एक राजा ने एक महात्मा से कहा – “कृपया मुझे सत्य के बारे में बताइये. इसकी प्रतीति कैसी है? इसे प्राप्त करने के बाद की अनुभूति क्या होती है?”
राजा के प्रश्न के उत्तर में महात्मा ने राजा से कहा – “ठीक है. पहले आप मुझे एक बात बताइए, आप किसी ऐसे व्यक्ति को आम का स्वाद कैसे समझायेंगे जिसने पहले कभी आम नहीं खाया हो?”
राजा सोच-विचार में डूब गया. उसने हर तरह की तरकीब सोची पर वह यह नहीं बता सका कि उस व्यक्ति को आम का स्वाद कैसे समझाया जाय जिसने कभी आम नहीं खाया हो.
हताश होकर उसने महात्मा से ही कहा – “मुझे नहीं मालूम, आप ही बता दीजिये”.
महात्मा ने पास ही रखी थाली से एक आम उठाया और उसे राजा को देते हुए कहा – “यह बहुत मीठा है. इसे खाकर देखो”.
सचमुच मीठा.
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सटीक दृष्टांत है यह, निशांत जी।
आभार!!
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बढ़िया दृष्टांत … बात है तो सोचने वाली…
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बिना स्वयं अनुभव किये, सत्य के कुछ पक्ष जानने असम्भव।
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In the last of paragraph, I think King did not pick up the manga, but also Mahatma picked up mango and given to King. If I worng, Please correct sentence.
Thank U.
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धन्यवाद. अपेक्षित सुधार कर दिया है.
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Mahatma ने पास ही रखी थाली से एक आम उठाया और उसे राजा को देते हुए कहा – “यह बहुत मीठा है. इसे खाकर देखो”.
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अंग्रेज़ी में एक कहावत की याद आ गई “The proof of the pudding is in the eating”
राजन सिन्हाजी ठीक कह रहे हैं।
“राजा ने पास रखी थाली —-” के बजाय “महात्मा ने पास रखी थाली —” सही होगा।
शुभकामनाएं
जी विश्व्नाथ
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धन्यवाद विश्वनाथ जी. अपेक्षित सुधार कर दिया है.
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निशांतजी,
सुना है कि Paulo Coelho के किताबों पर इरान में प्रतिबन्ध लग गया है।
क्या कारण हो सकता है?
क्या आप जानते है?
क्या उन्होंने इस्लाम के खिलाफ़ कुछ लिख दिया था?
यदि सूचना मिली तो अपने इस ब्लॉग पर इसके बारे में कुछ लिखें
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
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विश्वनाथ जी, इस बारे में ज्यादा जानकारी तो नहीं है पर ऐसा शायद पाउलो कोएलो की किताबों में सैक्स को लेकर उनके दृष्टिकोण के कारण हुआ होगा.
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सत्य का स्वाद …!
सुन्दर !
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I just love these sort stories. Thanks
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सत्य का स्वाद? यह वैसा ही लगता है जैसे अर्जुन कृष्ण से पूछ रहा हो – स्थितप्रज्ञस्य का भाषा:! स्तितधी कैसे बोलता, खाता, बैठता व्यवहार करता है।
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बहुत सही कहा गया है. सत्य की अनुभूति सत्य से साक्षात्कार होने पर ही हो सकती है.
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bahut khub
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