मेरे एक मित्र ने नया ब्लैकबेरी फोन खरीदा. ये स्मार्टफोन बहुत शानदार हैं और उनमें ईमेल, सैट-नेव, सैंकड़ों वेब एप्लीकेशंस – न जाने क्या-क्या हैं. फोन मिलते ही वह उसके फीचर जानने में जुट गया और घंटों तक बटनों को दबाकर चीजें जांचता रहा. इस खोजबीन से उसे पता चला कि किसी खास एप्लीकेशन को इस्तेमाल करने में समस्या आ रही थी.
फोन कंपनी और टेलीकॉम के सपोर्ट सिस्टम से जूझने और कस्टमर एक्जीक्यूटिव से बात करने पर उसे यह जानकारी मिली कि जो खास फीचर वह इस्तेमाल करना चाहता है उसके लिए प्रतिमाह अतिरिक्त राशि का भुगतान करना पड़ेगा क्योंकि वह फीचर कंट्री स्पेसिफिक था.
उसने अतिरिक्त भुगतान करने का तय कर लिया. पैसा देने के बाद एक नई दिक्कत शुरू हो गयी. वह फीचर एक्टीवेट तो हो गया था लेकिन उस तरह से काम नहीं कर रहा था जैसा उसे करना चाहिए. कहीं-न-कहीं कोई कमी ज़रूर थी.
कस्टमर केयर से दोबारा बात की गयी. तकनीक के जानकारों से पूछा. इंटरनेट पर सर्च करके देखा. अंततः यह पता चला कि ब्लैकबेरी कितने ही अच्छे फोन क्यों न हों, उनकी भी कुछ सीमायें हैं. अब या तो उन कमियों के साथ फोन इस्तेमाल करो या कोई और फोन ढूंढो.
उसने मुझसे पूछा कि अब और क्या किया जा सकता है.
मैंने एक पल के लिए सोचा और जो बात मुझे समझ में आई वह यह थी कि:
मैं तकनीक के मामले में इस सरल नियम का पालन करता हूँ कि यदि कोई चीज़ मेरी आशाओं पर सिर्फ 80% खरी ही उतरे तो मुझे उससे पूर्ण संतुष्ट होना चाहिए. इससे ज्यादा की उम्मीद करना व्यर्थ ही है.
इन चीज़ों के विज्ञापनों में 100% से भी ज्यादा संतुष्टि देने का वादा या दावा किया जाता है. वस्तुतः देखें तो ‘100% से ज्यादा’ जैसा कुछ नहीं होता. दुनिया में कोई भी, कुछ भी इतना परफेक्ट नहीं है”.
अब हमें यह बात समझ में आ जाए और हम इससे संतुष्ट हो जाएँ – तो 80% मिल गया मतलब मान लो कि बहुत मिल गया. उससे ज्यादा अब और मिलने की उम्मीद करना बेमानी है.
और यदि आप इसके परफेक्ट होने की ख्वाहिश नहीं करते और 80% काम चलने से राजी हो जाते हैं तो बचे रह गए 20% नैराश्य को गहराने से बच सकते हैं.”
और क्या पता आगे चलके आपको बचे रह गए 20% की अनुपयोगिता अनुभव होने लगे और ऐसे मामलों से उपजी कुंठा का उपचार हो जाए! इससे बेहतर और क्या होगा? यह भी ज़िंदगी का एक बहुत ज़रूरी सबक ही तो है!
जब कभी मैं पुराने स्तूपों, मंदिरों और ध्वस्त अवशेषों को देखने जाता हूँ तो उनकी कला और गौरव से अभिभूत हो जाता हूँ. इनमें कई स्थानों पर मुख्य स्तंभों, मूर्तियों, या दीवारों पर दरारें भी दिखती हैं. इन दरारों या टूट-फूट के बारे में कुछ लोग यह कहते हैं कि – “कैसे कारीगर थे वे! शर्म की बात है कि इतना कुछ अच्छा बना गए लेकिन यहाँ एक कसर रह गयी!”
ऐसे में मैं उनसे यह कहना चाहता हूँ कि – “यदि ऐसा होता तो कहीं बुद्धों की विराट प्रतिमाएं नहीं बनतीं और मंदिरों के प्राचीर शिखर भी नहीं दिखते. तब न कोई धर्म होता, न संस्कृति जीवित रहती. इन अद्भुत भवनों और मूर्तियों में किसी खोट का होना भी मुझे शास्त्रसम्मत ही प्रतीत होता है.”
विश्व में जो कुछ भी बनता है वह भविष्य में बिखर जाता है. हर उगनेवाली चीज़ अंततः मिट्टी में मिल जाती है. जो भी आता है, चला जाता है. यही प्रकृति का नियम है. विश्व में चिरस्थाई और परिपूर्ण कुछ भी नहीं है. असंतुष्टि अवश्यम्भावी है.
ब्लैकबेरी हो या बुद्ध प्रतिमाएं – यह बात उनपर और उनके बीच आनेवाली हर चीज़ पर लागू होती है.
यदि हर वस्तु परिपूर्ण और संतुष्टिदायक होती तो मानव मन में निराशा कभी न उपजती. धरती पर ही स्वर्ग हो जाता. हम मुक्ति, निर्वाण, आत्मज्ञान, और ईश्वर के बारे में भी कुछ नहीं सोचते. पूर्ण-अपूर्ण का कोई बखेड़ा नहीं होता.
लेकिन पूर्णता या पूर्ण संतुष्टि जैसा कुछ नहीं है. यहाँ तक कि इनके पास भी कुछ नहीं फटकता.
80% का मिल जाना पर्याप्त है.
यह समझ में आ जाये और हम इससे संगत बिठा लें तो हम खुद में और दूसरों में परिपूर्णता की न तो खोज करेंगे न ही कोई उम्मीद रखेंगे. जीवन फिर सहज-सरल होगा.
wonderful I agree with your views
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किसी पत्रिका, शायद ‘हिन्दी एक्सप्रेस’ के पहले अंक में चुटकुला था-
”इस अंक में प्रूफ की कुछ भूलें भी हैं, क्योंकि यहां की रुचि का ख्याल रखा गया है और कुछ लोगों की रुचि इसी में होती है”.
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१०० प्रतिशत की बात तो छोडिये मुझ जैसे टेक भीरु व्यक्ति जिनकी अच्छी खासी संख्या है उपलब्ध सुविधाओं का भी ३० प्रतिशत से ही ज्यादा उपयोग में नहीं ला पाते ! आप तो ८० की बात कर रहे हैं !
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टिपण्णी के लिए धन्यवाद, मिश्र जी.
यहाँ सभी उपलब्ध सुविधाओं का 80 % भर उपयोग में लेने की बात नहीं की गयी है.
मैं यह कहना चाहता हूँ कि दुनिया में किसी भी चीज़ से यदि आपकी उम्मीदें 80 % ही पूरी हो जाएँ तो भी पर्याप्त है.
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80% तो बहुत है, आजकल तो लोग मोबाइल कर उसकी क्षमताओं का 20% भी उपयोग नहीं कर पाते हैं। केवल फोन ही लेना हो तो 800रु का भी आता है।
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achhaa laga parh kar…main to bb poori tarah se istemaal bhi nahi kar pata. sirf upload kiya, email aur messenger thats it.
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sabse jaruri haen ki kuchh bhi kharidnae sae pehla us product kae baarey mae purii jankari lae lae . aaj kal yae aasani sae mil jaatee haen .
product showroom sae kharidae aur wahii har feature ki jaankari lae reseller kae paas jaankari nahin hotee
80% nahin 110 pratisht ki chaaht rakhae milaega bas lenae waala hona chahiyae
perfection ki demant galat nahin haen aur 80% ki swikriti “chalta haen ” ko janam daeti haen
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निशांत जी सचमुच ८०% खूब लिखा है ब्लैकबेरी से बुद्ध तक बात इंट्रस्टिंग लगी यहाँ यह एड करना चाहता हूँ कुछ लोग असंतोष में भी संतुष्ट रहते है .
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खूबसूरत प्रस्तुति… जरा यहाँ भी गौर फरमाएँ
http://wwwamitaneearv.blogspot.com/2009/12/blog-post.html
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The 80-20 rule is good.
I agree.
Don’t expect 100 percent satisfaction.
There is no perfect product in the market.
If there were any such product, the price would be beyond our capacity to pay.
I have been guided by the following principle in my purchases.
For electronic goods, don’t buy today, buy tomorrow. If possible, buy day after tomorrow or keep postponing till it hurts.
You will only get a better bargain in price and better quality and capabilities by postponing.
For gold and land and real estate, buy today. Don’t wait till tomorrow. In fact you should have bought it yesterday.
Regards
G Vishwanath
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शत प्रतिशत सत्य बात…
यह जीवन दृष्टिकोण रहे तो आदमी सौ प्रतिशत संतुष्टि और सुख पा सकता है,यह गैरेंटेड है..
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वस्तुतः वह 80% ही संतुष्टी पॉइंट है, शेष 20% या तो प्रलोभन है अथवा हमारी तृष्णा की अति।
सारगर्भित संदेश। निशांत जी, आभार।
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अपेक्षा ८०% की, यत्न १००% का!
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nishu mene aapki ye site visit ki tumhare drashtikon se me pehle bhi prbhavit tha or aaj bhi hoo shayad isiliye tum mere liye hamesha khaas rahe or hamesa rahoge
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mai aap ki baat se 80% sehmat hu……..! nishant ji.
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kabhi socha bhi nahi ki ,mobile ko sirf kis chutkule me hi nahi ek prernadayk udharn ke rup me bhi dekha ja sakta hai………….sach duniya ki har chij ki koi na koi khasiyat hoti hai bas apne najariye ki afasyakta hai…………….
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[…] कहते हैं. इस पर हिंदीज़ेन में पहले भी एक पोस्ट कई वर्ष पहले लिखी जा चुकी […]
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