श्री देवदत्त पटनायक का यह आलेख अंग्रेजी पत्रिका ‘फर्स्ट सिटी’ में 11 जनवरी, 2011 को प्रकाशित हो चुका है. उनकी अनुमति से मैं इसका हिंदी अनुवाद करके यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ. यदि आप मूल अंग्रेजी आलेख पढना चाहें तो यहाँ क्लिक करें.
आधुनिक विश्व में विवाह अब अनगिनत विकल्पों और समझौतों का विषय बन गया है. लड़का और लड़की एक-दूसरे को पसंद करते हैं और स्वेच्छापूर्वक संविदा में पड़ते हैं. उनके मध्य हुए समझौते की इति विवाह-विच्छेद या तलाक में होती है. लेकिन पारंपरिक हिन्दू विवाह पद्धति में विकल्पों या संविदा के लिए कोई स्थान नहीं है. यह दो परिवारों के बीच होनेवाला एक संबंध था जिसे लड़के और लड़की को स्वीकार करना होता था. इसके घटते ही उन दोनों का बचपना सहसा समाप्त हो जाता और वे वयस्क मान लिए जाते. इसमें तलाक के बारे में तो कोई विचार ही नहीं किया गया था.
बहुत से नवयुवक और नवयुवतियां पारंपरिक हिन्दू विवाह पद्धति के निहितार्थों और इसके महत्व को समझना चाहते हैं. आमतौर पर वे इसके बहुत से रीति-रिवाजों को पसंद नहीं करते क्योंकि इनका गठन उस काल में हुआ था जब हमारा सामाजिक ढांचा बहुत अलग किस्म का था. उन दिनों परिवार बहुत बड़े और संयुक्त होते थे. वह पुरुषप्रधान समाज था जिसमें स्त्रियाँ सदैव आश्रितवर्ग में ही गिनी जाती थीं. आदमी चाहे तो एक से अधिक विवाह कर सकता था पर स्त्रियों के लिए तो ऐसा सोचना भी पाप था. लेकिन इसके बाद भी पुरुषों पर कुछ बंदिशें थीं और वे पूर्णतः स्वतन्त्र नहीं थे: वे अपने परिवार और जातिवर्ग के नियमों के अधीन रहते थे. विवाह पद्धति के संस्कार अत्यंत प्रतीकात्मक थे और उनमें कृषि आधारित जीवनप्रणाली के अनेक बिंब थे क्योंकि कृषि अधिकांश भारतीयों की आजीविका का मुख्य साधन था. उदाहरण के लिए, पुरुष को कृषक और स्त्री को उसकी भूमि कहा जाता था. उनके संबंध से उत्पन्न होनेवाला शिशु उपज की श्रेणी में आता था. आधुनिक काल की महिलाओं को ऐसे विचार बहुत आपत्तिजनक लग सकते हैं.
हमारे सामने आज एक समस्या यह भी है कि हिन्दू विवाह का अध्ययन करते समय मानकों का अभाव दिखता है. प्रांतीयता और जातीयता के कारण उनमें बहुत सी विविधताएँ घर कर गयी हैं. राजपूत विवाह और तमिल विवाह पद्धति में बहुत अंतर दिखता है. मलयाली हिन्दू विवाह अब इतना सरल-सहज हो गया है कि इसमें वर और वधु के परिजनों की उपस्थिति में वर द्वारा उसकी भावी पत्नी के गले में एक धागा डाल देना ही पर्याप्त है. इस संस्कार में एक मिनट भी नहीं लगता, वहीं दूसरी ओर शाही मारवाड़ी विवाह को संपन्न होने में कई दिन लग जाते हैं. इसी के साथ ही हर भारतीय चीज़ में बॉलीवुड का तड़का लग जाने के कारण ऐसे उत्तर-आधुनिक विवाह भी देखने में आ रहे हैं जिनमें वैदिक मंत्रोच्चार के बीच शैम्पेन की चुस्कियां ली जातीं हैं पर ज्यादातर लोगों को यह नागवार गुज़रता है.
परंपरागत रूप से, विवाह का आयोजन चातुर्मास अथवा वर्षाकाल की समाप्ति के बाद होता है. इसकी शुरुआत तुलसी विवाह से होती है जिसमें विष्णुरूपी गन्ना का विवाह लक्ष्मीरूपी तुलसी के पौधे के साथ किया जाता था. अभी भी यह पर्व दीपावली के लगभग एक पखवाड़े के बाद मनाया जाता है.
विवाह के रीति-रिवाज़ सगाई से शुरू हो जाते हैं. परंपरागत रूप से बहुत से विवाह संबंध वर और वधु के परिवार द्वारा तय किये जाते थे और लड़का-लड़की एक-दूसरे को प्रायः विवाह के दिन तक देख भी नहीं पाते थे. सगाई की यह रीति किसी मंदिर में आयोजित होती थी और इसमें दोनों पक्षों के बीच उपहारों का आदान-प्रदान होता था. आजकल पश्चिमी प्रभाव के कारण लोग दोस्तों की मौजूदगी में अंगूठियों की अदलाबदली करके ही सगाई कर लेते हैं.
सगाई और विवाह के बीच वर और वधु दोनों को उनके परिजन और मित्रादि भोजन आदि के लिए आमंत्रित करने लगते हैं क्योंकि बहुत जल्द ही वे दोनों एकल जीवन से मुक्त हो जायेंगे. यह मुख्यतः उत्तर भारत में संगीत की रस्म में होता था जो बॉलीवुड की कृपा से अब पूरे भारत में होने लगा है. संगीत की रस्म में परिवार की महिलायें नाचती-गाती हैं. यह सामान्यतः वधु के घर में होता है. लड़के को इसमें नहीं बुलाया जाता पर आजकल लड़के की माँ और बहनें वगैरह इसमें शामिल होने लगीं हैं.
विवाह की रस्में हल्दी-उबटन और मेहंदी से शुरू होती हैं. इसमें वर और वधु को विवाह के लिए आकर्षक निखार दिया जाता है. दोनों को हल्दी व चन्दन आदि का लेप लगाकर घर की महिलायें सुगन्धित जल से स्नान कराती हैं. इसका उद्देश्य यह है कि वे दोनों विवाह के दिन सबसे अलग व सुन्दर दिखें. इसके साथ ही इसमें विवाहोपरांत कायिक इच्छाओं की पूर्ति हो जाने की अभिस्वीकृति भी मिल जाती है. भारत में मेहंदी का आगमन अरब संपर्क से हुआ है. इसके पहले बहुसंख्यक हिन्दू आलता लगाकर अपने हाथ और पैरों को सुन्दर लाल रंग से रंगते थे. आजकल तरह-तरह की मेहंदी के प्रयोग से हाथों-पैरों पर अलंकरण किया जाने लगा है. वर और वधु के परिवार की महिलायें भी अपने को सजाने-संवारने में पीछे नहीं रहतीं.
वर और वधु को तैयार करने के बाद उनसे कहा जाता है कि वे अपने-अपने पितरों-पुरखों का आह्वान करें. यह रस्म विशेषकर वधु के लिए अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि विवाह के बाद उसे अपने भावी पति के गोत्र में सम्मिलित होना है और अपने कुल की रीतियों को तिलांजलि देनी है.
सभी हिन्दू रीति-रिवाजों में मेहमाननवाज़ी पर बहुत जोर दिया जाता है. मेहमानों का यथोचित स्वागत किया जाता है, उनके चरण छूकर उन्हें नेग या उपहार दिए जाते हैं, और आदरपूर्वक उन्हें विदाई दी जाती है. पूजा के समय देवी-देवताओं को आमंत्रित किया जाता है, और विसर्जन के पहले भी उनकी पूजा होती है. उनसे निवेदन किया जाता है कि वे अगले वर्ष या अगले सुअवसर पर भी पधारें. विवाह के समय वर अतिथि होता है और हिन्दू परंपरा में अतिथियों को देवता का दर्जा दिया गया है. इसलिए उसका आदरसत्कार देवतातुल्य जानकार किया जाता है और उसे सबसे महत्वपूर्ण उपहार अर्थात वधु सौंप दी जाती है.
भारत के विभिन्न प्रदेशों में विवाह का समय अलग-अलग होता है. दक्षिण में विवाह की रस्में सूर्योदय के निकट पूरी की जाती हैं जबकि पूर्व में यह सब शाम के समय होता है. कागज़ की पोंगरी जैसी निमंत्रण पत्रिका वरपक्ष के घर भेजने के साथ ही विवाह की रस्मों की शुरुआत में तेजी आ जाती है. यह पत्रिका आमतौर पर वधु का भाई लेकर जाता है. ओडिशा में वधु के भाई को वर-धारा कहते हैं – वह, जो वर को घर तक लेकर आता है.
आमंत्रित अतिथिगण और वर का आगमन बारात के साथ होता है. राजपूत दूल्हे अपने साथ तलवार रखते हैं जो कभी-कभी उसकी भावी पत्नी द्वारा उसके लिए चुनी गयी होती है. इससे दो बातों का पता चलता है: यह कि पुरुष तलवार रखने के योग्य है और दूसरी यह कि वह अपनी स्त्री की रक्षा भी कर सकता है. उत्तर भारत में दूल्हे घोड़ी पर सवार होते हैं और उनका चेहरा सेहरे से ढंका होता है ताकि कोई उनपर बुरी नज़र न डाल सके. घोड़े के स्थान पर घोड़ी का प्रयोग यह दर्शाता है कि वह अपनी पत्नी को अपने अधीन रखना चाहता है. यह विचार भी आधुनिक महिलाओं को आपत्तिजनक लग सकता है. भारत के कई स्थानों में दूल्हे के साथियों को जमकर पीने और नाचने का मौका मिल जाता है. कई बाराती बड़े हुडदंगी होते हैं. वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती को बिहाने चले शिव की बारात के सदस्यों की तरह होते हैं. पीना और नाचना एकाकी जीवन की समाप्ति के अंतिम दिनों से पहले उड़ानेवाला मौजमजा है जो जल्द ही पत्नी और घर-गृहस्थी के खूंटे से बाँध दिया जाएगा और फिर उससे यह अपेक्षा नहीं की जायेगी कि वह चाहकर भी कभी मर्यादा तोड़ सके.
दूल्हे के ड्योढी पर आनेपर ससुर और सास उसे माला पहनाकर पूजते हैं. उसका मुंह मीठा किया जाता है, चरण पखारे जाते हैं. कई बार ससुर या उसका श्याला उसे अपनी बांहों में भरकर मंडप या स्टेज तक लेकर जाते हैं. इस बीच पंडित यज्ञवेदी पर अग्नि बढ़ाता है. पूरी प्रथा के दौरान अग्नि ही समस्त देवताओं का प्रतिनिधित्व करती है. वह स्त्री और पुरुष के सुमेल की साक्षी है.
Photo by Pablo Heimplatz on Unsplash
बहुत सुंदर और उपयोगी आलेख।
पसंद करेंपसंद करें
बहुत अच्छी प्रस्तुति , शुक्रिया
पसंद करेंपसंद करें
विवाह को सबसे बड़ा सामाजिक उत्सव मान कर उसके अनुसार निभाते हुये भारतवासी।
पसंद करेंपसंद करें
Respectable Sir,
Vivah jese pavitra utsaw per bhartiya sanskriti ki gaurawpurna parampara ko aage badhane wala lekh he.Yuva peedhi ke liye ati uttam he. thanks.
पसंद करेंपसंद करें
समझ न सका कि लेख का लक्षित पाठक वर्ग कौन है.
पसंद करेंपसंद करें
पहले विवाह इसलिए स्थायी होते थे क्योंकि नारी, नारी ही रहती थी. वह पुरुष की नकल करके उसकी बराबरी करने में ही अपनी स्वतंत्रता नहीं मानती थी. तब नारी को अच्छी तरह पता था कि पुरुष के अपने कर्तव्य हैं और नारी के अपने. और दोनों का बराबर महत्व है- परिवार में भी और एक-दूसरे के जीवन में भी. आज की बहुत सारी नारियां सोचती हैं कि परिवार का पोषण, बच्चों की देखभाल और सबके सुख के लिए कार्य करना महत्वहीन है. उन्हें लगता है कि ये सब काम तो मशीनों और नौकरों के भरोसे भी हो सकते हैं. उन्हें अपनी आज़ादी और सर्थकता नज़र आती है घर से बाहर निकलकर पैसे कमाने में- “इतनी पढाई घर बैठकर चूल्हा फ़ूंकने के लिए या सारा दिन बच्चे के पीछे घूमते रहने के लिए थोडी की है!” और पैसे कमाने के बाद उन्हें लगता है कि अब उनमें और पुरुष में कोई अंतर नहीं है. ज़ाहिर है, स्त्री और पुरुष का विवाह तो स्थायी हो सकता है, लेकिन “दो पुरुषों” के विवाह को तो टूटना ही है. और दो परिवारों के दुर्भाग्य, बच्चों के अंधकारमय भविष्य के बाद नारी को पता चलता है कि वह पुरुष नहीं हो सकती, या यह कहना बेहतर होगा कि नारी को पुरुष नहीं होना चाहिए, संसार और परिवार का हित इसी में है कि वह नारी ही रहे.
पसंद करेंपसंद करें
संक्षेप में बात बताने की कोशिश की गयी है..पर यदि विस्तार में जाए तो मूल रूप में प्रत्येक पारंपरिक विधियों (फ़िल्मी अंदाज में बदले स्वरुप में नहीं,शास्त्र सम्मत) के पीछे विशेष वैज्ञानिक अवधारणा रही है…
अब जैसे हल्दी लेपन को ही ले लें..हल्दी जितना अधिक रंग निखार आकर्षक बनाती है,उससे अभी अधिक यह एंटी बायेटिक का काम करती है…दो शरीर रोगमुक्त रहें,प्रोटेक्टेड रहें, इसमें हल्दी बड़ा कारगर रहा करता है…
गंभीरता से यदि विवाह के शास्त्री विधियों का अध्ययन वर वधु करें और उसमे निहित कल्याणकारी भाव को ह्रदय में धारण कर निष्ठां पूर्वक समर्पित भाव से विवाह बंधन में बंधें,तो लाख मतभेद क्यों न हों, कभी विवाह विच्छेद की नहीं सोचेंगे…
भारतीय विवाह समझौता(अग्रीमेंट) नहीं,संस्कार हुआ करते हैं…इसलिए इसमें (शास्त्र में) विच्छेद के लिए स्थान नहीं होता…
पसंद करेंपसंद करें
Aapne alag alag riti riwaj btaye muje acha laga.dusro ke riti riwaj janne ka moka mila.
पसंद करेंपसंद करें
अतिउत्तम
पसंद करेंपसंद करें
Lekh achcha hai. Bharat ke Bhinn Bhinn Pranto me Bhinn Bhinn Riti Riwaj apnaaye jaate hai. Jo ki swabhawik bhi hai. Alag Alag Parivesh me Rahne se har ek cheej me fark aata hai khaan paan, boli bhasha to riti riwajo me bhi aayega.
Is Lekh ka Mahatav Keval Itna hai ki aap ne vibhinn Rochak Riti Riwajo ke Baare me bataya hai jo Hamare desh meprachlit hai.
Kahi se bhi in Riti Riwajo in Paddatiyo ka koi Mahtav Samne nahi aata hai.
Vivah Sach me ek Contract hai Yaani ki ek Vada. Aur Ye do insaano ke Zameer par Nirbhar karta hai ki wo kisi bhi waade ko kitna nibhayenge. In Riwajo se Vivah ki Majbooti par koi farak nahi padne wala hai. Is baat ka bhi koi farak nahi padta hai ki decision Family ne liya hai yaa Couple ne liya hai. Ek independent, self dependent person apni life ka decision le sakta hai aur wo decision kisi bhi group ke dwara liye gaye kisi bh decision se achcha ho sakta hai.
Purane Riti Riwaj ke baare me mera ye sochna hai ki, wo purane samay ke hisaabse bane the unme kai andhvishwas kai gandi bakwas chipi thi jo us samy shayad tarkik ho par aaj bilkul nirarthak lagti hai. Naari ko daba ke rakha jaata tha. Naari aur purush samaan hai aur ye manna hi hoga. aur unke baare me soche bina aap safal vivah ki baat bhi nahi kar sakte ho.
agar koi mahila padh kar job karna chhti hai to kisi ko koi aapatti nahi honi chahiye. agar kisi ko ho bhi to mai aise vicharo ko koi mahatv dena uchit nahi samajhta hu. Ghar Bachche bhavishya bla bla bla is mutual responsibility kisi ko kabhi ye expect nahi karana chahiye ki mahila hi karegi.
Riti Riwajo ka jaha tak sawal hai wo kitne bhi jyada yaa kam kiye jaa sakte hai depends ki aapke paas kitna paisa aur samay hai. mera manna to ye hai ki ek signature bhi bahut hai ye wada karne ke liye ki ab ham har paristhiti me achche dosto ki tarah saath rahenge.
Love marriage and Arrange marriage ke beech ke farak ko darshata hua koi bhi lekh agar aap likh ya post kar sake to mujhe khushi hogi.
Bye Take Care.
पसंद करेंपसंद करें
muze lagta hai ki hindu vivah padhati sab vivaho se anuthi or majedar to hai hi sath me ye jindagi k utar chdhao ko kise samnakar te huye vivah safl banaa na hai ye sab sat fero k vachan me pandito ko khul ke batane ki jaroorat hai jis se ki var vadhu ki jane wali har rasm kaa matlab samj kar use apne jiwan me apnaaye.or muze hamare hindu sankar me sab se buri bat lagti hai wo hai jati sambandhit dhar naye jo ki hamare bado ko badl ne ki bahot jaroorat hai hamare gar k pass ek bramhan pariwar hai jo ki daroo or mas kaa karo bar kar taa hai aab bataiye bramhan or mas madiraa fir wo to sirf janm se bramhan huaa karm se to wo shudr hai,fir kya wo sach much ucch jati kaa hai.fir bhi wo logo ko bade garw se bolte hai ki ham bramhan hai, kya ye thik hai. wahi un k ghar k pass ek shudra (mahetar)pariwar hai jo ki mas or daroo ko chute bhi nahi or achran se bhi uccha hai or karm bhi aache mai jab dono pariwar ko dekh taa hoo, to soch me padh jata hoo ki ucch or nicch jati karmose manna chahi ye yaa janm se?
पसंद करेंपसंद करें
kya maa apne bete ki shadi me uske phere nahi dekhti
पसंद करेंपसंद करें
mein soch dusri hai yeh ki aaj ke time mein hum kisi par jor jabardasti nahi kar sakte hai . samaj teji se badal raha hai . aur iss samaj mein pasuta ki koi jagah nahi hai . aadmi ko apne charitra par dhyan dena hoga aue aurtoo ko bhi yeh sabse important thing hai …
पसंद करेंपसंद करें
Namo Narayan, Lekh mein di gai jankari ko vistar se vaijhyanikata se pushti karte hue prastut karne se Aaj ke nai pirhi aur achchhi tarah se sweekar karenge kyonki purana pirhi riti-riwaj aur sanskar ko shastra evam vidhi sammat mante hain jabaki nai pirhi ise manana nahi chahate hain. Jankari ke liye kotishah sadhuwad.
Sn. Dharmapushpam
पसंद करेंपसंद करें
hinu vivah paddhati ek vaigyani aadharbhoot sanrchna hai…. alekh ki sahj prastuti ke lie sadhuvad……………..!
पसंद करेंपसंद करें
लेख को पढ़ते समय विभिन्न परम्पराओं का वैज्ञानिक एवं सामाजिक विश्लेषण खोजते रहा पर मिला नहीं …
पसंद करेंपसंद करें
mera naam manoj hai or main vivek ji ki baat se 101% sehmat hoon
पसंद करेंपसंद करें
परम्पराओं का वैज्ञानिक विश्लेषण खोजने का प्रयास ना करें क्यूंकी परम्पराएँ किसी वैज्ञानिक गुत्थी सुलझाने के लिए नहीं बल्कि सामाजिक ताना – बाना बनाए रखने के लिए ही अस्तित्व में आतीं हैं। परम्पराएँ किसी एक व्यक्ति द्वारा अविष्कृत नहीं होतीं बल्कि किन्हीं खास व्यवहारों को सामाजिक स्वीकृति मिलने के साथ ही विकसित होतीं हैं जो उस समय के सामाजिक ढांचे के अनुकूल होते हैं। समय के साथ ही नयी आवश्यकतानुसार रीति रिवाजों में भी बदलाव आता है। जो रिवाज या परम्पराएँ समय के साथ नहीं चलते वे रूढ़ि बन जाते हैं।
पसंद करेंपसंद करें
Muze love marrage karna. Hai..rules batao please …
पसंद करेंपसंद करें
हिन्दू विवाह की रीति का बहूत सटीक लेखन है । विवाह मे कुल रीतियौ का विशेष महत्व हौता हे ।उस पर भी लेख होना चाहिए ।
पसंद करेंपसंद करें
1. Vivah ke samay pati dvara patna ke manga me bhare gae sindur ka kya arth hai aur kya mahatva hai. 2. Vivah me dono jodo dvara lie gae pratyek fere ka kya arth hai. 3. Pati dvara patni ko pahnaye gae mangalsutru ka kya arth hai. 4. Pati patni ke bich ke gadhbandhan ka kya arth au r gadhbandhan q karte hai.
पसंद करेंपसंद करें
Nice
पसंद करेंपसंद करें
मनुस्मृति के अनुसार हिंदू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है
पसंद करेंपसंद करें
Sankshep me likhane ke karan Vivah ki rasme & prakar ki byakhya nahi ho saki.
पसंद करेंपसंद करें
ydi koi purush pehle se sadisuda h or wo dusri sadi bina divorse kre to ye dhokha h
पसंद करेंपसंद करें
Thanks
पसंद करेंपसंद करें
Shaadi ka uddeshya sharirik sambandh hi kyo hai? pati patni pavitrata se ek dost ki tarah kyon nahi rah sakte? samaaj kyon sharirik sambandh ke peechhe laga rahta hai? kya ye naitik star se girne wali baat nahi? child birth yadi objective hai yo kyo na ham un bachchon ko adopt karen jo anaath hain?
पसंद करेंपसंद करें
शादी में पैर में रंग लगाने की प्रथा कब से प्रारंभ हुई और क्यो ।
पसंद करेंपसंद करें
hindu vivah mai ladki ke maa papa fere q ni dekhte hai
पसंद करेंपसंद करें
mera viviaah mujhe ghar babana h bager pandit ke
पसंद करेंपसंद करें