1. indowaves

    भाई मुझे कोई बताएगा कि हमेशा इतनी शानदार चीज़ें पढने को क्यों मिल जाती है बार बार ? जरूर मुझमे कुछ ख़ास है 🙂

    मै सोचता हू कि नेट पे बस लिखूंगा पढूंगा कुछ नहीं पर तभी क्या देखता हू आईला ! निशांत और अन्य लेखक मुझे दमदार पोस्टो से पथभ्रष्ट करने को मौजूद है..जो समय लिखने को देना चाहिए वो इनको पढने में निकल जाता ..अब फैसला किया है आँख मूंदकर लिखूंगा 🙂

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    1. Nishant

      अवश्य, आप जैसे गुणी पाठक और लेखक यदि आँखें मूँद कर भी लिखेंगे तो हमें बेहतरीन पोस्टें पढ़ने को मिलेंगीं. बस एक निवेदन है कि कभी-कभार हिंदी में भी लिखें.

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  2. indowaves

    निशांतजी आपकी बात सर आँखों पर! जरूर लिखूंगा और लिखा भी है. खैर मै तो बस यही सोचकर नहीं लिखता हू कि मेरे साथ ही हिंदी व्याकरण शुद्धिकरण की लहर ना चल पड़े. .फोकट में निठल्लो को कुछ काम मिल जाएगा ..अभी सब शांत है…सब ठीक है…बहुत संभव है कि मेरी पोस्ट के प्रकाशित होने के बाद इन सुस्त पड़ी व्याकरणग्रस्त आत्माओ में भयंकर उर्जा का प्रवाह हो बिग बैंग टाइप का और सब ढेला खायी मधुमक्खी की तरह मेरे पीछे पड़ जाए. लेकिन अब मै आश्वस्त हू. कम से कम इन मधुमक्खियो से पीछा छुड़ाते वक्त निशांत भाई की खोली में जगह जरूर मिल जायेगी!

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  3. akshay

    प्रश्न- क्या हमेँ ईश्‌वर ने निश्‌चित खुशियाँ दी है या अपने दिमाग का बेहतरीन इस्तेमाल करके हम हर पल खुशनुमा माहौल बना सकते हैँ। इस पर मैँ आपके विचार पढ़ना चाहता हूँ।

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    1. Nishant

      ईश्वर हमें कितनी खुशियाँ देता है या देता भी है अथवा नहीं, ये प्रश्न विवाद का मूल हैं क्योंकि किसी ईश्वर को किसी भी मानव विशेष में विशेष रूचि होने का कोई कारण नहीं है. हम अपनी मनःस्थिति के अनुसार अपने समय को खुशनुमा या उदास बना सकते हैं. सदा जीवंत और खुश रहने वाले कुछ लोग तो आपने भी अपने आसपास देखे होंगे. ऐसे व्यक्ति कठिन समय में भी नहीं डिगते और दूसरों को उनसे प्रेरणा मिलती है.

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      1. dsm

        जिंदगी में कुछ नियमित और दुखी और सुखी करने जैसा नहीं है, सब कुछ बस हमारा भ्रम है हम हर बात को अपने सुरक्षित भविष्‍य से जोड़ देते हैं और उसके बाद मुश्किलों से लड़ने के लिए ईश्‍वर को पुकारने लगते हैं,

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  4. aradhana

    निशांत,
    मुझे ये लगता है कि मेरे विचार आपसे मिलते-जुलते हैं. बहुत कुछ समानता है, लेकिन आप इन सारी बातों को जितनी ख़ूबसूरती से व्यक्त करते हैं, मैं नहीं कर सकती [ अब ये मत पूछियेगा कि कभी कोशिश की है? 🙂 ]
    ऊपर की दूसरी बात से मुझे बहुत बड़ी सीख मिली है क्योंकि मैं अक्सर दूसरों के बारे में ज्यादा सोचने लगती हूँ और अपना नुक्सान कर बैठती हूँ.

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  5. Anju Arya

    Itna achchhi baten, itni prernadayak . Nishchaya hi aisi baaton ki taraf logon ka dhyan aakarshit karna vastav me ek paropkari karya hai jo pratyaksh me nahin dikhta kintu apratyaksh rup se yah karya logo ka jeevan badalne me sahayak hota hai. Aapko bahut sadhuvad. Aise karya karne wale vyaktitya ko protsahit karna main apna saubhagya samajhati hoon.

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  6. pyarelal

    जीन्दगी जीनेके बहुत अच्छे अनुभव है आपको । पाठको के साथ सैयर करने के लिऐ बहुत-बहुत धन्यवाद । लेकीन बीच-बीच में ईन बातो को चेक भी करते रहना चाहीये जिससे और भी अनुभव होता रहे

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