समर्पण

two trees

सुबह के साढ़े आठ बजे थे. अस्पताल में बहुत से मरीज़ थे. ऐसे में एक बुजुर्गवार अपने अंगूठे में लगे घाव के टाँके कटवाने के लिए बड़ी उतावली में थे. उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें ठीक नौ बजे एक बहुत ज़रूरी काम है.

मैंने उनकी जांच करके उन्हें बैठने के लिए कहा. मुझे पता था कि उनके टांकों को काटनेवाले व्यक्ति को उन्हें देखने में लगभग एक घंटा लग जाएगा. वे बेचैनी से अपनी घड़ी बार-बार देख रहे थे. मैंने सोचा कि अभी मेरे पास कोई मरीज़ नहीं है इसलिए मैं ही इनके टांकों को देख लेता हूँ.

घाव भर चुका था. मैंने एक दूसरे डॉक्टर से बात की और टांकों को काटने एवं ड्रेसिंग करने का सामान जुटा लिया.

अपना काम करने के दौरान मैंने उनसे पूछा – “आप बहुत जल्दी में लगते हैं? क्या आपको किसी और डॉक्टर को भी दिखाना है?”

बुजुर्गवार ने मुझे बताया कि उन्हें पास ही एक नर्सिंग होम में भर्ती उनकी पत्नी के पास नाश्ता करने जाना है. मैंने उनसे उनकी पत्नी के स्वास्थ्य के बारे में पूछा. उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी ऐल्जीमर की मरीज है और लम्बे समय से नर्सिंग होम में ही रह रही है.

बातों के दौरान मैंने उनसे पूछा कि उन्हें वहां पहुँचने में देर हो जाने पर वह ज्यादा नाराज़ तो नहीं हो जायेगी.

उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी उन्हें पूरी तरह से भूल चुकी है और पिछले पांच सालों से उन्हें पहचान भी नहीं पा रही है.

मुझे बड़ा अचरज हुआ. मैंने उनसे पूछा – “फिर भी आप रोज़ वहां उसके साथ नाश्ता करने जाते हैं जबकि उसे आपके होने का कोई अहसास ही नहीं है!?”

वह मुस्कुराए और मेरे हाथ को थामकर मुझसे बोले:

“वह मुझे नहीं पहचानती पर मैं तो यह जानता हूँ न कि वह कौन है!”

लेखक – अज्ञात

There are 14 comments

  1. Satish Chandra satyarthi

    इस घटना से मुझे एक फिल्म की याद हो आयी.. एक कोरियन फिल्म देखी थी 내 머리 속의 지우개 जिसका शाब्दिक अनुवाद होगा- The eraser inside my mind.. (ऑनलाइन यहाँ उपलब्ध है http://www.dailymotion.com/video/x9a5ct_0204-a_shortfilms#from=embed )बड़ी मार्मिक फिल्म है . फिल्म की मुख्य महिला चरित्र को यह बीमारी होती है..
    कितना कष्टमय होता होगा ऐसे व्यक्ति के साथ रहना, उसे प्यार करना जिसे पता ही न हो कि आप कौन हैं…
    नववर्ष आपके और आपके सभी अपनों के लिए खुशियाँ और शान्ति लेकर आये ऐसी कामना है
    मैं नए वर्ष में कोई संकल्प नहीं लूंगा

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  2. हरि मानन्धर "विवश"

    ये कथा तो मैने इजरायलका अल्जाइमर पत्नी सालोँसे बृद्धाश्रममे थे तो उसका पति मिल्ने जाते थे हररोज । मैने भी एक अल्जाइमर रोगीसे काम किया था अउर उस्की पत्नी हररोज मिल्ने आतिथी तो वही देखकर कथाका प्लट बनाकर लिखा था । मेरा कथामे सभि पात्र है लेकिन यहाँपर सब हटाकर सिर्फ विषयपर लपेटगया है ।

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  3. प्रवीण शाह

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    हाँ, यही प्यार है !
    यही होता है रिश्तों को निभाने का एकमात्र सही तरीका… पर अफसोस होता है देख कर जब हममें से अधिकतर भूल चुके हैं इसे… आज हम उन्हीं रिश्तों को निभाने लायक मानते हैं जहाँ से हमें बदले में भी कुछ मिलता/मिलने की उम्मीद रहती है।


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