उम्मीद पे दुनिया क़ायम है

प्राचीन यूनान के मिथकों में सृष्टि की रचना से सम्बंधित एक कथा में वर्णित है कि प्रोमेथियस नामक एक मनुष्य द्वारा स्वर्ग से अग्नि चुरा लेने और उसका रहस्य मानवजाति को बता देने के कारण देवता उससे नाराज़ हो गए. उन्होंने एक योजना के तहत उसका विवाह पेंडोरा नामक एक देवी से करा दिया. पेंडोरा को अपने विवाह पर एक संदूक दिया गया जिसके अंदर कई उपहार थे. समस्या यह थी कि संदूक को खोलकर देखना निषिद्ध था. अब जहाँ निषेध है वहां कौतूहल जागना तो स्वाभाविक ही है. जिस प्रकार ईसाई जेनेसिस में हव्वा के मन में ज्ञान प्राप्ति के फल को चखने की लालसा पैदा हो गयी थी उसी तरह पेंडोरा से भी रहा नहीं गया और उसने संदूक को खोल दिया. संदूक को खोलते ही उसमें कैद भांति-भांति की विपत्तियाँ निकल उडीं और उन्होंने मनुष्यों को सदा के लिए त्रस्त कर दिया. संदूक के भीतर इन्हीं विपत्तियों के साथ ही ‘उम्मीद’ भी बंद थी. केवल उम्मीद ही उस संदूक से नहीं छूट पाई और अब हर प्रकार की विपत्तियों और समस्याओं का सामना करने में मनुष्य को इसका ही सहारा है.

यहूदी परंपरा में भी एक कथा है जिसमें महाप्रलय के चालीसवें दिन महात्मा नूह अपनी विराट नौका से बाहर निकलते हैं. नई सृष्टि के अवलोकन की आस अपने मन में लेकर वे नौका से उतरते हैं और पवित्र सुगंध जलाते हैं. अपने चारों ओर महाविनाश के चिह्न देखकर उनके ह्रदय में घोर संताप उत्पन्न होता है और वे परमपिता से पूछते हैं: – “मेरे ईश्वर, यदि आप भविष्य को जानते थे तो आपने मनुष्यों की रचना क्यों की? क्या आप हमें दंड देकर प्रसन्न होते हैं?”

कहते हैं कि पृथ्वी से तीन सुगंध उठकर स्वर्ग तक गईं: पवित्र सुगंध, नूह के आंसुओं की सुगंध, और उसके कर्मों की सुगंध.

और उत्तर आया: – “सत्य के मार्ग पर चलनेवाले मनुष्यों की प्रार्थना मैं सदैव सुनता हूँ. मैं तुम्हें बताऊँगा कि मैंने यह सब क्यों किया: तुम और तुम्हारी संतति केवल आशा के बल पर ही राख में से अपनी दुनिया बना सकोगे. इस प्रकार हम कर्म और कर्मफलों को साझा कर देते हैं: इनके प्रति हम दोनों ही उत्तरदायी रहेंगे”.

इरविंग वैलेस ने अपनी पुस्तक ‘द बुक ऑफ लिस्ट्स’ (1977) में लिखा है: – “हर व्यक्ति इन तीनों की आस लगाये रहता है: पहली – प्रियतम का साहचर्य, दूसरी – अतुल संपत्ति, और तीसरी – अमरता.

पिछली पोस्ट सकारात्मकता पर थी. उसमें अमिता नीरव जी ने बड़ा चुटीला सा एक कमेन्ट किया : “लेकिन यदि नकारात्मकता ज्यादा आकर्षक लगे तो…?”

साहित्य और संस्कृति में नकारात्मकता का भी महत्वपूर्ण वर्णन और इतिहास है. शायरों, भग्नहृदय प्रेमियों, और वीतरागियों को नकारात्मकता में भी रस लेते देखा है. मिर्ज़ा ग़ालिब ने भी फरमाया था:

कोई उम्मीद बर नहीं आती, कोई सूरत नज़र नहीं आती,
मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यों रात भर नहीं आती?
 

इसपर मैं पाठकों से विचार आमंत्रित करता हूँ. क्या नकारात्मकता से भी कुछ ‘प्राप्ति’ संभव है? क्या जीवन और संसार के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखकर जीवन जिया जा सकता है? मेरी समझ से क्षणिक नकारात्मकता आदमी को डुबोती है, उसे दबाती है, ताकि वह उस यंत्रणा का सामना करने के लिए शक्ति अर्जित कर सके.

जी-जान लगाकर प्रतिवर्ष लाखों-करोड़ों विद्यार्थी अपने सपनों को सच साबित करने की दिशा में प्रयत्न करते हैं. सफल होने वालों की संख्या बहुत कम होती है और असफल होनेवाले उनसे सैंकड़ों-हज़ारों गुना अधिक. फिर भी यह दुःख की बात है कि इनमें से कुछ प्रतिभागी निराशा के गहन क्षणों में अपने जीवन को भी होम कर देते हैं जबकि उनके ही समान अन्य बहुसंख्यक अपनी असफलताओं से सबक लेकर स्वयं में नई ऊर्जा का संचार करते हैं और टूट कर बिखर नहीं जाते. एक परीक्षा में मिली असफलता या नौकरी पाने में लगनेवाली ठोकरें इतनी बड़ी कैसे हो सकतीं हैं कि वे जीवन से मुक्त हो जाने के विचार को फलीभूत कर बैठें?

सकारात्मकता और नकारात्मकता दोनों का अपना महत्व है. सकारात्मक दृष्टिकोण ने हवाई जहाज को बनाया और नकारात्मक घटित होने की सम्भावना ने पैराशूट. लेकिन पैराशूट का ध्येय ही है जीवन की रक्षा करना. जब हवाई जहाज के नष्ट होने की पूरी संभावनाएं हों तो सवार को नीचे कूदना ही पड़ेगा!

Photo by Dmitry Ratushny on Unsplash

There are 14 comments

  1. सोमेश सक्सेना

    नकारात्मकता भी थोड़ी मात्रा में उसी तरह जरूरी है जैसे उजाले के लिए अँधेरा। पर यदि नकारात्मकता सकारात्मकता पर हावी हो जाए तो ये घातक हो सकता है।
    पौराणिक कथाओं के माध्यम से अच्छा संदेश दिया आपने।

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  2. राहुल सिंह

    जो नकारात्‍मकता मानी जाती है वही कुछ करने, सकारात्‍मक करने के लिए प्रेरित करती है या यों कहें कि सकारात्‍मक राह, नकारात्‍मक मानी जाने वाली सोच से निकलती है. ‘ऑल इज वेल’ हो तो शायद ज्‍यादातर लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें.

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  3. वाणी गीत

    विज्ञानं या तकनीक में शोध और नवनिर्माण के लिए , जासूसी जैसे कार्य करने वालों के लिए नकारात्मकता भी आवश्यक है …किन्तु ये भी सकारात्मकता को बनाये रखने के लिए ही है !

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  4. प्रवीण पाण्डेय

    वस्तुस्थिति को स्वीकार करने को सहजता कहना चाहिये, न कि नकारात्मकता। हवाई जहाज के साथ पैराशूट की उपस्थिति जीवन को बचाने का उपक्रम है, जीवन सर्वोपरि है, यह उच्चतम सकारात्मकता है।

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  5. DR. Monika Sharma

    सकारात्मकता जीवन में जितना महत्त्व रखती उतना ही नकारात्मकता भी…… ….. नकारात्मकता व्यावहारिक लगती है……जो आम जीवन में घटती नज़र आती है….. वैसे इस बात में कोई दोमत नहीं है की उम्मीद पर दुनिया कायम है पर नाउम्मीदी भी इसी सिक्के का एक पहलू है ………..जिसके लिए तैयार रहना ज़रूरी है….

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  6. रवि कुमार

    सकारात्मकता के लिए…कई चीज़ों का नकार आवश्यक है…
    विचलनों को नकारते हुए ही मंज़िल पाई जा सकती है…
    अब इसे कैसे भी ले लिया जाए…बात समझ में आ जाए बस…
    बेहतर प्रस्तुति…

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  7. स्वार्थ

    जहाँ तक मानव जीवन में आध्यात्मिक विकास की बात है तो सकारात्मकता और नकारात्मकता दोनों ही एक वर्तुल के आधे आधे हिस्से हैं। ओढ़ी गई सकारात्मकता का आध्यात्मिक यात्रा में कोई महत्व नहीं है जबकि साधारण दैनिक जीवन में व्यवहार में यह सकारत्मकता भी टॉनिक का कार्य कर सकती है।

    अध्यात्म की दृष्टि से उपनिषद में कहे शब्द “नेति-नेति” एक बहुत ही मह्त्वपूर्ण सूत्र-वाक्य बन गये हैं जो उस यात्रा पर चल रहे मानव को सहायता प्रदान करते हैं।

    सही मात्रा में और सही जगह नकारात्मकता का भी महत्व है और व्यवहारिक जीवन में भी है। सारे भाव साधारण जीवन में ऐसे ही स्वाद लेकर आते हैं जैसे भोजन में नमक आदि तत्व, जबकि उनका खाया जाना कोई जरुरी तो है नहीं। खाना फीका भी खाया जा सकता है।
    आवश्यकतानुसार अपनी इच्छा है मनुष्य की। ऐसे ही भाव भी हैं, वे जरुरी नहीं हैं जीने के लिये परंतु जीवन के अलग अलग रंग देखने या स्वाद जानने के लिये वाहन का कार्य करते हैं।

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  8. रंजना

    हवाई जहाज के दुर्घटनाग्रस्त होने की सम्भावना नकारात्मकता नहीं है…हवाई जहाज और पैराशूट दोनों उसी तरह हैं जैसे भोजन और औषधि …जीवन में व्यक्ति अस्वस्थ होगा ही और औसधी द्वारा उसे स्वस्थ होने का अवसर मिलेगा…ये सारी की सारी बातें सकारात्मक हैं…

    मुझे संसार में नकारात्मकता से सार्थक संरचनात्मक कुछ होते नहीं दीखता…किसी भी परिपेक्ष्य में नकारात्मकता हानिकारक ही होती है..

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  9. rafat alam

    निशांत जी ,सुंदर और सार्थक पोस्ट है पूरी ही कविता सामान जिसमें हर पंक्ति ही आत्मसात करने काबिल है .नकारात्मकता और सकारात्मकता के बीच बैलेंस बहुत ही चिंतनपूर्ण है सारी नाकामी के बीच उम्मीद सदा प्ररणा देती है और जीवन मन्त्र भी है …तुम और तुम्हारी संतति केवल आशा के बल पर ही राख में से अपनी दुनिया बना सकोगे. इस प्रकार हम कर्म और कर्मफलों को साझा कर देते हैं: इनके प्रति हम दोनों ही उत्तरदायी रहेंगे”…..ये उदहारण मात्र लिया है सारा आलेख ही शाश्वत सत्य है और ग़ालिब साहिब का शेर भी सुंदर है .

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  10. AMITA NEERAV

    आप सभी सही है, लेकिन जीवन सिर्फ व्हाइट ही व्हाइट नहीं है। सकारात्मकता का वजूद ही तब है, जब नकारात्मकता है, जो कुछ भी इस दुनिया में है वो सब कुछ उपयोगी है… बकौल धर्मवीर भारती – कुछ भी तो व्यर्थ नहीं… पुरानी पोस्ट है, लेकिन सोचने के लिए मौजूँ है
    http://amitaneerav.blogspot.com/2010/11/blog-post_07.html

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